पहले स्लमडॉग मिलेनियर, अब गली ब्वॉय- ऑस्कर पाने के लिए क्या जरूरी है भारत की धूमिल छवि दिखाना?

अपर्णा सेन

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हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी भारत से प्रतिष्ठित एकेडमी अवार्ड्स यानि ऑस्कर अवार्ड्स के लिए कई फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ फिल्म को चुनकर ऑस्कर के ‘सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म’ श्रेणी के लिए नामांकित करना था। इस बार चुनौती बहुत कड़ी थी, क्योंकि तय मानकों के अनुसार रिलीज़ फिल्मों में देश भर से काफी उत्कृष्ट फिल्में देखने को मिली थी। परंतु उन सबको दरकिनार करते हुये ज़ोया अख्तर की मूवी ‘गली बॉय’ को ऑस्कर अवार्ड्स के लिए भारत की ओर से आधिकारिक एंट्री के तौर पर नामांकित किया गया। इसके कारण सोशल मीडिया पर गली बॉय के चुनाव को लेकर ज्यूरी कमेटी को काफी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा।

वैसे ‘गली बॉय’ को ऑस्कर में एंट्री मिलने पर इतना विवाद क्यों हो रहा है? इसे ऑस्कर हेतु चयन करने वाली वाली ज्यूरी कमेटी आखिर आलोचना का केंद्र क्यों बनी है? ऐसा इसलिए है, क्योंकि ज्यूरी कमेटी की प्रमुख कोई और नहीं, बल्कि बंगाली निर्देशक अपर्णा सेन हैं। जी हाँ, ये वही अपर्णा सेन हैं, जिन्होंने 48 अन्य हस्तियों के साथ पीएम मोदी को ‘अल्पसंख्यकों’ की कथित ‘मॉब लिंचिंग’ को रोकने के लिए पत्र लिखा था, जिसमें इन हस्तियों ने ‘जय श्री राम’ को एक हिंसक युद्धघोष भी कहा था।

पूर्व अभिनेत्री एवं निर्देशक अपर्णा सेन काफी पहले से ही राष्ट्रवादी विचारधारा की धुर विरोधी रही हैं। 2014 में बॉलीवुड के 60 हस्तियों ने जब भाजपा को वोट न देने के लिए एक सार्वजनिक पत्र लिखा था, तो उनमें अपर्णा सेन भी शामिल थीं। इस वर्ष भी अपर्णा सेन ने 48 अन्य हस्तियों के साथ पीएम मोदी को एक सार्वजनिक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने देश के धर्मनिरपेक्षता को हो रहे कथित नुकसान पर अपनी चिंता जताई थी, और कहा था कि सरकार की आलोचना करना ‘देशद्रोह’ नहीं होता, जिसकी आड़ में वे महाराष्ट्र में पीएम मोदी की हत्या की योजना तैयार करते पकड़े जाने वाले नक्सलियों का बचाव भी कर रही थी।

ये वही अपर्णा सेन है, जो सहिष्णुता की दुहाई देती हैं, परंतु मीडिया जब उनसे उनके पत्र के बारे में कुछ सवाल पूछना चाहती है, तो वे मुंह मोड़ लेती हैं। ये वही अपर्णा सेन हैं जो हृदयाघात से मरने वाले एक बाइक चोर के लिए आंसू बहाने लगती हैं लेकिन जब दिल्ली के हौज काजी इलाके में असामाजिक तत्वों द्वारा मंदिर तोड़ा जाता है तो इन्हें कुछ नहीं दिखाई देता।

‘गली बॉय’ का ऑस्कर के लिए चुने जाने के पीछे की मंशा बिल्कुल स्पष्ट है। 2009 में डैनी बॉयल द्वारा ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ ऑस्कर में नॉमिनेटेड हुई थी, जिसमें भारत को एक बेहद ही पिछड़े देश के तौर पर दिखाया गया था। इस फिल्म में मुंबई के एक स्लम एरिया से पूरे भारत की तस्वीर दिखाई गई है, लेकिन असलियत कुछ और ही है। इसके बावजूद इस फिल्म को ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक सहित 8 पुरस्कार प्राप्त हुए थे, जिसमें ए.आर. रहमान को संगीत के लिए 2 और रेसूल पूकुट्टी को साउंड मिक्सिंग के लिए मिला पुरुस्कार शामिल है। बता दें कि ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ को निर्देशित करने के लिए डैनी बॉयल को मीरा नायर द्वारा निर्देशित 1988 में आई फ़िल्म ‘सलाम बॉम्बे’ से प्रेरणा मिली थी, जिसे कान फिल्म फेस्टिवल में कई पुरुस्कार भी मिले थे। उसी समय से भारत की उन फिल्मों को ही अंतर्राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए चुना जाता है जिसमें झुग्गी झोपड़ियां व पिछड़ापन मुख्य रूप से दिखाया गया होता है और इसी पिछड़ेपन की छवि को ‘गली बॉय’ में भी बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया है। ये फिल्म स्वयं ‘8 माइल’ नामक फिल्म से प्रेरित है, और इसमें ‘जिंगोस्तान’ जैसे गानों से राष्ट्रवाद का मज़ाक उड़ाने का प्रयास किया गया है। ये फिल्म भले ही स्ट्रीट रैप पर केन्द्रित है, पर इसके द्वारा जिस तरह हमारे युवा पीढ़ी को भ्रमित करने के प्रयास किया गया है, वो किसी से नहीं छुपा है। ऐसे में अब सवाल उठता है कि अपर्णा सेन कुछ फिल्मकारों द्वारा बनाई हुई भारत की पिछड़ी छवि को विश्व के समक्ष क्यों पेश करना चाहती हैं? क्या इसके पीछे इनका एजेंडा नहीं दिखता?

भारत ने आज तक सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म के लिए कभी ऑस्कर नहीं जीता है, और अब तक केवल 3 बार इस श्रेणी में नामांकित हुई, जिसमें ‘मदर इंडिया’, ‘सलाम बॉम्बे’ और ‘लगान’ शामिल है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब अच्छे फिल्मों को दरकिनार कर ऑस्कर के लिए भारतीय फिल्मों का चयन करने वाली ज्यूरी कमेटी ने निम्नतम फिल्मों को ऑस्कर भेजा हो।

1998 में जब सभी को लग रहा था कि राम गोपाल वर्मा द्वारा निर्देशित सत्या को ऑस्कर के लिए भेजा जाएगा, तो उसके स्थान पर ज्यूरी ने सभी को हैरत में डालते हुये ‘जींस’ नामक एक तमिल कॉमेडी फिल्म को भेजा। इसी प्रकार से 2006 में जब ऑस्कर के लिए भारत से फिल्म भेजने का प्रश्न उठा, तो कई अच्छी फिल्मों को पीछे छोड़ते हुये ‘एकलव्य’ को नामांकित किया गया था।

इसी प्रकार जब सभी को पूर्ण विश्वास था कि रितेश बत्रा द्वारा निर्देशित ‘द लंचबॉक्स’ ऑस्कर के लिए नामांकित की जाएगी, तो उनकी उम्मीदों पर पानी फेरते हुये ज्यूरी कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष गौतम घोष ने ‘द गुड रोड’ नामक एक गुजराती फिल्म को नामांकन के लिए भेजा। दिलचस्प बात तो यह है कि गौतम घोष भी उन्ही 49 हस्तियों में शामिल हैं, जिन्होंने पीएम मोदी को वो विवादास्पद पत्र लिखा था।

ऐसे में अपर्णा सेन ने जिस तरह वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों को दरकिनार करते अपने एजेंडे को सर्वोपरि रखा है, वो न केवल देश के लिए, बल्कि भारतीय सिनेमा के लिए भी हानिकारक है। जब तक अपर्णा सेन जैसे लोग ऑस्कर के लिए भारतीय फिल्में चुनते रहेंगे तब तक भारत को ऑस्कर तो छोड़िए, ऑस्कर में नामांकन भी नहीं मिलेगा।

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