लालू यादव की बायोपिक : ‘लालटेन’
पिछले कुछ वर्षों से भारत में किसी भी ऐतिहासिक विषय अथवा हस्ती पर बायोपिक बनाना आम बात हो चुकी है। उड़न सिख मिल्खा सिंह हों, बॉक्सर एमसी मेरीकॉम हों, या फिर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक पर मराठी में बनी जीवनी ही क्यों न हो, बायोपिक अब भारतीय फिल्म उद्योग में किसी भी फ़िल्मकार के लिए एक जैकपॉट से कम नहीं है। अब ऐसे में हमारे भोजपुरी फिल्म उद्योग कैसे पीछे रह जाते? उन्होंने भी एक बायोपिक की घोषणा कर दी, और ये किसी और पर नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के सबसे चर्चित विभाजनकारी राजनेताओं में से एक, लालू प्रसाद यादव पर केन्द्रित होगी।
लालू यादव की बायोपिक की भोजपुरी एक्टर यश कुमार, लालू प्रसाद यादव का किरदार प्ले करते नजर आएंगे। लालू यादव की बायोपिक का नाम उन्हीं की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के चुनाव चिह्न के नाम पर रखा गया है, यानि ‘लालटेन’। लालू यादव की बायोपिक विवादों से घिरे उनके जीवन पर खुलकर बात करेगी। सूत्रों की माने तो ये फिल्म अगले साल फरवरी तक सिनेमाघरों में रिलीज हो सकती है।
परंतु बायोपिक बनाते वक्त फिल्म डायरेक्टर अक्सर भूल जाते हैं कि पर्दे पर व्यक्ति के वास्तविक स्वरूप को प्रदर्शित करना होता है, उसका महिमामंडन करने में तथ्यों के साथ खिलवाड़ करना नहीं। ‘भाग मिल्खा भाग’ हो, ‘अज़हर’ हो या फिर ‘संजू’ जैसी फिल्में हों, ऐसे कई उदाहरण हैं जहां प्रमुख किरदार का महिमामंडन करने में निर्माता अथवा निर्देशकों ने सभी सीमाएं लांघ दी थीं, चाहे वो किरदार उसके योग्य हो या नहीं। ऐसे में यदि लालू की बायोपिक बनाने का निर्णय लिया गया है, तो इन छह बातों पर इस बायोपिक को केन्द्रित करने की सख्त आवश्यकता है –
-
चारा घोटाले से जुड़ा पूरा सच –
यदि लालू यादव के जीवन को बायोपिक के रूप में पर्दे पर उतारा जा रहा है, तो चारा घोटाले के बिना यह उल्लेख अधूरा होगा। 1996 में लालू प्रसाद यादव ने पशुपालन विभाग में जितने घपले किए, उसके कारण राजकोष को लगभग 940 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। 2013 में इस घोटाले पर निर्णय सुनाते हुए सीबीआई ने न केवल लालू यादव को दोषी सिद्ध कराया, बल्कि उन्हें 5 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा भी दिलवाई। इसके अलावा इस घोटाले के कारण लालू यादव की संसदीय सदस्यता भी सदा के लिए रद्द हो गई। यदि लालू यादव की बायोपिक में इसका उल्लेख न हो, तो अज़हर और संजू जैसे बायोपिक से अलग तो यह बिल्कुल भी नहीं कहलाई जाएगी।
-
लालू यादव की बायोपिक में जंगल राज –
जिस तरह से ज्योति बसु ने अपने शासन में बंगाल को खंडहर बना दिया था, ठीक उसी तरह लालू यादव ने भी अपने कार्यकाल में कभी भारत की शान रहे बिहार राज्य को उजाड़कर रख दिया। अपराध इनके कार्यकाल में चरम पर था, और 1992 से 2004 तक लगभग 32,000 से ज़्यादा अपहरण के मामले बिहार में दर्ज हुए थे। कल्पना कीजिये कि कितने मामले ऐसे होंगे, जिन्हें अपराधियों के भय से रिपोर्ट ही नहीं की गई होगी। बिहार पुलिस की वेबसाइट के अनुसार 2001 से 2005 के बीच ही 20000 से ज़्यादा हत्या के मामले दर्ज हुए थे। ऐसे में हम मात्र कल्पना ही कर सकते हैं कि 1990 के दशक में बिहार में लालू यादव के शासन में कितने अत्याचार जनता पर किए जाते थे। यदि लालू यादव की बायोपिक में जंगल राज का उल्लेख न हो, तो महारानी और संजू जैसे बायोपिक से अलग तो यह बिल्कुल भी नहीं कहलाई जाएगी।
और पढ़े : नीना गुप्ता के सवालों से भड़की तापसी पन्नू ने नर्गिस दत्त और आयुष्मान से की अपनी तुलना
-
जबरन वसूली एवं राजकोष का दुरुपयोग –
लालू के जंगल राज का प्रत्यक्ष प्रमाण इसी बात से देखने को मिलता है कि वहां उद्योग के तौर पर अपहरण एवं जबरन वसूली को बढ़ावा दिया जाता था। बिहार के ‘अपहरण’ उद्योग पर तो प्रकाश झा ने एक पूरी फिल्म ही बना दी है, जिसका शीर्षक भी ‘अपहरण’ ही था। इसके अलावा राज्य में जबरन वसूली को इस स्तर तक बढ़ावा दिया जाता था कि लालू की दूसरी बेटी की शादी में राज्य के शोरूम से 50 ब्रैंड न्यू गाड़ियों को बंदूक की नोक पर लालू के पार्टी कार्यकर्ता उठाकर ले गए थे। यही नहीं, कई फ़र्निचर शोरूम से लगभग 100 सोफा सेट उठाए गए थे, ताकि लालू यादव की बेटी की शादी का पंडाल सज सँवर सके। जिस तरह से लालू के गुर्गे राज्य भर में वसूली करते थे और जबरन वसूली एवं राजकोष का दुरुपयोग पर तो अलग से एक पूरी बायोपिक फिल्म बनाई जा सकती है।
-
छद्म धर्मनिरपेक्षता का औद्योगीकरण पर हावी होना –
लालू यादव के कुशासन में बंगाल की भांति राज्य के औद्योगीकरण में खूब रोड़े अटकाए गए। एक बिहारी नेता ने दावा किया था कि वे बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गालों जितनी मुलायम बनाएँगे, परंतु लालू यादव के कुशासन में वे सड़कें ओमपुरी के गालों जैसे ज़्यादा दिखते थे। यही नहीं, मुलायम सिंह यादव की भांति लालू यादव में भी छद्म धर्मनिरपेक्षता कूट-कूट कर भरी हुई थी। आडवाणी की प्रसिद्ध रथयात्रा को देश के लिए खतरा बताते हुए लालू ने न केवल रथ यात्रा को रोका था, बल्कि आडवाणी को हिरासत में भी लिया था। इसके अलावा लालू यादव ने 2005 में चुनाव प्रचार के दौरान एक व्यक्ति को एक मौलवी के वेष में लाकर न केवल अल्पसंख्यकों को लुभाने का प्रयास किया, बल्कि 9/11 के दोषी ओसामा बिन लादेन का महिमामंडन करने का भी प्रयास किया। यह अलग बात थी कि इसके लिए राजद और यूपीए को जनता ने सत्ता से बेदखल कर दिया था। इस पर भी तो अलग से एक पूरी बायोपिक फिल्म बनाई जा सकती है।
-
अयोग्य राबड़ी देवी को राज्य की सीएम की गद्दी पर बैठना –
परंतु जिस एक निर्णय के लिए लालू यादव को आज भी बिहार की जनता पानी पी पीककर कोसती है, वो है वंशवाद को अंधाधुंध बढ़ावा देना। चाहे अपनी बेटी मीसा भारती को मेडिकल कॉलेज में दाखिला दिलाने के लिए सभी नियमों को ताक पर रखना हो, या फिर बेटे तेजस्वी यादव को क्रिकेटर बनाने के लिए बिहार के क्रिकेट की बलि ही क्यों न चढ़ानी हो, लालू यादव ने सब किया है। परंतु वे इतने पर ही नहीं रुके, उन्होंने चारा घोटाले में वॉरंट निकलने पर सत्ता अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी। आज जो लिबरल, पीएम मोदी की शिक्षा पर आए दिन सवाल उठाते रहते हैं, उन्हें राबड़ी देवी का नाम बताते ही साँप सूंघ जाता है। राबड़ी देवी शैक्षणिक योग्यता के अनुसार अनपढ़ थीं, इसके बाद भी उनके सहारे जिस तरह लालू यादव ने बिहार की सत्ता चलायी, उसकी जितनी निंदा की जाये, वो कम होगी। यदि लालू यादव की बायोपिक में इसका उल्लेख न हो तो वह बायोपिक किसी भी कीमत पर लालू यादव की बायोपिक नहीं कही जा सकती, आखिर लालू यादव के ये उत्कृष्ट कारनामे जनता के सामने लाने के लिए ही तो यह बायोपिक बनाई जा रही है?
-
लालू यादव के राज में जब दामन पर लगा दाग
1998 में जब एक सीनियर आईएस अधिकारी की पत्नी चम्पा विश्वास ने आरोप लगाया कि राजद विधायक हेमलता यादव के बेटे मृत्युंजय यादव और उसके साथियों ने उसके साथ दो साल से लगातार जबरन दुष्कर्म किया, धमकाया, तो बिहार के सियासी गलियारे में हडकंप मच गया। सहसा 1982 की बॉबी सेक्स और ह्त्या काण्ड लोगों के जेहन में गूंजने लग गए। पर इतना ही काफी नहीं था। इस किताब के और पन्ने थे। चम्पा विश्वास ने आरोप लगाया था कि सिर्फ उसके साथ ही बलात्कार नहीं हुआ, बल्कि उसकी माँ और उसकी दो नौकरानियों, उसकी ननद, और विश्वास की भतीजी कल्याणी के साथ भी राजद नेता मृत्युंजय यादव और उसके साथियों ने मिलकर दुष्कर्म किया था।
ठीक इसी तरह 1999 में लालू यादव बिहार की सत्ता में थे और राज्य में सिर्फ और सिर्फ उनकी ही चलती थी। लालू की शह पाकर उनके दोनों साले भी खूब रंग जमाते थे। उसी शासनकाल में हुआ था शिल्पी जैन और गौतम सिंह हत्याकांड। पटना के ‘व्हाइट हाउस’ से जुड़े इस मामले को वहीं दबा दिया गया, आरोप लालू यादव के साले साधु यादव पर लगा था। आरोप यह भी लगा कि शिल्पी के साथ पहले दुष्कर्म किया गया उसके बाद हत्या कर दी गई। हालांकि लालू पावर में थे इसीलिए मामले को दबा दिया गया। साल 2003 में आत्महत्या का हवाला देकर सीबीआई ने इस हत्याकांड की फाइल बंद कर दी। लेकिन इस हत्याकांड को पूरा बिहार जानता है कि किसके सह पर करवाया गया था।
सच कहें तो लालू प्रसाद यादव ने अपने जीवन में इतने पाप किए हैं, कि उन्हें समाहित करने के लिए एक 2.5 घंटे की बायोपिक फिल्म कम पड़ेगी। परंतु यदि यश कुमार ने यह बीड़ा उठाया है, तो हम आशा करते हैं कि वे उनका वास्तविक रूप जनता को दिखाएंगे, और तथ्यों के साथ खिलवाड़ तो अवश्य ही नहीं करेंगे।
और पढ़े : जब लिबरलों ने हिंदुत्व पर हमला किया तो अमिताभ मौन थे, अब ‘हिंदू नहीं हूं’ भी घोषित कर दिया