अफ्रीकी देशों ने चीन को नकारा, थामा भारत का हाथ, अब व्यापार करने के लिए दिया बड़ा ऑफर

अफ्रीका

PC: financialexpress

वर्ष 2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से ही भारत कूटनीतिक तौर पर काफी सक्रिय रहा है। इसी के तहत भारत ने अफ्रीकी देशों के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता दी है। एक तरफ जहां भारत ने कई अफ्रीकी देशों को लाइन ऑफ क्रेडिट की सुविधा देकर वहां अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश की है, तो वहीं भारत ने इन देशों के साथ अपना द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया है। इसमे सबसे अच्छी बात तो यह है कि खुद अफ्रीकी देश भी भारत के साथ अपने आर्थिक रिश्तों को बढ़ावा दे रहे हैं और अफ्रीका में चीन के प्रभाव को कम करने में भारत की सहायता कर रहे हैं। इसी कड़ी में अब अफ्रीका के तीन देशों ने भारत के साथ बार्टर ट्रेड करने में रूचि दिखाई है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक ज़ाम्बिया, घाना और रवांडा ने अपने यहां इनफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के बदले भारत को कोप्पर और सोने जैसे प्राकृतिक संसाधनों का एक्सपोर्ट करने का प्रस्ताव रखा है। इससे ना सिर्फ भारत में इन धातुओं की मांग पूर्ति करने में मदद मिलेगी बल्कि अफ्रीकी देशों के सामने पेश आ रही विदेशी मुद्रा भंडार की समस्या से निपटने में भी सहायता मिलेगी। रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि भारत की कुछ कंपनियाँ इन अफ्रीकी देशों के साथ लगातार संपर्क में हैं और इन देशों के साथ बार्टर ट्रेड करने की योजना को अमलीजामा पहनाने की रणनीति पर काम कर रही हैं।

बता दें कि इन अफ्रीकी देशों के पास प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन तो मौजूद हैं लेकिन इन देशों के सामने विदेशी मुद्रा भंडार की समस्या सामने आ रही है। इन देशों के पास इतनी मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है कि वे अपने यहां ज़रूरी चीजों को इम्पोर्ट कर सकें, इसलिए अब ये देश भारत के साथ बार्टर ट्रेड करने का प्रस्ताव लाने पर मजबूर हुए हैं। बता दें कि अफ्रीकी देश ज़ाम्बिया विश्व में कोबाल्ट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि यही देश कॉपर का विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा उत्पादक है। इस देश में प्लेटिनम और सोना भी प्रचूर मात्रा में प्रोड्यूस किया जाता है। इसी तरह घाना अफ्रीका में सोने का सबसे बड़ा उत्पादक है और बाक्साइट और डायमंड जैसे खनिज पदार्थ भी इस देश में पाये जाते हैं। वहीं रवांडा में भी टिन और टंगस्टन जैसे उत्पादों का काफी मात्रा में उत्पादन होता है।

इन देशों के पास प्राकृतिक संसाधन तो हैं, लेकिन इन देशों में इनफ्रास्ट्रक्चर इतना विकसित नहीं है। ये देश चाहते हैं कि कोई देश इन संसाधनों के मुक़ाबले उनके यहां इनफ्रास्ट्रक्चर के विकास में योगदान दें। एक विकासशील देश होने के नाते भारत में इन संसाधनों की आवश्यकता है, और भारत के पास इन देशों की मांग को पूरा करने की क्षमता भी है। भारत इन देशों में इनफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने में अपनी अहम भूमिका निभा सकता है, इससे भारत का प्रभुत्व इन देशों में पहले के मुक़ाबले बढ़ने के अनुमान है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुछ कंपनियाँ जैसे इरकॉन इंटरनेशनल और स्टेट ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन यानि एसटीसी इन अफ्रीकी देशों के साथ बार्टर ट्रेड करने की योजना पर काम कर रही हैं और इन देशों एक साथ लगातार संपर्क में है। ये कंपनियाँ इससे पहले इन्डोनेशिया के साथ भी इसी तरह के समझौते कर चुकी है। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2000 में भारत ने तेल आयात करने के बदले इन्डोनेशिया में रेलवे लाइन का विकास किया था।

अफ्रीका एक बड़ा बाज़ार है जहां भारत जैसे देश के लिए कई अवसर मौजूद हैं। भारत सरकार भी इस बात को भली भांति जानती है, और पिछले कुछ समय में भारत सरकार ने अफ्रीकी देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने की दिशा में काम किया है। इसी वर्ष जुलाई में भारत के विदेश मंत्री ने संसद को बताया था कि भारत द्वारा अफ्रीकी देशों को 11.58 बिलियन यूएस डॉलर के कुल 191 लाइन ऑफ क्रेडिट जारी किए जा चुके हैं।

मुद्रा के चलन के पहले बार्टर ट्रेड किसी भी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा हुआ करता था। हालांकि, आज के युग में बार्टर ट्रेड की जगह मुद्रा का चलन होता है जिसके कई फायदे हैं। लेकिन इसी के साथ इस नए सिस्टम ने कई मुश्किलें पैदा कर दी हैं। संसाधन होने के बावजूद अगर किसी के पास मुद्रा नहीं है, तो वह कुछ भी आर्थिक लेनदेन करने में अक्षम होता है। यही अब कुछ अफ्रीकी देशों के साथ होता दिखाई दे रहा है। अगर बार्टर ट्रेड पुनर्जीवित होता है, तो इसका अफ्रीकी देशों के साथ-साथ भारत को भी फायदा मिलेगा।

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