भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने ‘चाणक्य के जीवन और कार्य’ पर पुणे में एक भाषण के दौरान कहा था, “चाणक्य, राज्य के प्रत्येक व्यक्ति की नीति में विश्वास करते थे। इसलिए, जब नरेंद्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका साथ’ कहा, तो मैंने महसूस किया कि उन्होंने चाणक्य की लिखी बातों को बहुत पहले ही पढ़ लिया है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जिहोंने चाणक्य के विचारों को अपने जीवन में पूरी तरह से उतार लिया है। उनके सभी फैसले, सभी नीतियों में चाणक्य की छवि स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
भारत के इतिहास में चाणक्य का नाम अमर है। मौर्य वंश की स्थापना करने वाले आचार्य चाणक्य भारत के पहले यथार्थवादी चिन्तक हैं जो सशस्त्र शास्त्र के ज्ञाता, शासन एवं कूटनीति में महारथी, सफल सलाहकार, रणनीतिकार, लेखक और एक कुशल राजनीतिज्ञ थे। चाणक्य का ज्ञान इतना गहरा और अचूक है कि हर किसी को जीवन जीने की सही राह दिखाती है। चाणक्य के ही विचारों पर चलकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने भारत में सबसे बड़े राज्य मगध का विस्तार किया और राज भी किया। चाणक्य ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए कई अहम बातें बताई हैं जो कठीन राहों में दीपक का काम करती हैं। विदेश नीति, रक्षा नीति, कानून व्यवस्था से लेकर राज्य में शासन तक की नीतियां आज भी प्रासंगिक हैं।
भारत चाणक्य के समय में विश्वगुरु हुआ करता था। यदि भारत को वही गौरव आज फिर से लाना है और ’विश्व गुरु’ बनाना है, तो चाणक्य को फिर से जागृत करने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसी राह पर चल रहे हैं। चाणक्य ने ही सबसे पहले ‘नेशन फ़र्स्ट’ की अवधारणा दी थी और कहा था, ‘राष्ट्र सर्वोच्च है, शासक नहीं’। पिछले पाँच वर्षों में मोदी सरकार ने भी ‘नेशन फ़र्स्ट’ यानि देशहित को सर्वप्रथम रखा है और इस सरकार की हर नीति राष्ट्रीय हित से प्रेरित है। चाणक्य ने कहा था शासक का पहला दायित्व प्रजा की सेवा करना है और जब पीएम मोदी यह कहते हैं कि वह एक देश के प्रधानसेवक हैं तब ऐसा लगता है मानो फिर से चाणक्य के समय का गौरव लौट आया है।
चाणक्य ने जिस तरह से शासक के लिए जन्म नहीं कर्म की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था उसी तरह पीएम मोदी ने देश के अंदर सभी राजनीतिक वंशवाद को लगभग समाप्त कर दिया या फिर उनकी प्रासंगिकता को ही खत्म कर दिया है।
चाणक्य की नीति समाज में शासक के सीमित हस्तक्षेप का तर्क देती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वर्ष 2014 में यही विचार अपनाया और ‘Minimum government, maximum governance’ की राह पर चले। पिछले कुछ वर्षों में, डिजिटलीकरण की मदद से सरकारी अधिकारियों के हस्तक्षेप को कम किया जा रहा है। भ्रष्टाचार को कम करने के लिए ही डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रम पर बल दिया गया है। एक उदाहरण देखें तो हर साल सरकारी हस्तक्षेप को कम करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के PSUs का निजीकरण किया जा रहा है।
चाणक्य ने कई वर्षों पहले ही विस्तृत विदेश नीति लिख दी थी जबकि कहा जाता है कि आजादी से पहले देश कोई विदेश नीति नहीं होती थी। प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश नीति में चाणक्य के विचारों का ही पालन किया है। चाणक्य के अनुसार किसी देश को विदेश नीति के मामलों में ‘यथार्थवाद’ या “रियलिज़्म” का पालन करना चाहिए और किसी अन्य देशों के साथ समझौता करते समय ‘राष्ट्रीय हित’ को सर्वोच्च रखना चाहिए। यह विचार “नेहरूवादी विदेश नीति” के ठीक विपरीत है, उनकी विदेश नीति में ‘राष्ट्रीय हित’ कम, दूसरे देशों का हित ज्यादा शामिल होता था।
मोदी सरकार की विदेश नीति को राजनीतिक गलियारों के सभी विशेषज्ञों ने सराहा है। पीएम मोदी के शासन में भारत एक प्रमुख वैश्विक शक्ति बन चुका है। आज दुनिया भर के देश भारत के साथ जुड़ने और सहयोग करने की इच्छा रखते हैं। पीएम मोदी के ह्यूस्टन में होने वाले कार्यक्रम में अमेरिकियों के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प भी भाग लेने वाले हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि पीएम मोदी की उपस्थिति का सभी उपयोग करना चाहते हैं। चाहे वह अमेरिकी राष्ट्रपति ही क्यों न हो। यह चाणक्य के राजनीतिक दर्शन की ताकत को ही दर्शाता है।
चाणक्य के विचारों को अक्सर मत्स्य न्याय की तरह देखा जाता है जिसमें बड़ी मछ्ली छोटी मछ्ली को खा जाती है और ऐसे में ज्यादा ताकतवर का शासन बना रहता है। लेकिन चाणक्य की नीतियाँ ठीक इसके विपरीत हैं जिन्होंने एक ‘नियम आधारित प्रणाली’ का तर्क दिया था। उनकी नीति के अनुसार- ‘’देश का कानून सर्वोच्च है, और भिक्षु से करोड़पति तक सभी को न्याय मिलना चाहिए।
टैक्स पर चाणक्य ने कहा था कि राजा को उसी तरह से टैक्स लेना चाहिए जैसे कि मधुमक्खियां फूलों को नुकसान पहुँचाए बिना अमृतरस निकाल लेती हैं। ठीक इसी नीति पर चलते हुए मोदी सरकार ने आयकर विभाग के कई भ्रष्ट अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया। इससे भी स्पष्ट होता है कि आम जनता को नुकसान पहुंचाने वाले अधिकारियों की इस देश में कोई जगह नहीं है। वर्तमान समय में भारत में टैक्स जीडीपी का 17 प्रतिशत है, जैसा कि चाणक्य के समय में था।
आंतरिक सुरक्षा समस्याओं को हल करने के लिए, चाणक्य नर्म और कठोर दोनों प्रकार की नीतियों की सलाह देतें हैं। उन्होंने लिखा है, ” शासक को आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मामलों पर पहले समझौते और मध्यस्थता की नीति अपनानी चाहिए। मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में इसी नीति को अपनाते हुए पहले कश्मीरियों को यह विश्वास दिलाया कि वे महसूस करें कि यह उनकी सरकार है न कि वंशवादी नेताओं की।” आंतरिक खतरों से निपटने के लिए चाणक्य ने कठोर रणनीति की भी बात की थी। मोदी सरकार ने भी जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के साथ यही किया। मोदी सरकार के गृहमंत्री अमित शाह ने अलगाववादी नेताओं पर संसद में कहा था, “हाँ, आज उनके मन में एक डर है। यह बिल्कुल होना चाहिए।”
प्रधानमंत्री मोदी ने चाणक्य द्वारा लिखे गए विचारों का बखूबी पालन किया है। इन्हीं विचारों से कई सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। हम यह दावे के साथ कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश इसी तरह आगे बढ़ता रहा और चाणक्य नीति पर चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब भारत “विश्व गुरु” बन जाएगा।