‘सिंधिया कहीं कुर्सी ना हथिया ले’ इसी डर से अब दिग्गी राजा और कमलनाथ ने MP में गठजोड़ किया है

ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस

लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद भी कांग्रेस अपनी गलतियों सबक नहीं ले पा रही है। पार्टी में अभी भी गांधी परिवार के चाटुकारों का ही बोल-बाला नज़र आ रहा है। कोई नेता कितना भी प्रतिभाशाली या युवा हो, कांग्रेस में पहले से ही सक्रिय गांधी परिवार के चाटुकार उसे अलग-थलग करने के लिए गुटबाजी करना शुरू कर देते हैं। कुछ ऐसा ही आजकल मध्यप्रदेश में देखने को मिल रहा है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का कार्यकाल खत्म हो चुका है और नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा होनी है।ऐसे समय में मध्यप्रदेश कांग्रेस के अंदर वरिष्ठ नेताओं में घमासान मचा हुआ है, लेकिन गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले कमलनाथ और उनके गुट के नेताओं ने युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अध्यक्ष पद की रेस से बाहर करने के लिए गुटबाजी शुरू कर दी है। चुनाव में हार के बाद से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का बदला-बदला सुर देखने को मिला था। अनुच्छेद 370 पर भी उन्होंने मोदी सरकार के फैसले का समर्थन किया था। ऐसा लग रहा है कि अगर उन्हें अध्यक्ष पद नहीं दिया गया तो निश्चित ही हरियाणा के भूपिंदर सिंह हुड्डा की तरह अपने आप को कांग्रेस से अलग कर सकते हैं।

दरअसल, मुख्यमंत्री कमलनाथ ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार को लेकर इस्तीफे की पेशकश की थी लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने नयी व्यवस्था होने तक पद पर बने रहने को कहा था। अब जबकि कांग्रेस ने अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया है, ऐसे में मध्यप्रदेश में भी एक नए अध्यक्ष चुने जाने का समय आ गया है। हालांकि कमलनाथ तो यही चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष उन्हीं के गुट का बने। इसके लिए वह पुरज़ोर कोशिश में लगे हैं।

वहीं दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया का गुट उन्हें अध्यक्ष पद पर बैठना चाहता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्री और नेता बार-बार उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग अलग-अलग मंच पर उठा चुके हैं। दतिया से कांग्रेस नेता अशोक दांगी ने कहा है कि अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश से दूर रखा जाता है और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया जाता तो तो वे (दांगी) 500 कार्यकर्ताओं के साथ कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे देंगे।  बता दें कि कांग्रेस नेतृत्व द्वारा सिंधिया को महाराष्ट्र स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाकर उन्हें मध्य प्रदेश की सियासत से दूर रखने की कोशिश की जा रही है।

अब इस राजनीति में एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है। राज्य के एक और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का नाम अध्यक्ष पद के लिए सामने आने लगा है और यह गुट भी सक्रिय हो चुका है। अब यह देखने वाली बात होगी की आखिर में अध्यक्ष पद किसे मिलता है।

यह तो जग जाहिर है कि जब भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात होगी तो कमलनाथ दिग्विजय सिंह का ही पक्ष लेंगे। ऐसा तब भी हुआ था जब ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया को वर्चस्व साबित करने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ती थी और कमलनाथ उसमें रोड़ा अटका दिया करते थे। यह दोनों ही नेता सोनिया गांधी के ओल्ड गॉर्ड माने जाते हैं तथा मध्यप्रदेश में भी दोनों के मिल जाने के बाद सिंधिया जैसे युवा नेता को अपनी साख बचाए रखने के लिए बहुत कोशिश करनी होगी।

यह गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस का नेतृत्व भी बदल चुका है। जब तक कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के पास था तब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया को युवा नेता होने के कारण कई मौके मिले। लेकिन जैसे ही कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथों में फिर से गई, पार्टी में फिर से अहमद पटेल, कमलनाथ और अशोक गहलोत जैसे पुराने चाटुकार फिर से हावी होते जा रहे हैं। कांग्रेस में फिर से किसी भी युवा नेता को अपनी जगह बनाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना होगा।

राजस्थान में भी देखने को मिला था कि कैसे युवा नेता सचिन पायलट को दरकिनार करते हुए अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद दिया गया था। अब ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद काफी दूर नजर आ रही है। उन्होंने हाल में कई ऐसे बयान दिये हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह पार्टी के फैसलों से खुश नहीं हैं। अनुच्छेद 370 पर भी उन्होंने मोदी सरकार का समर्थन किया था। ऐसा लग रहा है कि पार्टी लाइन से अलग बयान देने की वजह से ही उन्हें कांग्रेस हाईकमान द्वारा सजा दी जा रही है।

अब सवाल यह उठता है कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह द्वारा इस तरह से दरकिनार किए जाने के बाद सिंधिया क्या कदम उठाते हैं। चर्चा यह भी हो रही है कि वे भाजपा में शामिल हो सकते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि उनके परिवार के सदस्य पहले से ही भाजपा में शामिल हैं।

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