सरकारी कर्मचारी श्रीकांत तिवारी से बदकिस्मत तो शायद ही कोई होगा। उसके बच्चे उसकी बात नहीं मानना चाहते, उसकी पत्नी उसकी बात सुनने को तैयार नहीं, और उसके काम पर अक्सर अपने बॉस की आलोचना का शिकार होना पड़ता है। इसके साथ ही उसे पूरी दुनिया से एक सीक्रेट भी रखना पड़ता है, कि वो सरकारी दफ्तर में पेन घिसने वाला एक मध्यम वर्गीय कर्मचारी नहीं, बल्कि देश की रक्षा करने वाला एक वरिष्ठ गुप्तचर है। क्या श्रीकांत दोनों पक्षों को सही से संभालकर अपने देश को दुश्मनों से बचा पाएगा? अभी हाल ही में अमेजॉन प्राइम की वेब सीरिज ‘द फ़ैमिली मैन’ चर्चा में आई है। इस वेब सीरीज में प्रमुख भूमिका में हैं मनोज बाजपेयी, शारिब हाशमी और दर्शन कुमार, और इनका साथ दिया है प्रियामणि, श्रेया धन्वन्तरि, दलीप ताहिल, गुल पनाग, सनी हिंदू, शरद केलकर और मीर सरवर जैसे कलाकारों ने।
ये सीरीज मुख्य रूप से एनआईए के वरिष्ठ एनालिस्ट श्रीकांत तिवारी के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे कश्मीर में एक आतंकी हमला रोकने के लिए भेजा जाता है। वहां उन्हें एक ऐसे हमले के बारे में पता चलता है, जो भारत को पाक के विरुद्ध युद्ध घोषित करने के लिए उकसा सकता है। अब श्रीकांत कैसे अपने साथियों के साथ इस हमले को रोकने में सफल रहता है, ये वेब सीरीज इसी पर आधारित है।
सबसे पहले बात करते हैं इस सीरीज में अच्छा क्या है। इस सीरीज को दो पहलू काफी दिलचस्प है, एक तो इसके संवाद, और दूसरा है इसके कलाकारों का अभिनय। मनोज बाजपेयी अपने अभिनय के लिए जाने जाते हैं, और इस सीरीज के जरिये उन्होंने एक बार फिर सिद्ध किया है कि लोग उनके अभिनय के इतने कायल क्यों हैं।
मनोज बाजपेयी के अलावा शारिब हाशमी ने भी बतौर जे.के तलपड़े के किरदार में जबरदस्त अभिनय किया है। भले ही प्रोपगैंडा के चलते किशोर कुमार जी॰ के किरदार यानि एनएसजी कमांडो पाशा को नकारात्मक दिखाने का प्रयास किया गया हो, परंतु उन्होंने अपनी भूमिका से भारतीय सैनिकों की गरिमा बनाए रखने का भरपूर प्रयास किया है। इसके अलावा मनोज के बच्चे बने महक ठाकुर और वेदान्त सिन्हा के साथ मनोज के किरदार के संवाद आपको कुछ-कुछ जगह गुदगुदाने पर विवश अवश्य करेंगे।
अब सीरीज की खामियों के बारे में बात करते हैं। तकनीकी तौर और इसकी कहानी को देखें, तो इस सीरीज में कोई कमी नहीं है। परंतु विचारधारा के परिप्रेक्ष्य में ये फिल्म उसी राह पर निकल पड़ती है, जिसके लिए ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘लीला’ और ‘घोल’ जैसी वेब सीरीज को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा है। इस वेब सीरीज में उसी एजेंडे को बढ़ावा दिया गया है, जिसके अनुसार भारत में दो विचारों का समर्थन किसी अपराध से कम नहीं समझा जाता – एक तो राष्ट्रवाद का समर्थन करना, और दूसरा सनातन धर्म को धर्मनिरपेक्षता के लिए अपमानित न करना।
इस वेब सीरीज में भले ही ये दिखाया गया हो कि हमारे इंटेलिजेंस अफसर किस तरह अपना सब कुछ दांव पर लगा कर देश के दुश्मनों से हमारी रक्षा करते हैं, परंतु हमारे देश के बुद्धिजीवी क्रोधित न हों, इसके लिए निर्देशक ने इस सीरीज में ज़बरदस्ती कुछ ऐसे संवाद और प्रसंग जोड़े हैं, जिन्हें देख आपको वामपंथी लेक्चर और टीवी पर प्रसारित न्यूज़ डिबेट के दौरान उनके द्वारा दिये गए तर्क याद आएंगे। चाहे गौरक्षकों द्वारा अल्पसंख्यकों पर किए जा रहे कथित हिंसा के लिए उनके घड़ियाली आँसू हो, या फिर किसी भी प्रकार के आतंकी घटना को उचित ठहराने के लिए उनके द्वारा दिये जाने वाले निराधार तर्क हों, आपको इस सीरीज में सब कुछ देखने को मिलेगा। यदि आपको विश्वास नहीं है, तो इसी सीरीज में एक संवाद, जो फ़िल्मकारों द्वारा प्रोपगैंडा को ज़बरदस्ती ठूँसने की मंशा को जगजाहिर करता है वो है,
‘यहाँ गाय के नाम पर लोगों को मार दिया जाता है, और हमें लगता है कि आईएसआईएस क्रूर है’
[द फ़ैमिली मैन के एक एपिसोड का डायलॉग]
बात यहाँ पर ही नहीं रुकती। इस सीरीज में आतंकवाद को उचित ठहराने के लिए कथित मौब लिंचिंग की भी दुहाई दी गयी है। चूंकि अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होते हैं, इसलिए हर प्रकार के आतंकी हमले उचित है। इस तरह का कंटेंट यदि अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवाने या अनुभव सिन्हा जैसे फ़िल्मकार ऑनस्क्रीन लाते हैं तो समझ में जाता है, परंतु इस वेब सीरीज के निर्देशक राज निदिमोरू और कृष्णा डीके हैं, जिन्हें ‘99’, ‘शोर इन द सिटी’, ‘गो गोवा गॉन’ एवं ‘स्त्री’ जैसी फिल्मों के लिए सराहा जाता है। यदि सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसे फ़िल्मकार भी इस घटिया तकनीक का सहारा लेने लगें, तो फिर कंटेंट ओरिएंटेड सिनेमा अथवा वेब सीरीज का क्या होगा?
परंतु यहाँ पर सिर्फ राष्ट्रवाद की ही आलोचना नहीं की जाती। इस वेब सीरीज में आतंकियों की नीयत को भी बिना लाग लपेट के उजागर किया गया है। इसके साथ ही ये भी दिखाया गया है कि कैसे हमारा पड़ोसी देश केवल हमें युद्ध के लिए उकसाने हेतु आतंकी घटनाओं को अंजाम देता है, जहां उनका प्रमुख लक्ष्य है ज़्यादा से ज़्यादा निर्दोष लोगों की हत्या करना। कुछ प्लॉट्स तो इस वेब सीरीज में ऐसे हैं, जिन्हें देखकर स्वयं वामपंथी लोग भी कुढ़ने लगेंगे। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘द फ़ैमिली मैन’ ने निष्पक्ष दिखने की आड़ में वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों को ही आहत किया है।
कुल मिलाकर ‘द फ़ैमिली मैन’ एक उत्कृष्ट वेब सीरीज हो सकती थी, जो दुर्भाग्यवश सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में लेफ्ट लिबरल प्रोपगैंडा की भेंट चढ़ गई। यदि ये सीरीज अनावश्यक प्रोपगेंडा से दूर रहती, तो इसकी लोकप्रियता को कोई हाथ भी ना लगा पाता। हमारी तरफ से ‘द फ़ैमिली मैन’ को मिलते हैं 5 में से 3 स्टार, क्योंकि वो क्या है न, हम समीक्षा करते हैं, अपने सहिष्णु आकाओं को प्रसन्न करने के लिए अनावश्यक आलोचना के लिए नहीं।