राफेल जेट पर ओम बना कर रक्षामंत्री ने भारत के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा है

राफेल

कल जब देशभर में विजयदशमी और 87वें वायुसेना दिवस का उत्सव एक साथ मनाया जा रहा था तब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और वाइस चीफ मार्शल हरजीत सिंह अरोड़ा फ्रांसीसी शहर बॉर्डोक्स पहुंचे, जहां ‘हैंडओवर सेरेमनी’ में फ्रांस ने भारत को राफेल विमान सौंपा। ये विमान फ्रेंच एविएशन कंपनी दसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित है। राफेल ग्रहण करने के बाद रक्षा मंत्री के कहा , ‘हमारी वायुसेना विश्व में चौथी सबसे बड़ी सेना है और मुझे विश्वास है कि राफ़ेल मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ़्ट भारत की वायुसेना को और सशक्त बना क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बल देगा’।

परंतु इस ‘हैंडओवर सेरेमनी’ में जिस चीज़ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा, वह थी इस समारोह के दौरान रक्षा मंत्री द्वारा दिखाई गयी भारतीयता। चूंकि कल वायुसेना दिवस के साथ ही संयोगवश विजयदशमी का पावन अवसर भी था, इसलिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ओम लिखकर पहले राफेल विमान की पूजा की। इसी विधि के तहत राफेल की टेस्टिंग उड़ान से पहले उसके पहियों के नीचे नींबू भी रखे गए। उनके द्वारा की गयी इस शस्त्र पूजा ने दुनियाभर के लोगों का ध्यान खींचा। राफेल की शस्त्र पूजा करके भारत ने पूरी दुनिया में यही संदेश दिया है कि भारत आधुनिकता के साथ अपनी परंपरा के साथ जुड़ा हुआ है।

परंतु यह शस्त्र पूजा क्या है जो पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है? अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करने की परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। पौराणिक कथा के अनुसार जब द्यूत क्रीडा में छलपूर्वक दुर्योधन ने पांडवों को हरा दिया था, तो शर्त अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक वनवास और एक साल के लिए अज्ञातवास में रहना पड़ा था। अज्ञातवास के दौरान उन्हें हर किसी से छिप कर रहना था और यदि कोई उन्हें देख लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का वनवास झेलना पड़ता।

इस कारण अर्जुन समेत सभी पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अपने सभी हथियार शमी वृक्ष की जड़ों में छुपा दिए थे। इस दौरान पांडव वेश बदल कर राजा विराट के सेवक बन कर रहे थे। कुरुक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले पांडवों ने शमी वृक्ष से अपने सभी हथियार को वापस निकाला और उसकी पूजा करने के बाद युद्ध के क्षेत्र में कौरवों को हरा दिया था। कहा जाता है कि उस दिन विजयदशमी भी थी, जिसके कारण आज भी शस्त्र पूजा की जाती है।

प्राचीन समय से ही राजा अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा किया करते थे। इसका उदाहरण तो हमने महाभारत में भी देख लिया। आपको ये भी बता दें कि  मराठा रत्न माने जाने वाले वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी ने अस्त्र-शस्त्र की पूजा कर इसी दिन औरंगजेब के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया था। चक्रवर्ती सम्राट राजा विक्रमादित्य भी इस दिन शस्त्रों की पूजा किया करते थे। इसका अर्थ यही है शस्त्र पूजा का हमारे भारत की संस्कृति में ख़ास महत्व रहा है।

ऐसे में विजयदशमी के अवसर पर राफ़ेल की शस्त्र पूजा भी यूं ही नहीं की गयी है। राफ़ेल विमान का भारतीय वायुसेना के लिए बड़ा विशेष महत्व है। राफेल विमान मीटियोर और स्काल्प मिसाइलों से लैस होंगे। इनकी मारक क्षमता इतनी बेजोड़ है कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत का दबदबा पहले से कहीं अधिक बढ़ जाएगा, और ये हमारे शत्रु देश एवं चीन के लिए निस्संदेह एक शुभ समाचार तो बिलकुल नहीं होगा।। मीटियोर और स्काल्प क्रूज मिसाइल हवा से हवा में मार करने वाली हैं। मीटियोर को BVRAAM (Beyond Visual Range Air to Air Missile) को अगली पीढ़ी की मिसाइल भी कहा जाता है और यह एशिया में किसी दूसरे देश के पास नहीं है।

ऐसे में राफेल के अधिग्रहण समारोह के दौरान राजनाथ सिंह ने शस्त्र पूजा करके भारतीयता का अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन किया है। इससे उन्होंने जहां एक तरफ भारतीय संस्कृति और परंपरा के महत्व को विश्व भर को दर्शाया, वहीं दूसरी तरफ दुश्मन देश को कड़ा संदेश भी दिया है। ये सराहनीय है कि कभी अपनी संस्कृति को गले लगाने में असमर्थता दिखाने वाली पिछली सरकारों की तुलना में भारत की वर्तमान सरकार खुलकर अपनी संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर न केवल गले लगाती है, अपितु निस्संकोच विश्व भर को भारतीयता के गुणों से परिचित भी कराती है।

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