न्यूक्लियर हथियारों के इस्तेमाल को लेकर भारत की नीति क्या होनी चाहिए? क्या भारतीय सेना को किसी तरह के ढांचीय बदलाव की ज़रूरत है? अरब सागर के किस द्वीप पर भारत को अपना एयर बेस बनाना चाहिए? क्या भारत को महंगे एयरक्राफ्ट कैरियर्स की ज़रूरत है? क्या भारत को दुनिया की नई चुनौतियों से निपटने के लिए विशेष स्पेस कमांड और साइबर कमांड की ज़रूरत है? ये सभी सवाल देश की रक्षा नीति से जुड़े हुए हैं और इन सवालों के जवाब ही भारत की भविष्य की रक्षा नीति को तय करेंगे। इन्हीं प्रश्नों के उत्तर को खोजने के लिए पिछले वर्ष अप्रैल में भारत सरकार द्वारा एक डिफेंस प्लानिंग कमेटी (DPC) को स्थापित किया गया था और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को इसका नेतृत्व करने का जिम्मा सौंपा गया था। इस कमेटी को इसलिए बनाया गया था ताकि नए भारत के सामने आने वाली नई चुनौतियों से निपटने के लिए नई रक्षा प्रणाली का एक ब्लूप्रिंट तैयार किया जा सके और अच्छी बात यह है कि डोभाल के नेतृत्व वाली इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट को तैयार कर भी लिया है। यह कमेटी अगले महीने अपनी रिपोर्ट को सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के सामने पेश करेगी।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर मंत्रिमंडलीय समिति इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लेती है तो इस रिपोर्ट के कुछ अंशों को अगले महीने सार्वजनिक भी किया जा सकता है। बता दें कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्र सरकार का पूरा फोकस भारतीय सुरक्षा को मजबूती देना है। फिर चाहे वह गृह मंत्री द्वारा आतंक विरोधी कार्यक्रम ‘नेटग्रिड’ को पुनर्जीवित करना हो, या फिर भारत की आंतरिक सुरक्षा एजेंसी NIA को और ज़्यादा ताकतवर बनाना हो, इन सभी क़दमों से स्पष्ट है कि केंद्र सरकार भारतीय सुरक्षा तंत्र को विश्वस्तरीय बनाना चाहती है। सरकार इस दिशा में प्रयासरत है। पीएम मोदी ने इसी वर्ष 15 अगस्त के मौके पर लाल किले की प्राचीर से तीनों सेनाओं का नेतृत्व करने वाले एक पद ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ को स्थापित करने की भी घोषणा की थी। माना जा रहा है कि मौजूदा सेनाध्यक्ष बिपिन रावत को ही चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त किया जा सकता है और उनका कार्यकाल दो सालों का होगा।
भारतीय सुरक्षा तंत्र का सबसे अहम हिस्सा भारतीय सेना है, और भारत सरकार पिछले साल से ही यहां पर भी बड़े बदलाव करने में जुटी है। दरअसल, भारतीय सेना अब अपने संरचनात्मक ढांचे में व्यापक बदलाव की रूपरेखा बना रही है जिसका मकसद जवानों की संख्या को कम करके सेना की मारक क्षमता को बढ़ाना होगा। इस तरह की प्रक्रिया चीन पहले ही शुरू कर चुका है। माना जा रहा है कि डिफेंस प्लानिंग कमेटी की रिपोर्ट में आर्मी में अन्य बड़े बदलावों की भी सिफ़ारिश की जा सकती है।
दुनिया में तकनीक के विस्तार के साथ ही रक्षा क्षेत्र में नई चुनौतियां खड़ी हुई हैं। आज के समय में तकनीक और इंटरनेट की वजह से किसी भी देश के लिए दूसरे देश की जासूसी करना आसान हो गया है। आज अमेरिका, चीन और रूस जैसे देश साइबर युद्ध में व्यस्त हैं। भारत भी इन चुनौतियों से अछूता नहीं है। भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान अक्सर भारत पर साइबर हमले करता रहता है। क्लाउड डिलिवरी नेटवर्क प्रोवाइडर अकामाई टेक्नॉलजी की रिपोर्ट के मुताबिक, वेब ऐप्लिकेशन हमलों के टॉप-10 टारगेट देशों की सूची में भारत चौथे नंबर पर है। किसी भी देश की सुरक्षा प्रणाली में अगर तकनीक का इस्तेमाल बढ़ जाता है तो इसकी वजह से साइबर हमलों का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसे में यह जरूरी है कि भारत अपनी रक्षा प्रणाली को पूरी तरह इन साइबर हमलों से सुरक्षित रखे। इसी को ध्यान में रखते हुए अप्रैल में भारत अपना साइबर कमांड तैयार कर चुका है, जो ना केवल देश को बाहर से होने वाले तगड़े साइबर अटैक से बचाएगा बल्कि पलटकर मुंहतोड़ जवाब भी देगा। अब तक आपने सुना होगा कि भारतीय सेना के तीनों अंग अलग-अलग अपना सालाना युद्धाभ्यास करते थे, लेकिन अब एक नए तरह की साइबर वारफेयर प्रैक्टिस शुरू होगी, जिसका नाम होगा साइबेरेक्स। हालांकि, अभी यह कमांड इतना मजबूत नहीं है और हो सकता है कि DPC की रिपोर्ट में इसका उल्लेख भी किया गया हो।
आपको याद होगा आज से 6 महीने पहले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की थी कि भारत ने सफलतापूर्वक अपनी anti-satellite मिसाइल का परीक्षण कर लिया है। इस परीक्षण के साथ ही भारत ने स्पेस सुरक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा कदम बढ़ाया था। माना जाता है कि भविष्य का युद्धक्षेत्र जमीन या जल नहीं, बल्कि स्पेस होगा। ऐसे में अगर भारत को भविष्य में दुनिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना है, तो अभी से ही भारत को अपनी तैयारी मजबूत करनी होगी। anti-satellite मिसाइल के सफल परीक्षण के संबंध में तब पीएम मोदी ने कहा था कि इसका मकसद भारत की सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करना है। अब इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि DPC की रिपोर्ट में इस बड़े हथियार के इस्तेमाल करने की नीति का उल्लेख हो सकता है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि भारत किन स्थितियों में इस हथियार का इस्तेमाल करेगा और किस हद तक करेगा। सवाल यह भी है कि क्या भारत अमेरिका और चीन की तर्ज़ पर किसी स्पेस कमांड के गठन को लेकर चिंतन कर रहा है? इन सभी सवालों के जवाब हमें इसी रिपोर्ट में देखने को मिल सकते हैं।
इसी तरह भारत को परमाणु हथियारों को लेकर भी अपनी नीति को स्पष्ट करने की ज़रूरत है। पिछले कुछ दिनों में भारत ने अपनी परमाणु नीति में कुछ बदलावों के संकेत दिये हैं। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान प्रधानमंत्री इमरान खान की ओर से लगातार उकसावे वाले बयानों पर भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पड़ोसी मुल्क को इशारों-इशारों में सख्त चेतावनी दी थी। राजनाथ सिंह ने कहा था कि ‘नो फर्स्ट यूज’ भारत की परमाणु नीति है, लेकिन भविष्य में क्या होगा, यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।‘ उनके इस बयान के बाद यह सवाल उठने लगे कि क्या भारत ने अपनी परमाणु नीति बदल दी है? इसका जवाब भी हमें इस रिपोर्ट में देखने को मिलेगा।
#WATCH: Defence Minister Rajnath Singh says in Pokhran, "Till today, our nuclear policy is 'No First Use'. What happens in the future depends on the circumstances." pic.twitter.com/fXKsesHA6A
— ANI (@ANI) August 16, 2019
किसी भी देश की सुरक्षा में उसकी सेना की भूमिका सबसे अहम होती है। मोदी सरकार आने वाले कुछ सालों में सेना का बड़े पैमाने पर आधुनिकीकरण करना चाहती है। इसी महीने यह खबर आई थी कि सरकार ने सेना की युद्ध क्षमताओं को और मजबूती देने के लिए अगले 5-7 सालों में 130 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च करने की व्यापक योजना तैयार की है, जिसके तहत अगले कुछ सालों में जरूरी हथियारों, मिसाइलों, विमानों, पनडुब्बियों और युद्धपोतों को हासिल किया जाएगा। हालांकि, इन पैसे को किन हथियारों को खरीदने में इस्तेमाल किया जाएगा, और कैसे किया जाएगा, यह देश की नई सुरक्षा नीति पर ही निर्भर करेगा। भारत को अभी चीन से ही सबसे बड़ी रक्षा चुनौती मिलती है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी रक्षा नीति को चीन की रक्षा नीति के अनुरूप ही बनाएं। बता दें कि सरकार भी चीन द्वारा अपनी वायुसेना और नौसेना की शक्ति में महत्वपूर्ण तरीके से इजाफा किए जाने से परिचित है। ऐसे में लक्ष्य यह है कि वायुसेना और नौसेना को उनके विरोधियों की क्षमताओं के अनुरूप ही आधुनिक बनाया जाए। अपनी संचालन क्षमताओं को बढ़ाने के लिये नौसेना ने पहले ही अगले तीन-चार सालों में 200 पोतों, 500 विमानों और 24 हमलावर पनडुब्बियों की योजना तैयार की है। फिलहाल नौसेना के पास करीब 132 जहाज, 220 विमान और 15 पनडुब्बियां हैं।
इस रिपोर्ट में भविष्य में भारत के संभावित वॉरफ्रंट्स के बारे में भी विस्तृत जानकारी हो सकती है। अभी भारत पाकिस्तान और चीन के साथ अपने बॉर्डर को ही संभावित वॉरफ्रंट मानता है लेकिन भविष्य में भारत के सामने युद्ध की स्थिति में कई बड़ी चुनौतियां सामने आ सकती हैं। इसके लिए भारत को तीव्र युद्ध के दौरान लंबे समय तक युद्ध के मैदान में टिकने के लिए मानव संसाधन के साथ-साथ हथियारों का एक बड़ा स्टॉक भी चाहिए होगा। केवल हथियारों का स्टॉक ही नहीं, भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए पेट्रोलियम का बड़ा स्टॉक भी चाहिए होगा। अभी भारत के पास केवल 10 दिनों के युद्ध का ही स्टॉक उपलब्ध है। ऐसे में इस स्टॉक को कितना बढ़ाना चाहिए, यह इसी बात पर निर्भर करेगा कि डिफेंस प्लानिंग कमेटी इसको लेकर अपने क्या विचार रखती है।
भारत के पास चीन के बाद दुनिया की सबसे बड़ी थलसेना है और अभी अधिकतर जवानों की तैनाती पाकिस्तान से सटे बॉर्डर पर की जाती है। कश्मीर पर भारत द्वारा लिए गए ऐतिहासिक फैसलों के बाद सालों से चल रहे भारत के इस हिस्से में तनाव कम होने की स्थिति में जवानों को अन्य हिस्सों में तैनात किया जा सकता है, खासकर भारत-चीन बॉर्डर पर! इसके अलावा भारत इन सभी सीमाओं पर ‘इंटिग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ यानि IBGs की तैनाती भी कर रहा है। IBG में एक निर्धारित संख्या में वायुसेना, थलसेना और जलसेना के जवानों को शामिल किया जाता है और उन्हें एक दूसरे के सहयोग से दुश्मनों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया जाता है। हालांकि, भारतीय सेना के साथ-साथ इन IBGs को ऑपरेट करने के लिए सीमावर्ती इलाकों पर बढ़िया स्तर का इनफ्रास्ट्रक्चर चाहिए होता है। अभी भारत चीन बॉर्डर पर भारत का इनफ्रास्ट्रक्चर इतना विकसित नहीं है और इस बात की पूरी संभावना है कि DPC की रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया होगा।
बता दें कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में बनाई गई इस रिपोर्ट को अमल में तब लाया जाएगा जब केंद्र की मोदी सरकार या सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) से इस रिपोर्ट को हरी झंडी मिलेगी।
गौरतलब है कि डीपीसी का गठन अप्रैल 2018 में हुआ था। लेकिन, रिपोर्ट को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के नए पद की घोषणा होने तक लंबित रखा गया था। माना जा रहा है कि इस रिपोर्ट के आधार पर भारत अपनी रक्षा नीति को आक्रामक बना सकता है जो आज़ादी के बाद से लेकर अब तक हमें देखने को नहीं मिली थी। NSA अजीत डोभाल को ही भारत की पाकिस्तान नीति का जनक माना जाता है और उन्होंने पाकिस्तान के संबंध में एक नई ‘डिफेंसिव ओफेंस’ नीति का भी निर्माण किया था जिसे डोभाल डॉक्ट्रिन भी कहते हैं। अब नई मिलिटरी डॉक्ट्रिन के आने के बाद हमें यह कहने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि भारत का भविष्य और ज़्यादा सुरक्षित होने जा रहा है।