लोकसभा चुनाव खत्म हुए अभी छह महीने भी नहीं हुए हैं कि काँग्रेस को एक और झटका लगा है। चर्चित सेलेब्रिटी एवं पूर्व अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर ने काँग्रेस जॉइन करने के पाँच महीने के अंदर ही पार्टी को अपना त्यागपत्र सौंप दिया है। उनके अनुसार पार्टी में तुच्छ राजनीति को ज़्यादा तवज्जो दी जाती है, और मेहनती कार्यकर्ताओं को कोई नहीं पूछता है।
‘अपने आप को ठगा सा महसूस’ कर रहीं उर्मिला मातोंडकर ने कहा कि उनके मन में पहली बार इस्तीफा देने की बात तब आई जब मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा को 16 मई के लिखे पत्र में उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर ”कोई कार्रवाई” नहीं की गई।
मातोंडकर ने आगे कहा, ‘चिट्ठी में विशेषाधिकार प्राप्त और गोपनीय बातें थीं, जिसे आसानी से मीडिया में लीक करा दिया गया, जो मेरे मुताबिक घोर विश्वासघात था।’ उन्होंने कहा, ‘‘कहने की जरूरत नहीं है कि मेरे द्वारा लगातार विरोध के बावजूद पार्टी में किसी भी व्यक्ति ने माफी नहीं मांगी या मेरे प्रति कोई सरोकार नहीं दिखाया।’’
जैसे ही उर्मिला का त्यागपत्र सार्वजनिक हुआ, काँग्रेस के मीडिया पैनलिस्ट सीआर केशवन ने तंज़ कसते हुए ट्विटर पर लिखा, “जो पार्टी के साथ निष्ठावान रहे हैं, उन्हे राजनीतिक पर्यटकों की वजह से अनदेखा कर दिया जाता है”।
People who have loyally stood by any party tend to get overlooked in favour of political tourists. https://t.co/dp1lZR4Bzk
— C.R.Kesavan ( Modi Ka Parivar ) (@crkesavan) September 10, 2019
हालांकि यह कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि काँग्रेस के चर्चित हस्तियों को ‘यूज़ एंड थ्रो’ के अंतर्गत इस्तेमाल करने की परंपरा काफी पुरानी रही है, और ये बात अमिताभ बच्चन से बेहतर भला कौन जान सकता है। अपने ‘परम मित्र’ और देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सुझाव पर अमिताभ बच्चन ने 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा और उन्होंने इलाहाबाद लोकसभा क्षेत्र से भारी मतों के अंतर से चुनाव जीता। हालांकि जब बोफोर्स घोटाले में अमिताभ बच्चन का नाम उछला, तो उनकी सहायता करने के बजाए काँग्रेस ने उन्हें अकेला ही छोड़ दिया, जिसके कारण अमिताभ बच्चन को मजबूरन राजनीति से ही सन्यास लेना पड़ा।
इसी तरह प्रख्यात अभिनेत्री एवं नृत्यांगना वैजयंती माला बाली के साथ भी काँग्रेस ने यही बर्ताव किया। 1984 में राजीव गांधी के सुझाव पर दक्षिण मद्रास [अब चेन्नई] लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाली वैजयंती माला न केवल चुनाव में विजयी हुईं, बल्कि 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता में बाहर होने के बावजूद उन्होंने अपनी सीट बचा ली। परंतु उन्हे कभी भी पार्टी ने उनका उचित स्थान नहीं दिया, और सोनिया गांधी के विवादास्पद रूप से कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर 1998 में वैजयंती माला ने बताया कि काँग्रेस अब अपने आदर्शों से विमुख हो रही है, और इसतरह से उन्होंने भी त्यागपत्र सौंपते हुये 1999 में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।
सत्ता की लालच में काँग्रेस ने तो हमारे ‘प्रभु श्रीराम’ को भी नहीं छोड़ा। रामानन्द सागर की सुप्रसिद्ध टीवी सीरीज़ ‘रामायण’ में प्रभु श्रीराम का चरित्र निभाने वाले अत्यंत लोकप्रिय रहे अभिनेता अरुण गोविल का काँग्रेस ने 1989 से 1991 तक लोकसभा चुनाव के लिए जमकर इस्तेमाल किया, और 1991 के लोकसभा चुनाव में बतौर काँग्रेस उम्मीदवार भी उतारा। लेकिन जब सीरीज़ में ‘रावण’ का चरित्र निभाने वाले भाजपा के उम्मीदवार अरविंद त्रिवेदी से हार गए, तो काँग्रेस ने उन्हे ऐसे किनारे कर दिया, जैसे किसी ने चाय में से मक्खी निकाल फेंकी हो।
काँग्रेस की ‘यूज़ एंड थ्रो’ नीति के शिकारों में से एक हमारे भोजपुरी स्टार रवि किशन शुक्ल भी थे। काँग्रेस की ओर से 2014 में जौनपुर से चुनाव लड़ने वाले रवि किशन जब चुनाव हार गए, तो काँग्रेस ने उन्हें अरुण गोविल की भांति ही दरकिनार कर दिया। लेकिन जैसे ही उन्होने भाजपा का दामन थामा, 2019 के लोकसभा चुनाव में सबकी उम्मीदों के उलट उन्होंने न केवल गोरखपुर का खोया गढ़ भाजपा को वापिस दिलाया, बल्कि महागठबंधन के कथित एकता को भी मिट्टी में मिला दिया।
ऐसे में अब उर्मिला मातोंडकर के त्यागपत्र से एक बार फिर सिद्ध हुआ है कि काँग्रेस को न शिष्टाचार से मतलब है, और न ही अच्छे आदर्श स्थापित करने से। उन्हे किसी भी स्थिति में सोनिया गांधी और उनके वंश को सत्ता में पुनर्स्थापित कराना है, चाहे इसके लिए उन्हे नैतिकता की बलि ही क्यों न चढ़ानी पड़े!