केरल के सरकारी कॉलेजों में बने हैं टॉर्चर रूम, जहां किया जाता है छात्रों को प्रताड़ित

केरल

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कॉलेज और विश्वविद्यालय शिक्षा के केंद्र माने जाते है लेकिन क्या कभी किसी शिक्षण संस्थान में टोर्चर रूम या यातना गृह के बारे में सुना है? ऐसी व्यवस्था जेल या हवालात में ही होती है, वह भी खूंखार अपराधियों के लिए। लेकिन केरल के कई कॉलेजों में यातना गृह होने की खबर आई है। यह टॉर्चर रूम उन विद्यार्थियों के लिए बनाई गयी है जो स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया की बात नहीं मानता है। यह संगठन कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) का छात्र संगठन है।

इस बात का खुलासा केरल उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति पी.के. शमसुद्दीन ने गवर्नर और मुख्यमंत्री कार्यालय को सौंपी गयी अपनी रिपोर्ट में किया है। इस कमीशन का गठन केरल में एसएफआई के ही एक छात्र की चाकू घोंपकर हत्या और केरल के कॉलेजों में बढ़ते अपराध के बाद की गयी थी।

न्यायमूर्ति पी.के. शमसुद्दीन ने अपनी इस रिपोर्ट में कई ऐसी बाते बताई हैं जिससे किसी भी व्यक्ति का दिल दहल जाएगा। उन्होंने बताया है कि ‘कोच्चि के महाराजा कॉलेज, वडकारा के मदापल्ली गवर्नमेंट कॉलेज और तिरुवनंतपुरम के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में एसएफआई के छात्रसंघ दफ्तरों में टॉर्चर रूम मौजूद हैं।‘ रिपोर्ट में उन कॉलेजों के बारे में भी विशेष रूप से उल्लेख किया गया है जहां छात्रसंघ का संचालन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) द्वारा किया जाता है। इसमें बताया गया है कि इस तरह के कॉलेजों में छात्र संघ चुनावों में शिकायत या प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि कई कॉलेज के कैंपस के अंदर हो रहे दंगों में शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व का समर्थन प्राप्त होता है। वास्तव में छात्र संघों को बैठक और विचार-विमर्श करने के लिए कमरे आवंटित किए जाते हैं। हालांकि, शमसुद्दीन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य भर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में कई छात्रों, पूर्व छात्रों और संकायों के बयानों से पता चलता है कि इन कमरों का इस्तेमाल यातना गृह के रूप में किया जाता है। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार कई ऐसे शिक्षक हैं जो वामपंथी दलों का समर्थन करते हैं, और जब छात्रों के खिलाफ अत्याचार का मामला दर्ज होता है, तो वे इसके खिलाफ कार्रवाई नहीं करते हैं। शमसुद्दीन आयोग ने एक विस्तृत जांच के बाद पाया कि इन “टॉर्चर रूम” में छात्रों नज़रबंद करके रखा जाता है जहां उनके साथ मारपीट की जाती है और प्रताड़ित किया जाता है। पांच साल पहले भी तत्कालीन केरल यूथ कमीशन के अध्यक्ष आर.वी. राजेश ने ऐसे कमरों के होने का आरोप लगाया था।

इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन करार देते हुए शमसुद्दीन आयोग ने राज्य ने अपनी रिपोर्ट में कई सिफारिशें की हैं, जिनमें राज्य स्तर पर सुनवाई केंद्र को स्थापित किया जाना और साथ में कॉलेजों के लिए एक लोकपाल प्रणाली की स्थापना है।

हालांकि, केरल में राजनीतिक हिंसा कोई नई बात नहीं है लेकिन इस तरह से कॉलेज कैंपस में यातना गृह का होना और उसका लगातार एसएफआई द्वारा प्रयोग केरल में अराजकता को दर्शाता है। कॉलेजों में यातना गृह सोच कर ही भयावह लगता है तो उन छात्रों का क्या होता होगा जो इसके शिकार हो चुके हैं। इससे पहले भी केरल में छात्रों और कार्यकर्ताओं पर हमले होते रहे है। केरल में इस तरह की रिपोर्ट आने के बाद भी मीडिया खामोश बैठी है, जो चिंताजनक है। केरल पहले ही इस्लामी कट्टरवाद की तरफ बढ़ चुका है जिसे काबू में करना केंद्र सरकार के लिए चुनौती बनता जा रहा है। राज्य में सीपीएम की सरकार के स्वयं हिंसा में संलिप्ता और छात्रों पर हमलों में चुप्पी स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रही है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को ही देश का भविष्य माने जाने वाले छात्रों के हित में निर्णय लेना होगा। हाल में ही में केंद्र सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए दिग्गज नेता आरिफ मोहम्मद खान को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया है। अब देखना होगा कि आरिफ मोहम्मद इस रिपोर्ट के आने के बाद क्या कदम उठाते है।

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