किसी भी देश की मीडिया का काम होता है अपने दर्शकों तक खबरों को पहुंचाना, और उन्हें सच दिखाना। मीडिया के पास सरकार को सुझाव देने का भी अधिकार है और सरकार की गलत नीतियों को लेकर सरकार की आलोचना करना भी उसका कर्तव्य है। लेकिन अफसोस! भारतीय मीडिया के साथ ऐसा नहीं है। सुबह से शाम तक भारतीय न्यूज़ चैनल्स पर सरकार को नीति बनाने के सुझाव नहीं, बल्कि सरकार को नीति बनाने के आदेश दिये जाते हैं। इन न्यूज़ चैनल्स के स्टूडियोज़ में ही सरकारी नीतियों को बनाने का काम किया जाता है और फिर उन्हें सरकार पर थोपने की कोशिश की जाती है। ऐसा लगता है मानो सभ्यता और भारतीय मीडिया में कोई सालों पुरानी दुश्मनी हो। भारतीय मीडिया के ऐसे बर्ताव से केवल भारत ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को शर्मिंदा होना पड़ता है, और ऐसा ही हमें मंगलवार अमेरिका में देखने को मिला।
मंगलवार अमेरिका में जब प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे, तो भारतीय मीडिया चीख-चीख कर उनसे सवाल पूछ रही थी। कुछ पत्रकार अपना सवाल पूछने के लिए जहां ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे, तो वहीं कई बार तो दो पत्रकार ही ज़ोर ज़ोर से अपने-अपने सवालों की बौछार करे जा रहे थे। इसे देखकर खुद पीएम मोदी भी परेशान दिखाई दिये। इसी बीच एक पत्रकार ने प्रश्न पूछा कि पाकिस्तान में आतंक के कैम्प चलाये जा रहे हैं, उसपर अमेरिकी राष्ट्रपति का क्या कहना है? इसपर अमेरिकी राष्ट्रपति ने पीएम मोदी से कहा कि वे ऐसे रिपोर्टर्स कहां से लेकर आते हैं? वे हैरान हैं।
दरअसल, अभी जहां पूरी दुनिया भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ रहे तनाव को कम करने की दिशा में कदम उठाने के लिए भारत सरकार को आग्रह कर रही है, तो वहीं भारतीय मीडिया के प्राइम टाइम का मुद्दा अब भी पाकिस्तान ही होता है। पाकिस्तान के साथ हर वक्त तनाव की स्थिति में रहना ही शायद भारतीय मीडिया की TRP की भूख का इलाज़ है। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जहां भारत आज महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, तो वहीं भारतीय मीडिया आज भी पाकिस्तान को लेकर ही अपनी खबरें करना चाहती है और जब भी कभी उसे किसी वैश्विक नेता से कोई प्रश्न करने का मौका मिलता है, तो उनके सभी सवाल पाकिस्तान से शुरू होकर पाकिस्तान पर आकर ही खत्म हो जाते हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से अब तक भारतीय मीडिया की भूमिका को अहम माना जाता था परन्तु वर्तमान में भारतीय मीडिया की पत्रकारिता बेहद उबाऊ, विनम्र और ऊर्जा विहीन हो चुकी है। न्यूज़ चैनल्स और खुद को वरिष्ठ पत्रकार कहने वाले केवल अपना एजेंडा साधने और ऐसे मुद्दों को तूल देने में व्यस्त रहते हैं जिससे पत्रकारिता की गुणवत्ता नहीं टीआरपी में उछाल आये। टीआरपी की दौड़ ने तथ्यों को दरकिनार किया है और बनावटी और पक्षपाती खबरों ने अपनी जगह को मीडिया के क्षेत्र में मजबूत किया है। ये टीआरपी की भूख ही है कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर किस तरह का व्यवहार करना चाहिए और किन सवालों को महत्व देना चाहिए इसकी समझ भी आज के पत्रकारों में देखने को नहीं मिलती है। ट्रम्प का ये कहना ‘ऐसे रिपोर्टर्स कहां से लेकर आते हैं?’ अपने आप आप में भारतीय मीडिया के लिए शर्मनाक है और देश के प्रधानमंत्री को भी इस शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा है। चीख-चीख कर सवाल करने वाले हमारे पत्रकारों को अपनी पत्रकारिता का आंकलन करना चाहिए।
वास्तव में भारतीय मीडिया को अपने स्तर में सुधार लाने की ज़रूरत है। केवल टीआरपी के लिए निम्न स्तर की रिपोर्टिंग करना भारतीय मीडिया का नया फैशन बन चुका है और मीडिया का यही रवैया भारत के बाहर भी जारी रहता है। किस वक्त क्या सवाल पूछना है? भारतीय मीडिया को आजतक यही समझ नहीं आया है। एक तरफ जहां यह मीडिया कई बार मोदी सरकार की कूटनीति को लेकर सवाल उठाता है, तो वहीं यही मीडिया खुद पूरे विश्व में भारत की छवि को बदनाम करने का काम करता है। भारतीय मीडिया को यह समझ लेना चाहिए कि चींखने चिल्लाने से नहीं, बल्कि बढ़िया स्तर की रिपोर्टिंग ही भारत की छवि को बेहतर करने में मदद मिलेगी।