‘चंदशोक’ से ‘अशोका द ग्रेट’- रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों ने कैसे एक हिंसक राजा को ‘ग्रेट’ की उपाधि दी

सम्राट अशोक

इतिहासकारों ने कैसे एक हिंसक सम्राट अशोक को ‘ग्रेट’ की उपाधि दी?

देश के इतिहासकारों पर शुरु से ही राजनीतिक प्रभाव रहा है, जिसके माध्यम से अलग-अलग विचारधाराओं का अनुसरण करने वाले इतिहासकारों ने इतिहास में अपनी प्रदूषित सोच से ग्रसित होकर एजेंडे का मिश्रण किया है। ऐसे ही कुछ तथाकथित इतिहासकारों की सूची में नाम आता है JNU की एजेंडावादी प्रोफेसर रोमिला थापर का, जिनकी एक वीडियो आजकल सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो में रोमिल थापर कहती दिख रही हैं कि ‘महाभारत में युधिष्ठिर का चरित्र सम्राट अशोक से प्रेरित था’। अब सोशल मीडिया पर यूजर्स के बीच इस बात को लेकर बहस तेज हो गई है कि प्रोफेसर थापर को महाभारत और सम्राट अशोक के समय में अतंर को लेकर शायद जानकारी नहीं है। इसलिए उन्हें जमकर ट्रोल भी किया जा रहा है।

सम्राट अशोक का वो सच जो हमसे छुपाया गया

लेकिन यह सच है कि रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों ने आज की पीढ़ी के युवाओं को सम्राट अशोक को लेकर काफी झूठ परोसा है। इन इतिहासकारों द्वारा लिखे इतिहास में सम्राट अशोक को ‘अशोका द ग्रेट’ कहकर संबोधित किया जाता है, और उन्हें एक महान शासक और शांतिवादी राजा के रूप में दिखाया जाता है। लेकिन सच यह है कि जिन शिलालेखों के आधार पर कुछ इतिहासकारों ने सम्राट अशोक का गुणगान किया है, ठीक उन्हीं शिलालेखों के थोड़े से अध्यन्न से आपको पता चलेगा कि सम्राट शोक उतने भी ‘ग्रेट’ नहीं थे और उन्हें बेहद क्रूर शासक के तौर पर भी जाना जाता था।

लेकिन सच्चाई को जानने से पहले आपके लिए यह जानना जरूरी है कि आपको आज तक क्या झूठ परोसा गया है। अशोक सम्राट अपने राज के शुरुआती दिनों में एक बेहद क्रूर और बदनाम शासक थे। वे इतने बदनाम थे कि उन्हें चंदशोक कहकर पुकारा जाता था, चंदशोक का मतलब है ‘बेहद क्रूर अशोक’। हालांकि, एजेंडा यहां से शुरू होता है। एजेंडावादी इतिहासकारों की थ्योरी के अनुसार 262 इसापूर्व में जब सम्राट अशोक ने कलिंगा पर आक्रमण किया तो लाखों लोगों को मृत देखकर उन्हें गहरा झटका लगा और उन्होंने हिंसा से आहत होकर बौद्धधर्म को अपना लिया।

क्या बौद्धधर्म को अपनाते ही अशोक एकदम शांतिप्रिय हो गए?

बौद्धधर्म को अपनाते ही सम्राट अशोक एकदम शांतिप्रिय हो गए और हिंसा को उन्होंने सदैव के लिए भुला दिया। रोमिला थापर जैसे इतिहासकार तो यहां तक दावा करते हैं कि बौद्धधर्म को अपनाकर सम्राट अशोक ने अपनी राजगद्दी को त्याग करने तक का विचार कर लिया था। यह झूठ इन इतिहासकारों ने जिन शिलालेखों के अध्यन्न के आधार पर गढ़ा है, अगर वे इन्हीं शिलालेखों का थोड़ी गहनता से अध्ययन करते, तो शायद उन्हें भी अपने एजेंडे पर थोड़ी शर्म महसूस होती।

अब आपको सच बताते हैं। कुछ प्राचीन शिलाओं के अध्यन्न से यह पता चलता है कि कलिंगा युद्ध से लगभग 2 वर्ष पहले ही सम्राट अशोक ने बौद्धधर्म को अपना लिया था, और बौद्धधर्म को अपनाने के पीछे उनका सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक कारण ही था। दरअसल, जब सम्राट अशोक ने मौर्य साम्राज्य पर अपना राज प्रारम्भ किया, तो उनके परिवार में जैन धर्म और अजीविका पंथ का अनुसरण करने वाले कुछ लोगों ने उनका विरोध किया। उस वक्त बौद्धधर्म को जैन और अजीविका का सबसे बड़ा प्रतिद्वंधी माना जाता था, इसलिए अपने पक्ष में समर्थन हासिल करने के लिए सम्राट अशोक ने बौद्धधर्म को अपनाया था।

इतना ही नहीं, प्राचीन श्रीलंकाई लेख ‘अशोकवंदना’ में भी इस बात का उल्लेख है कि बौद्धधर्म को अपनाने के बाद भी सम्राट अशोक का हिंसा-प्रेम समाप्त नहीं हुआ था। अशोकवंदना के अनुसार बौद्धधर्म को अपनाने के बाद उन्होंने धर्म और पंथ के आधार पर जमकर नरसंहार किया। उन्होंने चुन-चुनकर जैन धर्म और अजीविका पंथ के लोगों पर जुल्म ढहाया। अशोकवंदना में लिखा है कि बंगाल में एक बार में ही सम्राट अशोक ने 18 हज़ार अजीविकाओं को मौत के घाट उतार दिया था। भारतीय इतिहास में धर्म के आधार पर इतने बड़े नरसंहार का ये सबसे पहला उदाहरण था।

हालांकि, बौद्धधर्म को अपनाने के बाद भी सम्राट अशोक की क्रूरता का यह कोई एकमात्र उदाहरण नहीं है। अशोकवंदना में एक अन्य घटना का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि जैन धर्म को मानने वाला एक चित्रकार एक ऐसा चित्र बना रहा था जिसमें बुद्धा जैन तीर्थंकर को झुककर प्रणाम कर रहे थे। इस चित्र को देखकर अशोक इतने भड़क गए कि उन्होंने उस चित्रकार को उसके परिवार सहित उसी के घर में बंद कर दिया और घर में आग लगा दी। इतना ही नहीं, उन्होंने एक आदेश में यह तक घोषणा की कि एक जैन के सिर के बदले लोगों को सोने का एक सिक्का दिया जाएगा। स्पष्ट होता है कि उनके कथित रूप से शांतिप्रिय बनने के बाद भी उन्होंने कुछ धर्म के लोगों के खिलाफ जमकर अत्याचार किया।

क्या अशोका ने अपनी राजगद्दी छोड़ने तक का मन बना लिया था?

आज बेशक रोमिला थापर जैसे इतिहासकर सम्राट अशोक को एक महान त्यागी की तरह दिखाने पर तुले हों, लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने राजगद्दी तक पहुँचने के लिए अपने परिवार के सभी पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया था और अपने 99 सौतेले भाइयों को भी मार दिया था। ऐसे में यह दावा कल्पना से परे ही प्रतीत होता है जब रोमिला थापर कहती हैं कि बौद्ध धर्म से प्रेरित होकर सम्राट अशोक ने अपनी राजगद्दी छोड़ने तक का मन बना लिया था।

अशोक को ‘द ग्रेट अशोक’ कहना इसलिए भी बेहद घटिया अतिशयोक्ति है क्योंकि सम्राट अशोक क्रूर होने के साथ-साथ एक असफल राजा भी थे। उनके राज के दौरान ही विद्रोहियों ने उनके साम्राज्य से अलग होना शुरू कर दिया था और उन्होंने कई इलाकों पर से अपना कब्जा को खो दिया था। ऐसे में फिर भी उनको एक महान शासक की तरह प्रस्तुत किए जाने को प्रोपेगैंडा नहीं कहेंगे, तो क्या कहेंगे।

भारत के पारंपरिक प्राचीन लेखों में कहीं भी हमें सम्राट अशोक का ज़िक्र नहीं मिलता है, लेकिन प्राचीन बौद्ध लेखों में हमें अशोक सम्राट का उल्लेख अवश्य देखने को मिलता है। 19वीं सदी के कुछ नेहरुवियन इतिहासकारों ने सम्राट अशोक की छवि को एक सकारात्मकता देने के लिए अपने एजेंडे का इस्तेमाल किया और सरकार द्वारा लोगों के रोज़मर्रा के जीवन में हस्तक्षेप को सही ठहराया गया। इसी एजेंडे के तहत करोड़ो भारतवासियों को झूठ परोसा जाता रहा और समय बीतने के साथ-साथ राजनीतिक इतिहासकारों के एजेंडे को और बल मिलता गया।

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