2019 के लोकसभा चुनावों से पहले लेफ्ट लिबरल गिरोह के सदस्यों ने कुछ चुनिन्दा मीडिया आउटलेट के साथ मिलकर यह भ्रम फैलाना शुरू कर दिया था कि भाजपा ने हिन्दू वोट का ध्रुवीकरण शुरू कर दिया है, और देश के मुसलमानों को राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक कर दिया गया है। भाजपा के प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता वापसी के बाद भी इन बुद्धिजीवियों ने यही एजेंडा फैलाया कि भाजपा केवल हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के कारण ही सत्ता में वापस आई है, और मुस्लिम समुदाय को पूरी तरह किनारे लगा दिया गया है।
लेकिन अगर हम 14 मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों के नतीजों पर एक नज़र डालें, तो सत्य तो कुछ और ही है। इन 14 क्षेत्रों में से 2 क्षेत्रों को छोडकर बाकी सभी सांसद मुस्लिम समुदाय से आते हैं। बाकी दो क्षेत्रों के सांसदों में एक लोकसभा में काँग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी हैं, तो दूसरा मुस्लिम लीग पार्टी का एक गैर मुस्लिम नेता है। दोनों ही पार्टियों ने मुस्लिम समुदाय को भारत में महज एक वोट बैंक तक सीमित रखने का काम किया है।
वोटबैंक की यह निकृष्ट राजनीति इस बात से ही स्पष्ट हो जाती है कि इस वर्ष लोकसभा में 27 मुस्लिम सदस्यों ने शपथ ली। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से चुने गए 12 मुस्लिम सांसदों के अलावा 15 ऐसे सांसद भी थे, जो उन क्षेत्रों से निर्वाचित हुये, जहां मुसलमान अल्पसंख्या में थे। इससे स्पष्ट समझ में आता है कि जहां मुस्लिम बहुल क्षेत्रों ने केवल मुस्लिम सदस्यों को निर्वाचित किया है, या उन्हें निर्वाचित किया है जो अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में हिस्सा लेते हैं, तो वहीं बाकी क्षेत्रों में ऐसा ध्रुवीकरण देखने को नहीं मिला है। यदि गैर मुस्लिम क्षेत्रों में ध्रुवीकरण हुआ होता, तो वहाँ पर इतने मुस्लिम सदस्य निर्वाचित भी नहीं होते।
In Bihar
Kishanganj- Mohammed Javed (Congress)
In AP
Hyderabad- Asaduddin Owaisi (AIMIM)
Lakshadweep- Mohammed Faizal (NCP)
In J&K
Srinagar- Farooq Abdullah (NC)
Baramullah- Akbar Lone (NC)
Anantnag- Hasnain Masoodi (NC)
— Amit Agrahari (@Amit_Agrahari94) October 11, 2019
ये न केवल विपक्ष के हिन्दू ध्रुवीकरण के आरोप के ठीक उलट है, अपितु उनके विषैले प्रोपगैंडा को भी उजागर करता है। जबसे मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता ग्रहण की है, तभी से इन राजनीतिक शक्तियों और लुटयेंस दिल्ली के अभिजात्य वर्ग ने मुसलमानों में अलगाव की एक भ्रामक भावना उत्पन्न करने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया है। उनके मन में इन अवसरवादी लोगों ने एक काल्पनिक ध्रुवीकरण के ‘घातक परिणामों’ का डर बिठाना शुरू कर दिया, ताकि वे उनकी बातों में आकार उनके विभाजनकारी एजेंडे को बढ़ावा दे सके।
2019 के चुनावी परिणामों से एक बात तो साफ है, कि हमारे कथित सेक्यूलर पार्टियों का प्रमुख ध्येय है हिन्दूविरोध को बढ़ावा देना और मुसलमानों में हिन्दुत्व की राजनीति के भ्रामक तथ्य बता उनके मन में गलत धारणाएँ बिठाना। इन पार्टियों ने अपना एजेंडा केवल डर बढ़ाने और भ्रामक तथ्यों को बढ़ावा देने तक ही सीमित किया है, ताकि वे राजनीति में बने रह सके। इसके कारण देश में अनावश्यक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, जो मुसलमानों को मुख्यधारा में जुडने से रोक रहा है।