उग्र छात्र आंदोलनों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहने वाले कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय में गुरुवार को माहौल एक बार फिर गर्मा उठा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे केंद्रीय पर्यावरण व वन राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो को छात्रों के एक वर्ग ने उन्हें करीब छह घंटे तक घेरे रखा। उन्होंने उनके साथ बदसलूकी की, धक्का-मुक्की भी की। वे गिर पड़े। उनके कपड़े फाड़ दिए गए। उन्हें बालों और कॉलर से पकड़ कर खींचा गया। अंगरक्षकों ने विरोध किया तो वे उन पर भी टूट पड़े। यहीं नहीं उनके साथ में गयी फैशन डिजाइनर अग्निमित्रा पॉल को भी नहीं छोड़ा गया, उनके साथ भी बदसूलूकी की गयी और यहाँ तक की उनकी साड़ी भी फाड़ दी गई। रिपोर्ट के अनुसार वामपंथी संगठनों-आर्ट फैकल्टी स्टूडेंट्स यूनियन (एएफएसयू) और स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (ASFI) के सदस्यों ने शुरुआत में ‘बाबुल सुप्रियो वापस जाओ’ के नारे लगाते हुए करीब डेढ़ घंटे तक उनको कैंपस में प्रवेश करने से रोका।
यह सब एक ऐसे राज्य में हो रहा था जहां से अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतन्त्र से खिलवाड़ के लिए मोदी सरकार पर आरोप लगाए जाते रहे है। यह किस तरह का लोकतंत्र है कि एक केंद्रीय मंत्री के साथ इतनी बड़ी घटना हो जाती है उनके कपड़े फाड़ दिये जाते हैं फिर भी कोई एक्शन नहीं लिया जाता है।
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब जाधवपुर यूनिवर्सिटी में किसी दक्षिण पंथी का इस तरह से विरोध हुआ हो। इससे पहले 2016 में जाधवपुर यूनिवर्सिटी में भी देशविरोधी नारे लगाने का मामला सामने आया था। वहीं फिल्म ‘बुद्धा इन ए ट्रैफिक जाम’ की स्क्रीनिंग के दौरान निर्देशक विवेक अग्निहोत्री को विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश करने से रोका गया था। उस दौरान छात्रों ने विवेक की गाड़ी को चारों ओर से घेर लिया और उन्हें काले झंडे दिखाए गए तथा छात्रों ने उनकी गाड़ी की कांच भी तोड़ दी थी।
यह हिंसा सिर्फ पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है। जहां भी एसएफ़आई है वहाँ वामपंथ जिंदा है और वहाँ से ऐसी खबरें आती रहती हैं। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार केरल में कई ऐसे शिक्षक हैं जो वामपंथी दलों का समर्थन करते हैं, और जब छात्रों के खिलाफ अत्याचार का मामला दर्ज होता है, तो वे इसके खिलाफ कार्रवाई नहीं करते हैं। शमसुद्दीन आयोग ने एक विस्तृत जांच के बाद केरल के कॉलेजों में “टॉर्चर रूम” होने की पुष्टि हुई थी। यह टॉर्चर रूम उन विद्यार्थियों के लिए बनाई गयी है जो स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया की बात नहीं मानता है। इन “टॉर्चर रूम” में छात्रों नज़रबंद करके रखा जाता है जहां उनके साथ मारपीट की जाती है और प्रताड़ित किया जाता है। पांच साल पहले भी तत्कालीन केरल यूथ कमीशन के अध्यक्ष आर.वी. राजेश ने ऐसे कमरों के होने का आरोप लगाया था।
यह सर्वविदित है कि जेएनयू वामपंथियों का गढ़ रहा है लेकिन जाधवपुर यूनिवर्सिटी में जेएनयू से भी अधिक वामपंथ को संरक्षित किया जाता है। फिलहाल देश में वही एक ऐसी जगह है जहाँ वामी विचारधारा का कुछ अस्तित्व भी है, अन्यथा पूरे देश में इस विचारधारा को छात्र स्तर से लेकर शासन के स्तर तक मतदाताओं द्वारा पूरी तरह से खारिज किया जा चुका है। इनकी सत्ता में सेंध लगने लगती हैं तो यह अपने जोसेफ़ स्टालिन वाले असली स्वरूप में आ जाते हैं और इस तरह से एक मंत्री को भी नहीं छोड़ते हैं।
वामपंथ की विचारधारा जिहादी मानसिकता और विचारधारा से भी अधिक घातक है। वामपंथी कुतर्क और अनर्गल प्रलाप के स्वयंभू ठेकेदार हैं। जिन-जिन देशों में वामपंथी शासन है, वहाँ गरीबों और विरोधियों आदि की आवाज़ को इस क़दर दबाया-कुचला गया है, कि उसके स्मरण मात्र से ही सिहरन पैदा होती है।
लेकिन सवाल यह है कि भारत एक संघीय लोकतंत्र है और लोकतन्त्र में सभी को अभिव्यक्ति की आजादी होती है लेकिन एक कार्यक्रम में पहुंचे एक केंद्रीय मंत्री पर हमला करना अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला नहीं है? अक्सर देखा गया है कि यही वामपंथी अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए मौजूदा सरकार पर निशाना साधते हैं और सवाल उठाते हैं। लेकिन इनकी अपनी विचारधारा में कोई अभिव्यक्ति नहीं दिखाई देती, केवल झण्डा लिए लाल सलाम करते रहते हैं और लोकतान्त्रिक चुनाव में जीते एक केंद्रीय मंत्री पर हमला करते हैं।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि राष्ट्र के गौरव, यश और समृद्धि का प्रचार-प्रसार करने वाली बातें इन्हें स्वीकार्य नहीं है। राष्ट्र-विरोध इनकी विचारधारा के मूल में निहित तत्व है और इसको पूरा करने के लिए तरह-तरह के प्रपंचों और भ्रमजालों का सृजन करते हैं और यही इनका लक्ष्य भी है। ये पहले भी यही करते थे और अब भी कर रहे हैं लेकिन अब बहुत हो गया। अब किसी ठोस कारवाई की जरूरत है जिससे लोकतान्त्रिक देश की न सिर्फ गरिमा बचे बल्कि ऐसे हिंसात्मक प्रवृत्ति वाले विचारधारा का अंत हो सके। ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य की तृणमूल कांग्रेस खुद वामपंथी हो चुकी है और पश्चिम बंगाल में कई बार राजनीतिक हिंसा देखा गया है। ऐसे में केंद्र सरकार को ही सख्त कदम उठाने की जरूरत है।