हॉन्ग-कॉन्ग मुद्दे पर चीन को घेरने के बाद, अब अमेरिका की नजर तिब्बत पर

PC: https://www.rfa.org

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता मामलों के अमेरिकी राजदूत सैम ब्राउनबैक ने अपनी भारत यात्रा के दौरान तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से सोमवार को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मुलाक़ात की। यूएस स्टेट डिपार्टमेन्ट के अनुसार अमेरिकी राजनयिक ब्राउनबैक तिब्बती पर्फॉर्मिंग आर्ट्स संस्थान के 60वें वर्षगांठ के अवसर पर व्याख्यान देने के लिए आए थे। उन्होंने विश्व भर में बौद्ध धर्म के तिब्बती अनुयायियों की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए व्यापक बदलाव लाने की बात भी कही।

ब्राउनबैक अपने ट्वीट में लिखते हैं – “मैं भारत में हिज़ होलिनेस दलाई लामा से मिलकर काफी प्रभावित हुआ हूँ। वे घृणा और असहिष्णुता से ऊपर उठ धार्मिक स्वतन्त्रता के जीते जागते प्रमाण के तौर पर सामने आए हैं। मैं तिब्बती समेत सभी की धार्मिक स्वतन्त्रता के लिए काम करने को लेकर उत्सुक हूँ”।

अमेरिकी राजनयिक की यह मुलाक़ात काफी अहम है क्योंकि चीन ऐसे किसी भी देश के विरुद्ध रहा है जिसने या तो दलाई लामा से बातचीत की हो या फिर उनसे संपर्क करने की कोशिश की हो। 2017 में बीजिंग ने धमकी भी दी थी कि जो भी देश दलाई लामा का स्वागत करेगा या उनसे बात करेगा, वो चीन के लिए किसी अपराधी से कम नहीं होगा। चीन ने तो 84 वर्षीय दलाई लामा को देशद्रोही तक घोषित कर दिया, क्योंकि उन्होंने स्वतंत्र तिब्बत के लिए निर्वासन में सरकार की स्थापना भी की थी। चीन ये तक स्वीकारने से मना करता है कि दलाई लामा से वैश्विक नेता एक धर्मगुरु होने के नाते मिलते हैं। उनके अनुसार दलाई लामा धर्म का चोगा ओढ़े एक राजनीतिक हस्ती हैं।

ऐसे हालात में एक उच्च अमेरिकी राजनयिक का दलाई लामा से मिलना चीन को फूटी आँख नहीं सुहाने वाला। परंतु अमेरिकी राजनयिक की मुलाक़ात चीन के लिए इसलिए भी और चिंताजनक हैं क्योंकि ये भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर के तवांग दौरे के ठीक बाद हुआ है। वे तीन वर्षों में अरुणाचल प्रदेश के तवांग उत्सव का हिस्सा बनने वाले दूसरे अमेरिकी राजनयिक हैं। रोचक बात तो यह है कि अमेरिकी राजदूत ने स्वयं इस उत्सव का उदघाटन किया था। उन्हें आभार प्रकट करते हुए अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडु ने ट्वीट किया था,- “अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर ने तवांग उत्सव का उदघाटन किया। आपका धन्यवाद श्रीमान केनेथ कि आपने इस उत्सव में मुख्य अतिथि का पदभार स्वीकारा”

बता दें कि चीन अरुणाचल प्रदेश के दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करता रहा है। भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के 3 हजार 488 किलोमीटर पर सीमा विवाद है। जब भी केंद्र सरकार का कोई भी मंत्री पूर्वोत्तर के दौरे पर जाता है तो चीन को खलबली मच जाती है। इसी साल फरवरी महीने में पीएम मोदी अरुणाचल यात्रा पर गए हुए थे उस दौरान चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा था- “चीन और भारत सीमा विवाद निपटाने के लिए बातचीत कर रहे हैं। जल्द ही इस पर सहमति बन सकती है। चीन भारत से अपने वादे की इज्जत करने और उस पर बने रहने की अपील करता है। भारत को ऐसे किसी भी एक्शन से बचना चाहिए जिससे सीमा विवाद और ज्यादा उलझे। हम पीएम मोदी की अरुणांचल यात्रा का विरोध करते हैं।”

इस प्रतिक्रिया के आने के बाद भारत ने चीन को नसीहत दे डाली। विदेश मंत्रालय ने चीन की टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि अरुणाचल प्रदेश राज्य भारत का एक “अभिन्न और अविभाज्य अंग” है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान में उस दौरान कहा-‘अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। भारतीय नेता समय-समय पर अरुणाचल प्रदेश का वैसे ही दौरा करते आए हैं, जैसे वे भारत के किसी दूसरे हिस्से का दौरा करते हैं। कई मौकों पर चीनी पक्ष को भारत के इस रुख से अवगत कराया जा चुका है।’

यहां तक ​​कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से केन जेस्टर के फोटो व सूचना को रिट्वीट किया और इस पर लिखा- ”अमेरिकी राजदूत की तवांग यात्रा इस बात को रेखांकित करता है अमेरिका भारत की अखंडता का पूरी तरह से सहयोग करता है और स्थानीय साझेदारी को लेकर प्रतिबद्ध है। अमेरिका अरुणाचल में स्वास्थ्य और समाजिक विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग कर रहा है। इसके लिए राजीव गांधी विश्वविद्यालय एवं साउथ फ्लोरिडा के संयुक्त प्रोजेक्ट को अमेरिकी फंडिंग प्रदान की जाएगी”। इसलिए, यह केवल सूक्ष्म संकेत नहीं है, बल्कि ट्रम्प प्रशासन ने वास्तव में चीन को एक मुखर और स्पष्ट संदेश दिया है कि अब ड्रैगन की ड्रामेबाजी नहीं चलेगी।

ट्रम्प प्रशासन के सख्त रुख से तिलमिलाया हुआ चीन अब अमेरिकी राजनयिक द्वारा दलाई लामा के मुलाक़ात से पूरी तरह बौखला गया होगा। बता दें कि चीन पर यूएस की कार्रवाई से डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने विचार स्पष्ट कर दिये हैं। उन्होंने दावा किया था कि भविष्य में 13 प्रतिशत कंपनियाँ चीन को छोड़ देंगी। यूएन के जनरल एसेम्बली में भी उन्होंने चीन के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने चीन द्वारा हॉन्ग-कॉन्ग पर अत्याचारों का उल्लेख करते हुए न सिर्फ चीन की आलोचना की बल्कि साउथ चाइना सागर वाले मुद्दे पर भी अपने अड़ियल रुख से चीन को नाकों चने चबवा दिये। अब अरुणाचल प्रदेश में भारत के पक्ष का समर्थन करके और दलाई लामा से बातचीत कर अमेरिका ने चीन को स्पष्ट संदेश दिया है– दादागिरी में चीन अमेरिका को पछाड़ने की सोचे भी न तो ही सही होगा।

Exit mobile version