चंद्रयान 2 : देश की आने वाली पीढ़ी कल रात को कभी नहीं भूलेगी

चन्दू यूं तो हर रात एक आज्ञाकारी बालक की तरह सो जाता था, पर इस बार वो नहीं सो पाया। न ही उसके माता-पिता ने इस बार उसके न सोने की जिद्द का विरोध किया। चन्दू की आँखें घर के टीवी पर सटी हुई थीं, जिसपर जल्द ही चंद्रयान 2 के लैंडिंग का लाइव प्रसारण होने वाला था। लेकिन जब उसे पता चला कि विक्रम का इसरो से संपर्क टूट गया, तो बेचारे चन्दू से अपनी उदासी छुपाए नहीं छुपी। चंदू ने उसी वक्त मन में ठान लिया कि वो एक दिन ऐसे ही एक मिशन को सफल बनाएगा।

ऐसे ही ना जाने कितने चन्दू रहे होंगे, जो चंद्रयान 2 के लैंडर विक्रम से संपर्क टूटने की इस खबर से आहत होगा क्योंकि इसरो के वैज्ञानिक ही नहीं, अपितु पूरा देश इस मिशन को बड़ी उम्मीदों के साथ टकटकी लगाये बैठा था। बच्चा हो या बूढ़ा, आम हो या खास, लगभग पूरे भारत के लिए चंद्रयान 2 मिशन हमारे गर्व और मान से जुड़ा था, जिसकी लैंडिंग देखने के लिए वैज्ञानिकों के साथ देश सारी रात जागा।

जिस आम आदमी ने विज्ञान को स्कूल के बाद शायद ही कभी हाथ लगाया हो, जो गरीब व्यक्ति चंद्रयान 2 तो छोड़िए, रॉकेट, उपग्रह जैसे शब्दों से भी परिचित न हो, उसके लिए भी ये मिशन बेहद महत्वपूर्ण बन गया। बात केवल एक स्पेस मिशन के सफल की ही नहीं थी, अपितु इस मिशन से जुड़े करोड़ों भारतीयों की भावनाओं से जुड़ी थी। सच पूछें तो इस मिशन का अगर किसी पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है तो वो है देश का भविष्य कही जाने वाले मासूम बच्चे।

ऐसे में जब चंद्रयान 2 का ‘विक्रम’ लैंडर से लैंडिंग के समय संपर्क टूट गया , तो इससे इसरो के वैज्ञानिक और करोड़ों देशवासी निराश हुए, परंतु अगर कोई इस घटना से सबसे ज़्यादा मानसिक रूप से प्रभावित हुआ होगा, तो वो शायद देश का हर वो छोटा बच्चा, जो एक वैज्ञानिक बनने के सपने सँजो रहा है, और जिसके मन में आगे चलकर कुछ कर गुजरने और इस तरह के अन्तरिक्ष मिशन को सफल बनाने की भावना उफान मार रही होगी।

पर क्या हम ये भूल गए हैं कि असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी होती है? अन्तरिक्ष तकनीक में शिरोमणि समझे जाने वाली अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा को भी चंद्रमा पर पहुँचने के लिए एढ़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा था। हमारे पड़ोसी चीन के लिए भी चंद्रमा पर पहुँचना कोई बच्चों का खेल नहीं था। जब बड़े से बड़े देश को भी चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए एक से ज़्यादा प्रयास करने पड़े हो, तो यह तो हमारा पहला ही प्रयास था, जिसमें हम ओर्बिटर के सफल सेपरेशन [separation] से 95% तक सफल भी हुये हैं। ऐसे में पहले ही प्रयास के बाद हार मानना कहाँ तक उचित है?

यही नहीं, अन्तरिक्ष में हमारे लिए कीर्तिमान रचने वाले भारतीयों के लिए भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करना सरल बिलकुल नहीं था। चाहे अन्तरिक्ष में कदम रखने वाले प्रथम भारतीय, स्क्वाड्रन लीडर [तत्कालीन] राकेश शर्मा हों, या फिर इसरो के अन्तरिक्ष टेक्नोलॉजी को नई ऊंचाइयों में ले जाने वाले एस नंबी नारायणन हों, या फिर मंगलयान और अनेकों सैटेलाइट के सफल प्रक्षेपण में सूत्रधार रहे इसरो के पूर्व प्रमुख एएस किरण कुमार ही क्यों न हो, ऐसे असंख्य उदाहरण हैं, जिन्होंने पर्याप्त साधन और अवसरों के अभाव के बावजूद देश का नाम ऊंचा करने का भरसक प्रयास किया।

उनकी जीवन यात्रा छोटे बच्चों और युवाओं के मन मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव डालने में सक्षम रहा है। कहा जाता है कि पूर्व इसरो प्रमुख एएस किरण कुमार के अन्तरिक्ष वैज्ञानिक बनने के पीछे एक प्रमुख कारण यह भी था कि वे राकेश शर्मा के रूसी अन्तरिक्ष यान द्वारा प्रक्षेपित किए जाने से काफी निराश भी थे। शायद युवा किरण कुमार ने भी कभी सोचा होगा, ‘यदि रूस अपने व्यक्तियों और हमारे राकेश शर्मा को अन्तरिक्ष भेज सकता है, तो हम क्यों नहीं?”

हालांकि इसरो चीफ समेत पूरी वैज्ञानिकों की टीम जिस तरह से काम कर रही थी और उसे बच्चे टीवी स्क्रीन और मोबाइल पर नजरे गड़ा कर देख रहे थे, वो अपने आप में भविष्य के लिए एक बेहद सकारात्मक संदेश है। हमारे बीच न जाने कितने ऐसे के सिवान होंगे, जो चंद्रयान 2 पर आए संकट से निपटने के लिए कोई नायाब उपाय निकाल रहे होंगे। हमारे बीच ऐसे न जाने कितने एस नंबी नारायण होंगे, जो जटिल से जटिल स्पेस मिशन को सरलता से प्रक्षेपित करने के लिए बेहद किफ़ायती स्पेस तकनीक तैयार कर सकते हैं।

देश विदेश से कई प्रमुख हस्तियों ने भारत को इस संकट की घड़ी में न केवल समर्थन दिया, अपितु भारत को अपने स्पेस मिशन को और मजबूत करने के लिए प्रोत्साहित भी किया। सच कहें तो चंद्रयान 2 पर आया वर्तमान संकट कोई असफलता नहीं है, बल्कि आने वाले कल में इसरो को नई ऊंचाइयों पर पहुँचने के लिए एक सुनहरा अवसर है। आवश्यकता है, तो बस हमारे बीच छुपे अनेकों चन्दू में से नंबी नारायण और एपीजे अब्दुल कलाम जैसों को तराशने की।

 

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