महाराष्ट्र भाजपा का टिकट बांटने से पहले ‘डैमेज कंट्रोल प्लान’, कोई नेता नहीं होगा पार्टी से नाराज

देवेंद्र फडणवीस

PC: dnaindia

2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत प्राप्त करने के बाद अब भाजपा का अगला लक्ष्य महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में बहुमत प्राप्त करने की है। 21 अक्टूबर को होने वाले चुनावों में जहां महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस सत्ता वापसी के लिए चुनौती पेश करेंगे, तो वहीं हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सत्ता वापसी की राह देख रहे होंगे। दोनों ही सीएम अपने-अपने राज्य में जीत के लिए बिल्कुल निश्चिंत नजर आ रहे हैं।

हालांकि अभी सभी लोगों की निगाहें देवेंद्र फडणवीस पर हैं, जो अपने पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले भाजपा के पहले और महाराष्ट्र के कुल दूसरे मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले केवल वसंत राव नायक ही यह उपलब्धि प्राप्त कर पाये थे, जब उन्होंने लगभग 12 वर्ष तक महाराष्ट्र में शासन किया था।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अपने राज्य में उसी तरह लोकप्रिय हैं, जैसे राष्ट्रीय स्तर पर पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि सत्ता में बने रहने के लिए उन्हे सशक्त और जुझारू नेतृत्व की आवश्यकता पड़ेगी, जिसके लिए उन्हें जमीनी स्तर पर कुशल नेतृत्व तैयार करना पड़ेगा। चुनाव से पहले राज्य की स्थिति को भाँपते हुये देवेंद्र फडणवीस ने उन्हीं नीतियों का प्रयोग किया जिसका उपयोग कर पीएम नरेंद्र मोदी ने पहले गुजरात में और फिर भारत में ख्याति प्राप्त की।

देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में टिकट न मिलने वाले नेताओं के लिए एक कमेटी तैयार की है, जिससे पार्टी के जुझारू कार्यकर्ता टिकट न मिलने से पार्टी न छोंड़ें बल्कि पार्टी के लिए आगे भी काम करते रहें। हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत के दौरान एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हर सीट के लिए हमारे पास तीन से पाँच उम्मीदवार हैं। परंतु टिकट तो केवल एक ही उम्मीदवार को मिलती है। हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती टिकट बांटने के बाद [संभावित] विद्रोह को नियंत्रण में करना है। हम हर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में एक डैमेज कंट्रोल टीम नियुक्त करेंगे, जिससे टिकट न मिलने वालों को हम शांत रख सकें”।

भाजपा के एक और नेता ने हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत के दौरान कहा, “हमने टिकटों के लिए इसी प्रकार की रेस उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव के दौरान देखी थी। वहाँ पर कुशल प्रबंधन के कारण हमने प्रचंड बहुमत से उत्तर प्रदेश में विजय प्राप्त की थी। महाराष्ट्र इतना बड़ा राज्य है कि यहाँ पर हम किसी प्रकार की गलती नहीं कर सकते!”

यह न केवल एक सराहनीय प्रयास है, परंतु वर्तमान राजनीति को देखते हुये यह एक प्रभावी कदम भी है। इसी नीति के कारण 2001-2013 तक नरेंद्र मोदी ने गुजरात में अपना वर्चस्व बरकरार रखा था। उनके प्रधानमंत्री बनने के बावजूद उनके इसी मॉडल पर चलते हुये गुजरात भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनावों में भी विजय प्राप्त की। उधर महाराष्ट्र में पिछले कई महीनों से पार्टी में कुशल नेतृत्व की कमी के कारण कई अहम नेता काँग्रेस और एनसीपी छोड़कर भाजपा का दामन थाम रहे हैं। इनमें प्रमुख नेताओं के रूप में राधाकृष्ण विखे पाटिल और उनके पुत्र, एनसीपी के कद्दावर गणेश नाईक इत्यादि शामिल हैं। ऐसे में अपना नेतृत्व मजबूत रखने लिए और किसी भी प्रकार के विद्रोह को नियंत्रण में करने लिए भाजपा ने सही समय पर इस निर्णय को लागू किया है।

पीएम मोदी और अमित शाह की नीतियों पर चलते हुए फडणवीस इस समय महाराष्ट्र के सबसे लोकप्रिय युवा नेता बन गए हैं। कई लोग तो भविष्य में इन्हें भाजपा की कमान संभालते हुये भी देखना चाहते हैं।

महाराष्ट्र का सीएम बनने तक का सफर फडणवीस के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था। जब 2014 में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सीट प्राप्त कर शिवसेना के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी, तब देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री के लिए चुने जाने पर मीडिया और विपक्ष के कई नेताओं ने सवाल उठाए थे। धीरे-धीरे शिवसेना ने भी बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिये थे।

परंतु इन सभी चुनौतियों को पार करते हुये देवेंद्र फडणवीस आज महाराष्ट्र के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक बन चुके हैं। उनके नेतृत्व में भाजपा ने महाराष्ट्र के कोने-कोने में अपना प्रभुत्व स्थापित कर दिया है। जिस बीएमसी चुनाव को कई विश्लेषक अभेद्य मानते थे, उसमें भी भाजपा ने 82 सीट जीतते हुए सिद्ध कर दिया है कि वे शिवसेना से किसी मामले में कम नहीं हैं। भाजपा के बढ़ते प्रभुत्व को देखते हुये शिवसेना, जो कुछ समय तक तीसरे मोर्चे/‘महागठबंधन’ से जुड़ने के लिए उतावला था, एक बार फिर एनडीए का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गया है।

महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के चुनाव जीतने के आसार बहुत ज़्यादा हैं, और ऐसे में राज्य नेतृत्व को सशक्त करने के लिए महाराष्ट्र भाजपा का वर्तमान निर्णय न केवल प्रशंसनीय है, बल्कि भविष्य की स्थिति को देखते एक परिपक्व निर्णय भी है। यदि इन्हीं नीतियों पर राज्य में भाजपा काम करती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब देवेंद्र फडणवीस सही मायनों में भाजपा के वास्तविक उत्तराधिकारी कहलाने योग्य होंगे।

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