मारो, बात करो, रुको, दबोचो, इंतज़ार करो”, चीन भारत को लेकर इतना कन्फ़्यूज्ड कभी नहीं था

कश्मीर

विश्व में चीन की छवि एक मजबूत आक्रामक और तेवर वाले देश के रूप में रही  है। किसी भी देश का द्विपक्षीय मामला हो, या विश्व स्तर पर संयुक्त राष्ट्र में अपना विरोध प्रकट करना हो, चीन ने हमेशा ही अपना स्टैंड क्लियर रखा है। परन्तु इन दिनों चीन यू टर्न को लेकर चर्चा में है है। अभी दो दिन पहले ही चीन के राजदूत सुन वीदोंग ने यह कहा था कि कश्मीर भारत और पाक का द्विपक्षीय मामला है और यह दोनों देशों को आपस में सुलझाना चाहिए। इसके बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और इमरान खान की मुलाक़ात के दौरान इस देश ने यह कहा है कि चीन कश्मीर पर नज़र बनाये हुए है। ये चीन के यू टर्न को ही दर्शाता है।

खैर, चीन का कहना है कि ‘जम्मू-कश्मीर का मसला पुराने इतिहास का एक विवाद है, जिसे शांतिपूर्ण तरीके से संयुक्त राष्ट्र चार्टर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के नियमों के हिसाब से सुलझाना चाहिए।‘ इसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भी हाथ है जो माओ के बाद खुद को सबसे मजबूत नेता बनाने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन पाक प्रेम में अपनी भद्द पिटवा रहे है।

चीन के इस कमजोर पहलू की शुरुआत भारत के अनुच्छेद 370 हटाने से शुरू हुई। सबसे पहले वह पाक के गिड़गिड़ाने पर अनुच्छेद 370 के मामलें को संयुक्त राष्ट्र के सिक्योरिटी काउंसिल में ले गया और इस मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने का पूरा प्रयास किया। लेकिन उसे वहां भी मात खानी पड़ी। इस बैठक में शामिल अधिकतर सदस्यों ने सुरक्षा परिषद में साफतौर पर कहा कि कश्मीर नई दिल्ली और इस्लामाबाद का द्विपक्षीय मामला है। चीन के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक घंटे बैठक हुई थी। हालांकि, यह एक अनौपचारिक बैठक थी। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यों में से एक चीन के पास वीटो पावर है। UNSC नियमों के मुताबिक, परिषद के सदस्य किसी भी विषय पर चर्चा के लिए बैठक बुला सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की यह इस तरह की पहली हार थी, जहां वह चाहते हुए भी कश्मीर मुद्दे का अंतराष्ट्रीयकरण नहीं कर सका।

पाक के लिए भारत के आंतरिक मुद्दे में चीन का यूं हस्तक्षेप उसके लिए घातक साबित हुआ। कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के मुद्दे पर पाक का साथ चीन के अलावा केवल तुर्की और मलेशिया ने ही किया था। इसके बाद चीन इस मुद्दे को UNGA में लेकर गया और भारत को घेरने का प्रयास किया। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि ‘कश्मीर मुद्दा अतीत का विवाद है, और इसका संयुक्त राष्ट्र चार्टर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के अनुसार उचित और शांतिपूर्वक हल होना चाहिए।’

इसके बाद चीन ने यू टर्न लिया, राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा से ठीक पहले यह देश कश्मीर मुद्दे पर अपने पुराने रुख पर लौट आया। कश्मीर को द्विपक्षीय मसला बताते हुए चीन ने कहा कि ‘भारत और पाक को बातचीत के जरिए इसका समाधान निकालना चाहिए।‘ चीन के राजदूत सुन वीदोंग ने कहा कि ‘भारत और पाक को आपसी विवादों को क्षेत्रीय स्तर पर बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहिए।‘ उन्होंने यह भी कहा कि ‘दोनों देशों को क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए’।

इस तरह से भारत के पक्ष में बयान देने के बाद शुक्रवार को मल्लापुरम में प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति की मुलाक़ात से ठीक पहले चीन पुराने रंग में लौट आया और कश्मीर मुद्दे पर पाक परस्ती को जगजाहिर किया। चीन के इस ढुलमुल रवैये के बाद अब यह तो स्पष्ट हो गया कि चीन किसी का भी दोस्त नहीं हो सकता।

ऐसे में अब यहा कयास लगाए जा रहे हैं कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत से खाली हाथ लौटना पड़ सकता हैं, क्योंकि भारत का रुख कश्मीर पर स्पष्ट रहा है और शुरू से ही भारत कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बताता आया है। यही नहीं भारत ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पर भी अपना रुख कड़ा किया है। चीन द्वारा कश्मीर मुद्दे को UN security council और UNGA में ले कर जाना ही भारत के प्रति उसके विरोधी रुख को दर्शाता है। इन कदमों से स्पष्ट है कि चीन का उद्देश्य भारत को नीचा दिखाना है, और इसके लिए वो कुछ भी कर सकता है। परन्तु चीन अपनी लाख कोशिशों के बाद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को नुकसान नहीं पहुंचा पाया है, बल्कि इसके ठीक उलट इससे चीन की बाहुबली छवि को ही नुकसान पहुंचा हैं।

चीन के इस ढोंग की वजह से राजनयिक स्तर पर कुछ अधिक नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा व्यापार में भी कमी आई है, अमेरिका से ट्रेड-वॉर के वजह से चीन की अर्थव्यवस्था का ग्राफ गिरा है। ऐसे में इस समय चीन को भारत के साथ व्यापार संबंध बढ़ाने की सख्त आवश्यकता है। विश्व बैंक के मुताबिक, चीन का GDP विकास दर इस वर्ष 6.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो अगले वर्ष 0.3 प्रतिशत अंक घटकर 5.9 प्रतिशत हो जाएगा, वहीं 2021 में यह घटकर 5.8 प्रतिशत होने की उम्मीद है। ऐसे में भारत के सतह अपने आर्थिक संबंधों को सुधारना चीन के लिए मज़बूरी भी है।

वहीं अगर भारत की बता करें तो भारत अपनी शक्ति का प्रदर्शन अंतराष्ट्रीय स्तर पर दिखा चुका है। इसके बाद भारत ने चीन की तरह ही सीमा पर अपनी धमक दिखाने के लिए सैन्य अभ्यास किया था। दरअसल, चीन की सीमा से सटे लद्दाख क्षेत्र में भारतीय थलसेना और वायुसेना के जवानों ने पहली बार एक युद्धाभ्यास किया था। इस दौरान जमकर शक्ति प्रदर्शन किया गया। इससे जुड़ी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल भी हुईं थीं। इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश में भी इस तरह का सैन्य अभ्यास किया गया था। बता दें कि चीन इन दोनों ही क्षेत्रों के कुछ भागों पर अपना कब्जा बताता आया है। इसके बावजूद भारत का इस तरह से इन दोनों क्षेत्रों में शक्ति प्रदर्शन करना और इसपर चीन की कोई प्रतिक्रिया न आना, दर्शाता है कि चीन दबाव में है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरे से पहले भारत के ये कदम भारत की मजबूती को दर्शाते हैं। ऐसे में अगर चीन के रुख में कोई बदलाव नहीं होता तो ये कहना गलत नहीं होगा कि चीन के राष्ट्रपति की यह भारत यात्रा कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की तरह ही एक पर्यटक यात्रा साबित हो सकती है। चीन ने वैश्विक स्तर पर एक दबंग देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। परन्तु इस मुलाक़ात से ठीक पहले चीन का इस तरह से कभी भारत तो कभी पाकिस्तान के पक्ष में बयान दिखाता है कि चीन पूरी तरह से confused है। उसे समझ नहीं आ रहा कि आखिर किसका साथ दे, क्योंकि पाक में चीन ने करोड़ों का निवेश कर रखा है तो पाक परस्ती दिखाता है, लेकिन पाक परस्ती के कारण विश्व उसे नकार रहा है। वहीं, दूसरी ओर भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक महाशक्ति बनते जा रहा है। शी जिनपिंग भ्रमित दिख रहे हैं और वह ऐसी स्थिति में हैं जहां से वे पाकिस्तान या भारत दोनों को ही नहीं छोड़ सकते, या यूं कहें वो दोनों देशों के बीच संतुलन बनाने में असमर्थ रहे हैं। इस वजह से शी जिनपिंग के माओ से बड़ा नेता बनने के सपना सपना ही रह जाएगा।

Exit mobile version