भारतीय राजनीति के वो राजकुमार जिन्होंने विरासत में मिली राजनीति को मिट्टी में मिला दिया

भारत में सबसे ज्यादा अगर कुछ फेमस है तो वह है वंशवाद। यह सभी क्षेत्र में देखने को मिलता है। चाहे वह राजनीति हो, खेल हो या बिजनेस, सभी जगह यह व्याप्त होता है। भारतीय राजनीति तो इसकी मिसाल है। यहाँ कई ऐसे नमूने मिल जाएंगे। लेकिन एक बात ध्यान देने वाली है कि नेताओं के बच्चे जिन्हें विरासत में राजनीतिक कैरियर मिल गया, अक्सर वे सभी असफल ही रहे हैं। इन नई पीढ़ी के नेताओं ने पार्टी की कमान तो बड़े जोश में अपने हाथों में ली थी लेकिन राजनीति का कम ज्ञान और जनता को न समझ पाने की वजह से अपना और अपने पार्टी की लुटिया डुबो दी। ऐसे ही कुछ नेताओं में से कुछ के बारे में एक नजर डालते हैं-

  1. अखिलेश यादव-

पहला नाम सपा के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव आता है। अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव के सुपुत्र हैं और वर्ष 2017 से “घरेलू लड़ाई” के बाद पार्टी के अध्यक्ष हैं। सिडनी विश्वविद्यालय से पर्यावरण इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर अखिलेश यादव, मई 2009 के लोकसभा उप-चुनाव में पहली बार उतरे थे। उनके लिए यह बहुत आसान एंट्री थी क्योंकि उनके पापा की अपनी ही पार्टी थी भाई। इनकी एंट्री से ही स्पष्ट हो गया कि समाजवादी पार्टी का कमान आने वाले समय में अखिलेश ही संभालने वाले हैं। इसके बाद तो जैसे उनकी लॉटरी ही लग गयी, मार्च 2012 के विधान सभा चुनाव में 224 सीटें जीतकर मात्र 38 वर्ष की आयु में ही उत्तर प्रदेश के 33वें मुख्यमन्त्री बन गए। पार्टी की कमान अभी भी मुलायम सिंह यानि उनके पापा के हाथों में थी। इसलिए सत्ता में तो आ गए लेकिन जैसे ही अखिलेश यादव ने सब कुछ अपने नियंत्रण में लेने की सोची उसी दिन से समाजवादी पार्टी और उनका बुरा दिन आरंभ हो गया। मुलायम सिंह जैसे नेता अपनी जातिवाद की राजनीति में माहिर माने जाते थे, किसी रॉकेट साइन्स का फार्मूला लगाए बिना बस जाति, मंडल कमीशन और मंदिर को केंद्र में रखकर अपनी जीत जारी रखे थे। लेकिन नई पीढ़ी के अखिलेश को जमीनी राजनीति का ज्ञान ही नहीं था और वे सब कुछ हासिल करने के चक्कर में पद और पार्टी दोनों की लुटिया डुबो दिए। आज हालत यह है कि अपने चीर प्रतिद्वंदी बसपा से गठबंधन करने के बाद भी सपा को लोकसभा चुनाव में सिर्फ 5 सीटें ही मिल पायी। अखिलेश का पूरा समय अपने चाचा शिवपाल से मतभेद में ही बीत गया और नेतृत्व में अक्षमता के कारण समाजवादी पार्टी अब पतन की ओर अग्रसर हो चुकी है।

2. तेज प्रताप यादव

अब बात करते हैं दूसरे नेता की जो पिता से हासिल विरासत को आगे ले जाने के बजाय उसे और गड्ढे में गिरा दिया। हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजप्रताप यादव की। चारा घोटाले में सजा काट रहे अपने पिता लालू प्रसाद यादव की विरासत पर कब्‍जा करने की महत्‍वाकांक्षा और अपने भाई तेजस्वी के साथ मतभेद के कारण तेजप्रताप ने अपने पिता की कमाई हुई राजनीतिक महत्व को भी मिट्टी में मिला दिया। लोकसभा चुनाव में लालू परिवार के बीच नेतृत्‍व की लड़ाई कहीं न कहीं राजद के हार का प्रमुख कारण बना। अपनी शर्तों पर गठबंधन बनाकर चुनावी मैदान में उतरी राजद को राज्‍य में एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई। लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही राजद परिवार में मीसा भारती, तेज प्रताप यादव, तेजस्‍वी यादव के बीच कहीं न कहीं अंदरूनी खींचतान स्पष्ट था। तलाक को लेकर तेजप्रताप वैसे भी अपने परिवार में बैकफुट पर आ गए थे। ऐवर्श्‍या से तलाक लेने के उनके कदम का परिवार में कोई समर्थन नहीं कर रहा है। परिवार में हाशिये पर आने के बाद तेजप्रताप पार्टी से भी अपनी पकड़ खोते नजर आ रहे हैं।

3. तेजस्वी यादव

वहीं उनके भाई तेजस्वी भी उनसे कम नहीं हैं, उन्होंने राजद पर अपना वर्चस्व बढ़ाने के चक्कर में पार्टी की ही लुटिया डुबो दी। टिकट बंटवाने का मामला हो या चुनाव प्रचार हर जगह पार्टी के अंदर तेजस्‍वी अपने बड़े भाई पर हावी होते नजर आए। पाटिलपुत्र सीट पर जब तेजस्‍वी परिवार के बाहर टिकट देने जा रहे थे तो उसका खुलकर विरोध तेजप्रताप ने किया था। जिसके बाद उस सीट को मीसा भारती को दे दिया गया। मीसा भारती भी राजद पर शुरू से अपनी पकड़ बनाना चाहती थीं। इन तीनों ने ही लालू प्रसाद यादव की वर्षों से की गयी मेहनत को मिट्टी में मिला दिया। लालू आज अपने भ्रष्टाचारों के कारण जेल में है लेकिन उन्होंने क्षेत्रीय राजनीति में एक मुकाम जरूर हासिल किया था जिसे उनकी अगली पीढ़ी ने आज और नीचे गिरा दिया है।

4. अभिषेक बनर्जी

इसी कड़ी में एक और नाम आता है जो हैं ममता बनर्जी के भतीजे यानि अभिषेक बनर्जी। वे डायमंड हार्बर से तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं। 31 वर्षीय अभिषेक ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की यूथ विंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं लेकिन वह भी पार्टी को नीचे ले जा रहे हैं। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लग चुके हैं। ममता चाहती हैं कि आने वाले समय में वह पार्टी में उनकी जगह लें। हालांकि, इसे लेकर तृणमूल कांग्रेस के सीनियर लीडर्स ने नाखुशी जाहिर की है।

5. राहुल गांधी

जब हम बात करते हैं वंशवाद और असफलता की तो एक नाम जरूर आता है और वह हैं राहुल गांधी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी को वर्ष 2013 में कांग्रेस का उपाध्यक्ष बना कर बहुत पहले ही यह बता दिया गया था कि वे ही पार्टी के अगले अध्यक्ष बनेंगे। उस समय लोकसभा में कांग्रेस की कुल 207 सीटें थी जो उनके अध्यक्ष बनने के बाद वर्ष 2019 में 52 तक सिमट चुकी है।

इस लिस्ट में कई नाम हैं जो अपने परिवार की बनी बनाई राजनीति को अपने नेतृत्व की अक्षमता के कारण बर्बाद कर चुके हैं और अब पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुके हैं। नेताओं को समझना होगा कि राजनीति में लोकप्रियता विरासत में नहीं मिलती बल्कि लोगों के बीच अपने कार्यों से जगह बनानी पड़ती है। साथ ही नेतृत्व क्षमता भी होनी चाहिए नहीं तो वही हाल होगा जो आज कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल का हुआ है।

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