चीन की हेकड़ी निकालने के लिए भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया आये साथ

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PC: Timesnow

चीन, दुनिया का ऐसा देश है जिसपर अपनी ताकत का नशा सवार है। इसी ताकत के नशे में वह अपने पड़ोसियों को धमकाता है और हमेशा अपनी सीमाओं को बढ़ाने की फिराक में रहता है। भारत सहित इस देश के 20 पड़ोसी देश हैं और लगभग सभी देशों के साथ चीन का सीमा विवाद है। इतना ही नहीं, चीन तो इतना शातिर है कि दक्षिण चीन सागर में भी वह अपना ही अधिकार जमाता है और किसी अन्य देश द्वारा उस क्षेत्र में नेविगेशन पर अपनी आपत्ति ज़ाहिर करता है।  हालांकि, चीन की इस गुंडागर्दी का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अब दुनिया के चार बड़ी शक्तियों ने हाथ मिला लिया है और जल्द ही इसकी बड़ी घोषणा भी हो सकती है। दरअसल, सूत्रों की माने तो भारत, अमेरिका जापान और ऑस्ट्रेलिया दक्षिण चीन सागर में चीन के दबदबे का मुक़ाबले करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महागठबंधन का निर्माण कर सकते हैं। इतना स्पष्ट है कि यह महागठबंधन चीन की रातों की नींद उड़ाने के लिए काफी होगा।

दरअसल, दक्षिण चीन महासागर या कहिए ‘साउथ चाइना सी’ में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और इसीलिए चीन उसपर अपना कब्जा करना चाहता है। इस क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व जमाने के लिए चीन यहां नकली द्वीपों का निर्माण भी कर रहा है। इस तरह के समुद्री द्वीपों के निर्माण से न सिर्फ दुनिया भर में चीन ने राजनैतिक, नागरिक और सैन्य संतुलन को बिगाड़ने का काम किया है बल्कि उसने कोरल रीफ जैसी महत्वपूर्ण प्राकृतिक संरचना को भी नष्ट किया है। इतना ही नहीं, चीन इन द्वीपों पर हथियारों की भी तैनाती करता है। दक्षिण चीन सागर के कई विवादित द्वीपों पर चीन ने अपने रॉकेट लॉन्चर भी तैनात किए हुए हैं।

हालांकि, जब से अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व वाली सरकार आई है, तभी से दक्षिण चीन सागर में चीन की हेकड़ी निकालने के लिए अमेरिका ने भी आक्रामक रुख दिखाया है। अमेरिका का मानना है कि दक्षिण चीन सागर अंतर्राष्ट्रीय सीमा में आता है और किसी भी देश को इसमें नेविगेशन करने का पूरा अधिकार है, जिससे चीन को आपत्ति होती है। इसी वर्ष मई में अमेरिकी नौसेना के युद्धपोत ने दक्षिण चीन सागर में ‘फ्रीडम ऑफ नेविगेशन’ ऑपरेशन किया था। अमेरिका-चीन के बीच जारी ट्रेडवॉर के बीच अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में अपना जंगी जहाज उतार दिया था। इसके अलावा अमेरिका अन्य साउथ ईस्ट एशियाई देशों को भी चीन के आक्रामक रुख के खिलाफ खड़ा होने की बात कहता आया है। इसी साल दक्षिण चीन सागर में भारत और सिंगापुर की नौसेनाओं ने भी संयुक्त अभ्यास किया था।

दक्षिण चीन सागर में चीन की दखलंदाज़ी के खिलाफ अमेरिका मुख्य रूप से तीन देशों को अपने साथ करना चाहता है। वो देश हैं जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत। अब तक भारत इस गठबंधन का हिस्सा बनने में आनाकानी कर रहा था और अमेरिका के साथ अपनी दोस्ती का एक छोटा परंतु बेहद आवश्यक परीक्षण करना चाहता था। कश्मीर मुद्दे पर भारत ने यह परीक्षण किया भी। इन सभी देशों के सामने दो विकल्प थे, या तो वे चीन और पाकिस्तान का साथ दें, या फिर भारत का! अमेरिका सहित जापान और ऑस्ट्रेलिया ने भारत का ही साथ दिया। ऐसे में अब माना जा रहा है कि चीन को जवाब देने के लिए भारत ने इस समूह का हिस्सा बनने का मन बना लिया है।

यह खबर ऐसे समय में आई है जब इस साल के आखिर में एक बार फिर पीएम मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच एक अनौपचारिक मुलाक़ात होने वाली है, और यह मुलाक़ात भी तब होने जा रही है जब कश्मीर मुद्दे पर चीन के रुख से भारत में नाराजगी है और अभी एक हफ्ते पहले ही भारत-चीन बॉर्डर पर हमें भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनातनी देखने को मिली थी। दरअसल, इसी महीने 12 तारीख को लद्दाख़ में भारत-चीन सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच संघर्ष की ख़बरें सामने आई थीं। 134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर दोनों देशों के सैनिकों में काफ़ी देर तक धक्का-मुक्की होती रही थी और देर शाम तक चले इस संघर्ष के बाद दोनों देशों ने यहां अपनी सेना को भी बढ़ा दिया था। हालांकि, चीन की ओर से इस तरह की आक्रामकता कोई नई बात नहीं है, और वो भी ऐसे समय में जब दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाक़ात होने वाली हो। अक्सर यह देखने में आया है कि किसी भी बातचीत से पहले चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ बॉर्डर पर तनाव को बढ़ा देता है ताकि बातचीत में उसका पलड़ा भारी हो सके और वह सामने वाले देश पर अपना दबाव बढ़ा सके। पिछली बार भी जब चीनी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आए थे तो भारत-चीन बॉर्डर पर हमें तनाव देखने को मिला था।

अभी अमेरिका के न्यूयॉर्क में यूनाइटेड नेशन्स की जनरल असेंबली जारी है और इससे ठीक पहले ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम के आयोजन ने पूरी दुनिया में भारत की सॉफ्ट और हार्ड पावर का प्रदर्शन किया है। हाउडी मोदी कार्यक्रम ने पूरी दुनिया में अमेरिका और भारत के बीच गहरे होते रिश्तों का एक प्रमाण भेजा है जिसके बाद चीन सहित किसी भी देश का भारत के खिलाफ भड़काऊ बयान दे पाना अब संभव नहीं होगा। भारत अपने आप में एक बड़ी शक्ति है, ऐसे में अमेरिका के साथ गठबंधन उसे और ज़्यादा मजबूत ताकत प्रदान करता है। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सैन्य महाशक्ति है, और उसके साथ भारत के अच्छे रिश्ते दोनों देशों के ही हित में हैं। दूसरी तरफ अमेरिका द्वारा छेड़े गए ट्रेड वॉर से घबराया और मारा-मारा फिर रहा चीन भारत के साथ दोस्ती का दिखावा तो करता है लेकिन ज़रूरत के समय हर बार भारत की पीठ में छुरा घोंपने का काम करता है, जैसे उसने अब कश्मीर मुद्दे पर किया। अब जब अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर भारत चीन को उसी की भाषा में जवाब देने का काम करेगा तो यही उसके लिये सबसे बड़ा सबक होगा।

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