हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा कल शाम को गई। अब सरकार बनाने की कवायद चल रही है। बीजेपी दोनों ही राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बावजूद मायूस दिख रही है, वहीं कांग्रेस महाराष्ट्र में चौथे और हरियाणा में दूसरे स्थान पर रहने के बावजूद भी खुश है। दोनों ही राज्यों में सरकार रहने के बावजूद भी वोट प्रतिशत में काफी गिरावट देखी जा सकती है।
कांग्रेस, NCP, जेजेपी जैसी पार्टियों का उदय इस बात की पुष्टी करते हैं कि बीजेपी कहीं न कहीं आम जनता के बीच विरोधी लहर का सामना कर रही है। इस विरोधी लहर में सबसे ऊपर इन दोनों राज्यों में किसानों की हालात और कृषि क्षेत्रों की वृद्धि दर में गिरावट है।
यह दोनों ही राज्य कृषि में अग्रणी हैं। कृषि क्षेत्र में एक तरफ हरियाणा 17 प्रतिशत का योगदान देता है तो वहीं महाराष्ट्र देश की कुल कृषि क्षेत्र में 12 प्रतिशत का योगदान देता है। अगर हम एक-एक कर इन दोनों राज्यों में किसानों की हालात देखें तो यह स्पष्ट तौर पर दिखता है कि इन राज्यों में किसानों ने अपने स्तर पर भाजपा का विरोध ही किया था।
महाराष्ट्र की बात करें तो इस वर्ष तक लगभग 610 किसानों ने सूखे की वजह से आत्महत्या की थी। वहीं वर्ष 2015 से 2018 के बीच यह संख्या 12000 तक पहुंच चुकी है। इतनी बड़ी संख्या में किसानों की आत्महत्या का कारण कम पैदावार, सिंचाई के लिए पानी की कमी, फसलों के लिए बाजार की कीमतों में कमी और ओलावृष्टि को माना जा सकता है। महाराष्ट्र सरकार ने इस वर्ष के अपने बजट में वादा किया था कि सिंचाई पर 12,000 करोड़ रुपये और सूक्ष्म सिंचाई के लिए 350 करोड़ रुपये खर्च करेगी, लेकिन यह किसी भी प्रकार से प्रभावी नहीं दिख रहा है।
इस वर्ष महाराष्ट्र की जनता सबसे भयंकर सूखे का सामना कर रही है। लोग पीने के पानी के लिए भी तरस रहे हैं। इसके साथ ही विलंबित मानसून ने बुवाई को प्रभावित किया है और इससे पैदावार की भी चिंता सता रही है।
भाजपा ने अपने 2014 के घोषणापत्र में दोहरे अंकों की कृषि वृद्धि का वादा किया था, लेकिन 2017-18 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.1 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में 0.4 प्रतिशत रह गई थी।
वहीं अगर हरियाणा की बात करें तो उत्तर हरियाणा के किसानों ने खट्टर सरकार के खिलाफ भी विरोध की भावना व्यक्त की है। वे पिछले पांच वर्षों में कृषि लागत में वृद्धि और कम रिटर्न की कमी की शिकायत की थी। खट्टर सरकार इन्ही मुद्दों पर उदासीनता दिखाई थी जिसके कारण आज यह परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
हालांकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी प्रदेश के करीब 10 लाख किसानों को विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा तोहफा दिया था। उन्होंने सहकारी बैंकों के कर्जदार किसानों के लिए एकमुश्त समाधान योजना का ऐलान किया था। इसके तहत कर्ज के ब्याज और जुर्माने की करीब 4,750 करोड़ की राशि माफ की जाएगी। किसानों को 30 नवंबर तक सहकारी बैंकों से लिए गए कर्ज की मूल राशि जमा करानी होगी। प्राथमिक कृषि और सहकारी समितियों से लगभग 13 लाख किसानों ने कर्ज लिया हुआ है। जिनमें से 8.25 लाख किसानों के खाते एनपीए घोषित हो चुके हैं। लेकिन यह कदम किसानों को जीतने में कामयाब नहीं हो सका।
बता दें कि राष्ट्रीय किसान संगठन ने किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए 1 से 10 जून तक देश के अलग-अलग हिस्सों में हड़ताल किया था।
We have decided to observe a Bharat Bandh on June 10 till 2 pm. Would like to request all the businessmen of cities to close their shops till 2 pm & pay tribute to farmers who have lost their lives in previous years: Shiv Kumar Sharma, President, Rashtriya Kisan Mazdoor Mahasangh pic.twitter.com/oRtTRCVXkU
— ANI (@ANI) June 1, 2018
किसानों से जुड़े लगभग 200 से अधिक संगठनों ने मिलकर इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया था। इस दौरान किसानों की कई मांगे थी जैसे-
- किसानों का पूरा कर्ज माफ किया जाए।
- सभी फसलों पर लागत के आधार पर डेढ़ गुना लाभकारी मूल्य यानी (MSP) दिया जाए।
- छोटे किसानों की आय सुनिश्चित की जाए।
- फल, सब्जी, दूध के दाम भी लागत के आधार पर डेढ़ गुना समर्थन मूल्य पर तय किए जाएं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि इन दोनों ही राज्यों में सूखे की समस्या है, जिससे किसान परेशान हैं। दोनों राज्यों में 2014 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों से पहले भी चुनावी घोषणापत्र में किसानों के लिए कई वादे किए गए थे। लेकिन न तो किसानों की हालात सुधरी, न ही बेरोजगारी दूर हुई। हरियाणा में बेरोजगारी का दर 15 प्रतिशत पहुंच गया है तो वहीं महाराष्ट्र में बेरोजगारी दर 4.5 प्रतिशत के करीब है। हरियाणा में किसानों के लिए शुरू की गई भावांतर भरपाई योजना राज्य में सफल नहीं हो पायी है। इसके साथ ही राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर अनाजों की खरीद भी नहीं हुई है। वहीं अगर हरियाणा में किसानों की आत्महत्या की बात करें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक लगभग 250 किसानों ने आत्महत्या की है, जो कि वर्ष 2015 से 54 प्रतिशत की वृद्धि दिखाता है।
इन दोनों ही कारणों से आम जनता में भाजपा के प्रति एक विरोध की लहर देखी जा सकती है। भले ही भाजपा इन दोनों ही राज्यों में दोबारा सरकार बना ले लेकिन हरियाणा में कांग्रेस का और महाराष्ट्र में एनसीपी का फिर से उदय होना इस बात का संकेत देता है कि भाजपा ने कहीं न कहीं किसानों को निराश किया है और इसका खामियाजा उन्हें इन दोनों ही चुनावों में देखने को मिला है।