चीन ईस्ट इंडिया कंपनी से भी ज्यादा गुंडागर्दी करता है, पहले कर्ज देता है फिर हड़प लेता है जमीन- मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति

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PC: reuters

क्षेत्रफल के मामले में दुनिया के सबसे बड़े देशों की सूची में रूस और कनाडा के बाद चीन का ही नाम आता है, लेकिन इतिहास प्रमाण रहा है कि सीमाओं को बढ़ाने की इस देश की भूख कभी मिटी नहीं है। सबसे रोचक बात तो यह है कि चीन ही वह देश है जिसके पास दुनिया में सबसे ज़्यादा पड़ोसी हैं। चीन के कुल मिलाकर 20 पड़ोसी देश हैं, और सभी के साथ इस देश के सीमा विवाद है। चीन इतना शातिर है कि वह अपने पड़ोसी ताइवान को तो देश ही नहीं मानता है और वहां पर भी चीन का राज़ ही चाहता है।

चीन की यह गुंडागर्दी सिर्फ उसके पड़ोस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हिन्द महासागर में मालदीव जैसे देश पर भी उसने अप्रत्यक्ष रूप से अपना कब्जा जमाने की कोशिश की थी। मालदीव में पिछली सरकार चीन की अंधभक्ति में मालदीव के हितों के खिलाफ जाकर ऐसे कई समझौतों पर अपनी सहमति जताती गई जिसके करण इस टापू देश के संप्रभुता खतरे में आई गई थी। यही कारण है कि अब मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति ने चीन की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से करते हुए कहा है कि चीऩ ने ईस्ट इंडिया कंपनी से ज़्यादा ज़मीन पर कब्जा कर लिया है।

दरअसल, बुधवार को मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने हिंद महासागर सम्मेलन को संबोधित करते हुए चीन पर आरोप लगाया कि उसने अब तक ईस्ट इंडिया कंपनी से भी अधिक जमीन हड़प ली है। नशीद ने कहा, चीऩ ने एक भी गोली चलाए बिना ईस्ट इंडिया कंपनी की तुलना में ज्यादा जमीन हथिया लिया है। नशीद ने चीन पर इशारों ही इशारों में हमला बोलते हुए कहा ‘सरकार पर शिकंजा कसा, कानूनों में तबदीली की, ज्यादा कीमतों के कॉन्ट्रैक्ट लिए और इसकी कीमत के कारण कारोबारियों की योजना असफल हो गयी, व्यावसायिक कर्ज दिया और फिर इसे वापस करने में असमर्थ रहे। अब तक रकम को लौटा नहीं सके तो संप्रभुता को दांव पर लगा दिया। मैं विशेषकर चीन की तरफ इशारा कर रहा हूँ।’ बता दें कि ये वहीं मोहम्मद नशीद हैं जो साल 2008 से 2012 तक मालदीव के चौथे राष्ट्रपति रह चुके हैं।

बता दें की चीन पर समय-समय पर दूसरे देशों की संप्रभुता को नकारने का आरोप लगता रहता है। चीऩ ने मालदीव को भी अपने कर्ज़ के जाल में फंसाने की कोशिश की, और उसमें वह काफी हद तक सफल भी हुआ। इसी को प्रकाशित करते हुए नशीद ने पिछले हफ्ते एक थिंक टैंक की बैठक में बोलते हुए कहा था कि चीनी परियोजनाओं की लागत बहुत अधिक है और 2020 के बाद से देश के बजट का 15 फीसदी विभिन्न चीन की कंपनियों का बकाया कर्ज चुकाने पर खर्च होगा। उन्होंने इसके अलावा कहा था ‘उन्होंने (चीन) काम किया और हमें बिल भेज दिया। यह कर्ज की ब्याज दरों के रूप में नहीं है, बल्कि लागत ही है। उन्होंने (चीऩ) हमें अधिक बिल दिया और हमसे वह वसूला जा रहा है। और अब हमें ब्याज दर और मूल राशि चुकानी होगी।’

और सिर्फ मालदीव ही नहीं, आर्थिक तौर पर कमजोर दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जिन्हें चीऩ अपने कर्ज़ जाल में फंसाकर उनपर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करता रहा है। ऐसे देशों का नाम हैं जिबुती, किर्गिस्तान, लाओस, मालदीव, मंगोलिया, मोंटेनेग्रो, पाकिस्तान और तजाकिस्तान। इन देशों ने यह अनुमान तक नहीं लगाया कि कर्ज से उनकी प्रगति किस हद तक प्रभावित होगी। कर्ज नहीं चुकाने की स्थिति में ही कर्ज लेने वाले देशों को पूरा प्रोजेक्ट उस देश के हवाले करना पड़ता है। श्रीलंका पर भी चीन का बेशुमार कर्ज है। पिछले साल तो इस देश को एक अरब डॉलर से ज्यादा कर्ज के कारण चीन को हंबनटोटा पोर्ट ही सौंपना पड़ गया था। चीन पहले तो छोटे देशों को भारी-भरकम ब्याज दरों पर लोन देता है और जब वे छोटे देश उस लोन को चुका पाने में असमर्थ हो जाते हैं तो चीन वहाँ पर जमीन लीज़ पर ले लेता है और इसी तरह वह अपनी सीमाओं को बढ़ाने के एजेंडे को आगे बढ़ाता है। इसी बात को अब मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति ने अपने इस बयान से प्रकाशित किया है। उनका यह बयान ऐसे देशों के लिए संदेश है जो अब भी चीन से लगातार नज़दीकियाँ बढ़ाते जा रहे हैं लेकिन उनको चीन के प्लान के बारे में कुछ पता नहीं है, और ऐसे ही देशों में पाकिस्तान का नाम भी आता है। ऐसे देशों को तुरंत चीन के नापाक मंसूबों को पहचानकर अपने देशों में चीऩ के प्रभाव को कम करने की दिशा में काम करने की ज़रूरत है।

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