गुरू गोपीचंद, साइना नेहवाल और पीवी सिंधु- कैसे एक खिलाड़ी का पतन होता है और दूसरे का उदय

साइना नेहवाल

एक गुरु थे, जिनके कौशल का कोई सानी नहीं था, और ये बात उनकी शिष्याओं से बेहतर कोई नहीं जानता था। दोनों शिष्या एक से बढ़कर एक थीं, एक शेर तो दूसरी सवा सेर। परंतु समय का चक्र कुछ ऐसा घूमा कि एक शिष्या ने अपने गुरु का साथ छोड़ना उचित समझा। उसे लगा कि गुरु तो गुड़ ही रहेंगे, समय है अब शक्कर बनने का। परंतु हुआ ठीक उल्टा। शिष्या गुड़ रह गयी, और गुरु की देखरेख में दूसरी शिष्या शक्कर बन गयी। यह कोई कपोल कल्पना नहीं, बल्कि वास्तविक है। और ये रोचक कहानी है बैडमिंटन के चमकते सितारे रह चुके पुलेला गोपीचन्द और उनकी दो प्रसिद्ध शिष्याओं साइना नेहवाल और पीवी सिंधू की।

दरअसल, वर्ष 2001 में ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप के विजेता रह चुके गोपीचन्द ने देश में बैडमिंटन को उसका सम्मान दिलाने का बीड़ा उठाया, और अपना सब कुछ दांव पर लगाते हुए उन्होंने गोपीचन्द बैडमिंटन अकैडमी खोलने का निर्णय लिया। शुरू-शुरू में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन वर्ष 2008 में उनका भाग्योदय हुआ, जब उनके शिष्यों में से एक, साइना नेहवाल उनके अकादमी में प्रशिक्षण लेने आती हैं। गुरू प्रशिक्षण देते हैं और शिष्या विश्व के सबसे बड़े खेल प्रतियोगिता में लड़ने के लिए तैयार होती है।

स्थान था बीजिंग और अवसर था 2008 के बीजिंग ओलंपिक का। कई खेलों की भांति बैडमिंटन में भारत महज़ औपचारिकता के लिए अपने खिलाड़ियों भेजता था। परंतु साइना उनमें से नहीं थीं। दीपांकर भट्टाचार्य के बाद ओलंपिक बैडमिंटन के प्री क्वार्टर फ़ाइनल में पहुँचने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनी साइना नेहवाल ने सभी को चौंकाते हुये 2007 के विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप की रजत पदक विजेता रही हाँग काँग की वैंग चेन को हराया और क्वार्टर फ़ाइनल में अपनी जगह बनाई। भले ही वे इंडोनेशिया की मारिया क्रिस्टीयाना यूलियाँती से हार गयी थीं, पर साइना ने भारतीय बैडमिंटन के पुनरुत्थान की नींव डाल दी थीं।

इसके बाद तो गोपीचन्द के प्रशिक्षण में साइना ने नित नए कीर्तिमान गढ़ने प्रारम्भ कर दिये। 2008 में जूनियर विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतना हो, 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतना हो, या फिर 2011 के विश्व सुपर सीरीज़ में भारत को पहली बार व्यक्तिगत रजत पदक जीतना हो, साइना धीरे-धीरे भारत की नई स्पोर्ट्स आइकॉन के तौर पर उभर कर सामने आ रही थीं। हालांकि उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर लंदन ओलंपिक 2012 सामने आई, जब उन्होंने भारत को पहली बार बैडमिंटन में पदक जिताते हुये कांस्य पदक प्राप्त किया। इसी अकैडमी से साई प्रणीत, किदाम्बी श्रीकांत, परूपल्ली कश्यप, आरएमवी गुरूसाई दत्त एवं अरुण विष्णु जैसे खिलाड़ी भी उभरकर सामने आए।

इसी समय पीवी सिंधू ने भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई, जब उन्होंने लंदन ओलंपिक की स्वर्ण पदक विजेता ली शुएरुई को ली निंग चाइना मास्टर्स टूर्नामेंट में 21-19, 9-21, 21-16 से हराते हुये सेमीफ़ाइनल में प्रवेश किया था। भले ही वे सेमीफ़ाइनल हार गयी थीं, परंतु उन्होंने सिद्ध कर दिया था कि भारतीय बैडमिंटन में भी अभी बहुत छुपे रुस्तम उपस्थित हैं।

2013 में पीवी सिंधू ने पदकों में भारत का सूखा खत्म करते हुये महिला एकल श्रेणी में कांस्य पदक जीता। 1987 में प्रकाश पादुकोण के कांस्य पदक के बाद ये भारत का पहला व्यक्तिगत पदक था। इसके तुरंत बाद 2014 में एक बार फिर सिंधू ने पोडियम पर अपना स्थान कायम रखते हुये कांस्य पदक जीता, जबकि साइना नेहवाल को क्वार्टर फ़ाइनल में ही बाहर होना पड़ा। यहीं से गोपीचन्द-साइना-सिंधू की तिकड़ी में दरार पड़नी शुरू हो गयी।

कई लोगों में इस बात को लेकर मतभेद है कि किस कारण से साइना ने गोपीचन्द अकैडमी छोड़ी। परंतु scroll.in की माने तो साइना इस बात से दुखी थीं कि उन्हें अन्य शिष्यों के मुक़ाबले अकैडमी में विशेष ध्यान नहीं दिया जाता, जबकि पुलेला गोपीचन्द एक आदर्श गुरु की भांति सभी शिष्यों को एक समान प्रशिक्षण देते थे। इसी स्वघोषित दुख के कारण विश्व चैंपियनशिप सम्पन्न होते ही साइना ने गोपीचन्द का प्रशिक्षण छोडकर अपने व्यक्तिगत ट्रेनर यू विमल कुमार से प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया।

शुरूआत में साइना को इसका फ़ायदा भी दिखने लगा, जब 2015 के विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने सभी को चौंकाते हुये फ़ाइनल में प्रवेश किया। परंतु यह खुशी ज़्यादा देर टिक नहीं पायी, और 2016 के रियो ओलंपिक में उन्हें पहले ही राउंड में बाहर का रास्ता देखना पड़ा। वहीं पीवी सिंधू ने अर्जुन की भांति केवल अपने लक्ष्य पर अपना ध्यान केन्द्रित किया, और साइना से एक कदम आगे निकलते हुये उन्होंने रियो ओलंपिक में महिला एकल स्पर्धा के फ़ाइनल में प्रवेश किया। हालांकि उन्हें स्पेन की कैरोलिना मारिन के हाथों हार का सामना करना पड़ा, परंतु पीवी सिंधू का रजत पदक भारत द्वारा ओलंपिक बैडमिंटन में जीता गया पहला रजत पदक भी था।

इसके बाद तो धीरे-धीरे पीवी सिंधू साइना नेहवाल से आगे निकलती चली गयीं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भले ही हेड टू हेड एनकाउंटर में साइना नेहवाल ही आगे हों, लेकिन कुल मिलाकर पीवी सिंधू साइना नेहवाल पर भारी पड़ती दिखाई दी हैं। टूर्नामेंट कोई भी हो, पीवी सिंधू हर जगह पोडियम फिनिश करके ही वापस लौटती हैं। एशियाई खेलों में भी पीवी सिंधू ने इतिहास रचा, जब उन्होंने अकाने यामागुची को हराकर एशियाई खेलों के महिला एकल बैडमिंटन स्पर्धा के फ़ाइनल में प्रवेश किया।

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