क्या कश्मीर में कथित अत्याचार को हथियार बनाकर पाकिस्तान वापसी की राह बना रही हैं मलाला?

मलाला युसुफ़ज़ई

(PC: David Donnelly/CBC)

लिबरल्स की चहेती माने जाने वाली नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़ज़ई एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार भी गलत कारणों से। एक बार फिर कश्मीर राग अलापती हुई मलाला युसुफ़ज़ई ने एक लंबा चौड़ा ट्विटर थ्रेड पोस्ट किया है –

इस ट्विटर थ्रेड को संक्षेप में समझाये, तो मलाला यूएन से लेकर दुनिया के बड़े से बड़े संगठन तक गुहार लगा रही हैं, ‘कश्मीर में हमारे भाई बहन पिस रहे हैं, उन्हें बचाइए!’ अपने शुरुआत के ट्वीट्स में ही वे अपने इरादे जगज़ाहिर करते हुए कहती हैं, ‘पिछले एक हफ्ते में मैंने कश्मीर में रह रहे और काम कर रहे कई लोगों के साथ बात की है, चाहे वो पत्रकार हों, मानव अधिकार अधिवक्ता हों, या फिर विद्यार्थी हों। मैं कश्मीर में रह रही लड़कियों को प्रत्यक्ष रूप से सुन्न चाहती हूं। संपर्क कटे होने के कारण मुझे उनसे संपर्क करने में काफी समय लगा। कश्मीरियों को दुनिया से अलग-थलग कर दिया गया है जिस वजह से उनकी आवाज़ हम तक नहीं पहुंच पा रही हैं। #LetKashmirSpeak”

इसके अलावा मलाला युसुफ़ज़ई ने भारत सरकार और कश्मीर में तैनात भारतीय सुरक्षाबलों पर बेतुके आरोप लगाते हुए कहा, ‘मैं उन 4000 लोगों के लिए बहुत चिंतित हूं जिन्हें बेवजह गिरफ्तार किया गया है। इनमें बच्चे भी शामिल हैं। मैं उन बच्चों के लिए चिंतित हूं जो पिछले 40 दिनों से स्कूल नहीं जा पाये हैं, मैं उन लड़कियों के लिए चिंतित हूं जो अब अपने घरों से नहीं निकल सकतीं।’ इसके पश्चात मलाला ने संयुक्त राष्ट्र के जनरल एसेम्बली से गुहार लगाई कि वे तुरंत इस मामले में हस्तक्षेप करें।

अब एक छोटा सा प्रश्न मलाला युसुफ़ज़ई के लिए। आप कश्मीर के लिए इतनी व्यथित हैं, वहां के विद्यार्थियों और बच्चियों को जो कथित रूप से झेलना पड़ रहा है उसके लिए आपकी आँखों से आंसू निकलते हैं, पर जब ये अत्याचार वास्तव में बलूचिस्तान प्रांत में होता हैं, तब आपको साँप क्यों सूंघ जाता है? जब पीओके में अकारण ही लोगों को उनके घरों से निकालकर बीच चौराहे पर गोलियों से भून दिया जाता है, तब आप क्यों मौन व्रत धारण कर लेती है? जब आप के ही वतन में हिन्दू और सिख लड़कियों को अगवा कर उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है, तो आप बुत क्यों बन जाती है? क्या उनका दर्द, दर्द नहीं है?

सब सच सभी के सामने तो भला मलाला युसुफ़ज़ई के दोहरे मापदंड किसको रास आते। सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स, विशेषकर भारतीयों ने मलाला को उनके दोहरे रुख के लिए जमकर लताड़ा। एक यूजर ने हमारे पड़ोसी देश द्वारा निरंतर सीजफ़ायर उल्लंघन की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, ‘अरे फर्जी नोबल पुरस्कार विजेता, आप ही की फौज ने कश्मीर में स्कूलों पर निरंतर गोलाबारी की है। हमारे सैनिकों ने 20 बच्चों को मृत्यु से बचाया है। क्या आप आईएसआई की कठपुतली हैं?”

एक और यूजर ने मलाला युसुफ़ज़ई को उनके कद को याद दिलाते हुए कहा, ‘डीयर मलाला, एक नोबल पुरस्कार विजेता होने के नाते आपको थोड़ी निष्पक्षता रखनी चाहिए। कश्मीर के बारे में बात करते वक्त आपको यह बिलकुल नहीं भूलना चाहिए कि पाक प्रायोजित आतंकवाद के कारण 42000 से ज़्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है। अपनी सरकार को बलूचिस्तान, सिंध और पीओके में उमड़ रहे विद्रोह की ओर ध्यान देने को कहिए’–

इसके बाद मलाला के इस दोहरे रुख की पोल खोली सेवानिवृत्त मेजर गौरव आर्य ने, जिन्होंने ट्वीट किया, ‘मलाला अपने नोबल पुरस्कार विजेता की पहचान केवल कश्मीर मुद्दे पर बात करने के लिए करती है। पाक में जबरन धर्म परिवर्तन का शिकार हो रही हिन्दू और सिख लड़कियों का क्या? बलूचिस्तान का क्या? मलाला ऐसे बयान केवल इसलिए दे रही हैं, ताकि उससे प्रसन्न होकर पाक की सेना उन्हें घर आने दे। नोबल पुरस्कार वालों, आपने खमेनी [ईरानी तानाशाह] की महिला स्वरूप को सम्मानित किया है’।

सेवानिवृत्त मेजर गौरव का कहा सही भी है पाक, जाने के लिए अपने लिए मलाला कश्मीर में कथित अत्याचार को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। उन्हें भी पता है कश्मीर मुद्दा पाक के लिए कितना संवेदनशील है। सभी जानते हैं कि वहां की राजनीति ही कश्मीर के इर्द गिर्द घुमती है। ऐसा लगता है कि मलाला कश्मीर राग अलाप कर वहां अपने रहने और राजनीति में कदम जमाने के लिए मार्ग बना रही हैं।

खैर, ये कहना गलत नहीं होगा कि मलाला अपने आप में हिपोक्रिसी की चलती फिरती प्रतिमूर्ति हैं। यूके में रहकर जिस तरह वह कश्मीर पर ज्ञान बांचती हैं, और खुद अपने वतन जाने से कतराती हैं, उससे साफ पता चलता है कि वे वास्तव में महिलाओं के अधिकारों के लिए कितना चिंतित है। ऐसे में इनका कश्मीर राग और कुछ नहीं, महज छलावा है, जिसकी जितनी निंदा की जाये, कम है।

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