लिबरल्स को सेक्शन 375 से ज़बरदस्त मिर्ची लगी है, यानि ये देखने लायक मूवी तो अवश्य है

सेक्शन 375

हमारे भारतीय उदारवादियों की सहिष्णुता के बारे में तो सभी जानते हैं। वे इतने सहिष्णु हैं कि हर हिन्दू त्योहार पर पाबंदी लगाने के लिए सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाते हैं। हाल ही में जब आईपीसी की धारा 375 के दुरुपयोग पर आधारित ‘सेक्शन 375’ सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई, तो अपनी विचारधारा के विरुद्ध बनी फिल्म के प्रति हमारे लिबरल्स ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि वे अपने विचारधारा के विपरीत किसी भी तरह की सामग्री के प्रति कितने सहिष्णु हैं।

परंतु ‘सेक्शन 375’ की समीक्षा के लिए लिबरल्स आज सोशल मीडिया पर आलोचना का केंद्र क्यों बने है? ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हें अपनी विचारधारा के विपरीत एक भी शब्द पसंद नहीं, फिल्म की तो बात ही छोड़ दिये। बता दें कि भारतीय दंड सहिंता में सेक्शन 375 में महिला की सहमति के बिना बनाए गए संबंधों को कानून अपराध बताया गया है। फिल्म, सेक्शन 375 इसी कानून के दुरूपयोग पर आधारित है। फिल्म ‘सेक्शन 375’ ने झूठे रेप के मामलों में जिस तरह से मीडिया, न्यायपालिका एवं छद्म नारिवाद पर उंगली उठाई है, उसे देखकर तो हमारे लिबरल बुद्धिजीवियों का चिढ़ना किसी को भी चकित नहीं करेगा।

अपने पक्षपाती रिव्यूज़ के लिए जाने जाने वाली Scroll.in की नंदिनी रामनाथ ने ‘सेक्शन 375’ को पाँच में से केवल दो स्टार दिये हैं। उनके रिव्यू का शीर्षक कुछ इस प्रकार है, “चलिये रेप आरोपी की भी सुनते हैं। इस शीर्षक के पीछे का व्यंग्य इनके लेख में साफ दिखाई देता है, इनकी समीक्षा सेक्शन 375 का दुरुपयोग की ओर ध्यान देने वालों का न केवल मज़ाक उड़ाती हैं, बल्कि उन्हें गलत सिद्ध करने का भी हर संभव प्रयास करती हैं।

पक्षपाती रिव्यूज़ हों और हम ‘द वायर’ के तनुल ठाकुर की बात न करें, ऐसा कैसे हो सकता है? अपने बेहद नकारात्मक रिव्यूज़ के लिए अक्सर आलोचनाओं का सामना करने वाले तनुल ठाकुर ने सेक्शन 375 के लिए कहा है, “एक और बॉलीवुड फिल्म जो स्थिति को बदलने नहीं देना चाहती हालांकि, इस बार उन्होंने अपनी भाषा में काफी संयम रखा है, परंतु उनके विचार भी नंदिनी से ज़्यादा भिन्न नहीं हैं। अपनी वामपंथी विचारधारा के लिए चर्चित फिल्म क्रिटिक राजा सेन ने तो ‘द ताशकंद फाइल्स’ की भांति ही इस मूवी को रिव्यू करने से ही मना कर दिया।

हालांकि, ‘सेक्शन 375’ को जिस न्यूज़ पोर्टल ने बेहद आपत्तीजनक रिव्यू दिया, वो था हफिंग्टन पोस्ट। इस पोर्टल के लिए फिल्म रिव्यू करने वाली क्रिटिक पियाश्री दासगुप्ता को मानो यह फिल्म देखकर सबसे ज़्यादा धक्का पहुंचा है, जो उनके शीर्षक में साफ दिखाई दे रहा था, “इस फिल्म के निर्माता किस दुनिया में रहते हैं?” ‘कबीर सिंह’ की भांति ही इस फिल्म पर यौन शोषण को बढ़ावा देने का इस रिव्यू ने बेहद बेतुका प्रयास किया, और इसी के संबंध में हफिंग्टन पोस्ट के संपादक अंकुर पाठक ने एक बेहद आपत्तीजनक पोस्ट भी किया, जो सोशल मीडिया पर बढ़ते आक्रोश के चलते उन्हें हटाना पड़ा।

वैसे लिबरल गैंग की ये आलोचना अच्छी भी है। दरअसल, इस आलोचना से हमारे लिबरल क्रिटिक वही गलती दोहरा रहे हैं, जिसके कारण ‘उरी’, ‘परमाणु’, ‘द ताशकंद फाइल्स’ और अब ‘बाटला हाउस’ सफल हुई हैं। अंग्रेज़ी में कहते हैं, ‘जिस फल से आपको वंचित रखा जाये, वही सबसे स्वादिष्ट लगता है।” यही बात हमारे दर्शकों पर भी लागू होती है, जो इन लिबरल्स के पक्षपाती रिव्यू से चिढ़कर ऐसी मूवी को खुद ही देखकर आते हैं, और इस तरह की फिल्मों को अप्रत्याशित सफलता भी दिलवाते हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा, तो लिबरल्स एक दिन केवल हंसी का पात्र बनकर रह जाएंगे और वो दिन दूर नहीं।

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