लगता है चीन और अमेरिका के बीच एक बार फिर तनातनी होने वाले है, जिसमें इस बार मुख्य विषय होगा दलाई लामा का स्वास्थ्य। जहां चीन दलाई लामा के बाद तिब्बत पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है, तो वहीं अमेरिका इस बार चीन के इरादों पर पानी फेरने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहा है।
पिछले कुछ समय से तिब्बत के प्रमुख माने जाने वाले बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का स्वस्थ्य ठीक नहीं चल रहा है। ऐसे में उनके स्वास्थ्य को लेकर उमड़ रही चिंताओं के बीच अमेरिका अब चीन के लिए कुछ सीमाएं तय करने पर विचार कर रहा है। अमेरिका ऐसा करके यह सुनिश्चित करना चाहता है कि जब तिब्बतवासी अपने आध्यात्मिक गुरु का उत्तराधिकारी चुने, तो चीन उसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप न कर सके।
सूत्रों के अनुसार वरिष्ठ अधिकारी से मिली चेतावनी और अमेरिकी कांग्रेस में विचाराधीन एक विधेयक के जरिए अमेरिका चीन को पहले ही यह बात स्पष्ट कर देने पर विचार कह रहा है कि अगर वह उत्तराधिकारी चुनने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करेगा तो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपमान और प्रभावी कार्रवाई झेलनी पड़ेगी।
परंतु दलाई लामा का स्वास्थ्य चीन और अमेरिका के बीच तनातनी का विषय क्यों है? आखिर चीन तिब्बत पर अपना वर्चस्व जमाने के लिए इतना उतावला क्यों है। इसके पीछे के इतिहास पर हमें थोड़ा प्रकाश डालना होगा। 14वें दलाई लामा के नाम से प्रसिद्ध तेनजिंग ग्यात्सो को 1939 में महज चार वर्ष की आयु में दलाई लामा के पद पर सुशोभित किया गया था। 1959 में तिब्बत ने चीन के विरुद्ध विद्रोह किया, तो चीनी कार्रवाई से बचने के लिए दलाई लामा ने सीमा पार करते हुए भारत में प्रवेश किया और धर्मशाला के मैकलोडगंज में अपनी सरकार की स्थापना की। तभी से वे भारत में रहने के लिए विवश हैं, और चीन से तिब्बत की स्वायत्ता के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
अब 84 वर्ष के हो चुके दलाई लामा को इस वर्ष के प्रारम्भ में सीने में संक्रमण के चलते अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था। हालांकि, अभी ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी कोई गंभीर समस्या है। परंतु तिब्बती कार्यकर्ता और चीन इस बात से भली-भांति परिचित है कि दलाई लामा का निधन हिमालयी क्षेत्र (तिब्बत) को ज्यादा स्वायत्तता देने के उनके प्रयासों के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा। वहीं, माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच की कड़वाहट और बढ़ सकती है।
चीन ने दलाई लामा के प्रतिनिधियों से 9 सालों तक कोई बातचीत नहीं की है। चीन ने हमेशा यही संकेत दिए हैं कि तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का उत्तराधिकारी वही चुनेगा। एक ऐसा उत्तराधिकारी चुनेगा जो तिब्बत में उसके निरंकुश शासन का समर्थन करेगा। हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस में पेश किए गए एक विधेयक में किसी भी चीनी अधिकारी के तिब्बती बौद्ध उत्तराधिकार परंपराओं में हस्तक्षेप पर प्रतिबंध की अपील की गई है। पूर्व एशिया के लिए विदेश मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी डेविड स्टील वेल ने कांग्रेस के समक्ष ये स्पष्ट किया है कि ‘अमेरिका तिब्बतियों की अर्थपूर्ण स्वायत्तता के लिए दबाव बनाता रहेगा’।
सच पूछें तो चीन कई कारणों से अब बैकफुट पर खड़ी है। एक तो ट्रेड वॉर के कारण अमेरिका से उसके संबंध में पहले ही खटास आ चुकी है। इसके अलावा वो भारत के विरुद्ध पाक को अप्रत्यक्ष समर्थन देकर अपने पड़ोसी देशों के बीच अलग थलग सा पड़ गया है। ऐसे में यदि चीन ने तिब्बत में ज़रा भी चूक की, तो वो अमेरिका को इस देश के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने पर विवश कर देगा, जो चीन किसी भी स्थिति में नहीं चाहेगा।