हिंदी तोड़ने वाली नहीं बल्कि जोड़ने वाली भाषा है, क्षेत्रीय नेताओं को अमित शाह की बात सुननी चाहिए

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PC: Indian Express

आज यानि शनिवार को हिन्दी दिवस के अवसर पर गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए हिन्दी भाषा का महत्व गिनाया, और इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि देश में ‘एक देश, एक भाषा’ का प्रावधान अब लागू होना चाहिए। इसी के साथ उन्होंने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में घोषित किए जाने के संकेत दिए।

गृहमंत्री अमित शाह ने इसी संबंध में कुछ ट्वीट भी पोस्ट किए –

 

गृहमंत्री अमित शाह के ट्वीट के अनुसार, “भारत की अनेक भाषाएं और बोलियां हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं लेकिन देश की एक भाषा ऐसी हो, जिससे विदेशी भाषाएँ हमारे देश पर हावी ना हों इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने एकमत से हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था”।

परंतु ये बात हमारे क्षेत्रवादी नेताओं को रास नहीं आई, जिसके कारण उन्होंने अमित शाह की चौतरफा आलोचना शुरू कर दी। इनमें सबसे आगे रहे AIMIM के चीफ व लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी, जिन्होंने ये कहने में ज़रा भी देर नहीं लगाई कि हिंदी हर भारतीय की मातृभाषा नहीं है। इनके एक ट्वीट के अनुसार, “क्या आप इस देश की कई मातृभाषाओं की विविधता और खूबसूरती की प्रशंसा करने की कोशिश नहीं कर सकते? अनुच्छेद 29 हर भारतीय को अपनी अलग भाषा और संस्कृति का अधिकार देता है। भारत हिंदी, हिंदू, हिंदुत्व से भी बड़ा है।”

ठीक इसी प्रकार द्रमुक पार्टी के प्रमुख एमके स्टालिन ने ट्वीट किया “हम हिन्दी के थोपे जाने के विरुद्ध शुरू से ही लड़ रहे हैं। आज अमित शाह ने जो बयान दिया है, उससे हमें एक बड़ा झटका लगा है। ये देश की संप्रभुता पर असर डालेगा। हम चाहते हैं कि गृह मंत्री ये बयान वापस लें”-

कुल मिलाकर इन क्षेत्रवादी नेताओं ने हिन्दी भाषा को ‘राष्ट्रभाषा’ बनाने के मुद्दे को इस तरह से दिखाने की कोशिश की है जैसे ये भाषा आम जनता पर थोपी जा रही हो और उनकी मातृभाषा से उन्हें दूर करने का प्रयास किया जा रहा हो। इन नेताओं के बयान से एक बार फिर भाषाओं को लेकर बहस शुरू हो गयी, और सोशल मीडिया पर एक बार फिर ‘#StopHindiImposition और #StopHindiImperialism ट्रेंड होने लगा।

हालांकि सच्चाई इससे कोसों दूर है। हिन्दी तोड़ने वाली नहीं, बल्कि जोड़ने वाली भाषा के तौर पर ज़्यादा जानी जाती है। ऐसे में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा हिन्दी भाषा को देश में एक भाषा के रूप में महत्व देना किसी भी भाषा से न उसका हक़ छीनती है और न ही उनपर हावी होती है। बल्कि ये सभी को एक सूत्र में पिरोने का काम करती है।

यूं तो देश में संविधान के अनुसार 22 राजभाषाएँ और 1500 से ज़्यादा भाषाएँ देशभर में बोली जाती है, लेकिन वास्तव में हिन्दी न केवल संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषाओं में से एक है, बल्कि भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा भी है। हिन्दी, चीनी और अंग्रेजी के बाद विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक भी है।

देश के कई बड़े राज्यों की हिन्दी आधिकारिक भाषा होने के साथ देश के अधिकांश क्षेत्रों में अत्यधिक बोली जाने वाली भाषा है। जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड इत्यादि हिंदी भाषी राज्य में आते हैं। यहीं नहीं, अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही सहित ऐसी कितनी बोलियाँ हैं, जो हिन्दी के उपभाषा के तौर पर भी मानी जाती है। हिन्दी की लोकप्रियता केवल भारत में ही नहीं, बल्कि यूएसए, रूस, सिंगापुर जैसे बड़े-बड़े देशों में भी है। हिन्दी किसी मातृभाषा को नहीं छीनती और न ही दबाती है बल्कि एक क्षेत्र के लोगों को दूसरे क्षेत्र से आसानी से जोड़ने का माध्यम है। यह तो इतनी समावेशी भाषा है, कि दुनिया भर की भाषाओं और बोलियों को भी अपने आप में समाहित कर लेती है।

ऐसे में यदि हिन्दी भाषा को अगर देश की राष्ट्रभाषा बनाया जाता है, तो ये न केवल देश की एकता और अखंडता को सशक्त करेगा, बल्कि लौह पुरुष सरदार पटेल एवं बापू के आदर्शों का उचित सम्मान भी होगा। आइये, इस हिन्दी दिवस हम अपनी-अपनी मातृभाषा के प्रयोग को बढ़ाएं और साथ में हिंदी भाषा का प्रयोग कर पूज्य बापू और लौह पुरुष सरदार पटेल के ‘एक देश-एक भाषा’ के स्वप्न को साकार करने में अपना योगदान दें।

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