नास्तिक से पुनः मुसलमान – यह है मियां उमर खालिद की दास्तान

उमर खालिद

PC: telegraphindia

जेएनयू के ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ के सदस्य होने के कारण लाइमलाइट में आए जेएनयू के छात्र उमर खालिद पैगंबर मुहम्मद की कथित आलोचना के बाद एक बार फिर इस्लामी बन चुके हैं। सनातन धर्म की आलोचना के लिए चर्चा में रहने वाले उमर खालिद ने अभी हाल ही में एक ट्विटर थ्रेड पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने पैगंबर मुहम्मद को परमार्थी सिद्ध करने का प्रयास किया

उमर खालिद के ट्वीट के अनुसार, “हिंदुत्ववादी घृणा के कारण हमें पैगंबर पर अपने विचार रखने का अवसर मिला है। इस अवसर को हमें भुनाना चाहिए। पर हमें किसी अन्य पंथ के ईश्वर का अपमान नहीं करना चाहिए। वह पैगंबर की शिक्षा के विरुद्ध है। #ProphetofCompassion”

अभी कुछ ही दिनों पहले 43 वर्षीय कमलेश तिवारी को लखनऊ में नाका मोहल्ले में स्थित उनके निवास पर गोली मारकर एवं गला रेत कर हत्या कर दी गयी थी। तिवारी ने पैगंबर के विरुद्ध बयान दिये थे, जिसके कारण कट्टरपंथी मुसलमानों ने उनके विरुद्ध फतवा निकाल दिया, और एक मौलवी ने कमलेश का सिर कलम करने पर 51 लाख रुपये का इनाम देने की बात भी की। यही नहीं, कमलेश तिवारी की निर्मम हत्या के बाद मुस्लिम समुदाय से कुछ लोगों ने एक दूसरे को सोशल मीडिया पर बधाई देना भी प्रारम्भ कर दिया है, जिसके जवाब में सोशल मीडिया पर पैगंबर के विरुद्ध हैश टैग चलाये जाने लगे।

परंतु यह ट्रेंड वाइरल क्या हुआ, अपने आप को साम्यवादी एवं नास्तिक कहने वाले उमर खालिद इस्लाम के बचाव में कूद पड़े। हत्यारों की निंदा करने की बजाए उम्र खालिद ने अपने ट्वीट में कहा, “हिन्दुत्व ब्रिगेड लोगों को बांटने पर आतुर है। मुसलमानों और इस्लाम से वे इतनी घृणा करने लगे हैं कि अब वे खुलेआम पैगंबर को गाली देने लगे हैं। पैगंबर का जीवन हमें बताता है कि घृणा से मुक़ाबला करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका शत्रु के साथ प्रेम और वात्सल्य से पेश आना है”।

2016 में जेएनयू के विवाद के एक हफ्ते के बाद स्क्रॉल नामक वैबसाइट ने उमर खालिद पर एक लेख छापा। इस लेफ्ट लिबरल मीडिया आउटलेट ने दावा किया कि उमर इस्लामी बिलकुल नहीं है, अपितु एक नास्तिक एवं साम्यवादी है। स्क्रॉल के इस लेख के अनुसार, “जिस डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन का उमर खालिद हिस्सा है, वहां पर प्रमुख विचारधारा माओवाद है। खालिद ने स्वयं को अपने लेखों में मार्क्सवादी एवं लेनिनवादी माना है।”

परंतु खालिद के वर्तमान ट्विटर थ्रेड से उमर खालिद की पोल पूरी तरह खुल चुकी है। खालिद ने दावा किया कि पैगंबर शांति के दूत थे, और प्रेम एवं वात्सल्य की भावना को बढ़ावा देते थे। खालिद के थ्रेड में कई ऐसे अरबी शब्द और परिभाषाएँ शामिल थीं, जो केवल एक इस्लामिक कट्टरपंथी ही बेहतर जानता है।

खालिद के ट्वीट के अनुसार, “पंथ कोई भी हो, हमें पैगंबर के जीवन और उनके सिद्धांतों से सीख लेनी चाहिए। पैगंबर सिर्फ मुसलमानों के ही नहीं है, वे सबके हैं। वे सिर्फ रहमतुल मुस्लिमीन नहीं है, बल्कि रहमतुल आलमीन हैं”।

वैसे खालिद पहले ऐसे नास्तिक नहीं है, जो फिर से इस्लाम की ओर परिवर्तित हो गए। उनसे पहले जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन की उपाध्यक्ष शेहला राशिद, जो महिलाओं की आज़ादी की बातें करते नहीं थकती थी, कश्मीर घाटी जाते ही हिजाब पहनने वाली कर्तव्यनिष्ठ मुसलमान बन गयीं। कश्मीरी राजनीति में उस समय यदि आगे बढ़ना था, तो आपका इस्लाम परस्त होना अत्यंत आवश्यक था। हुआ भी ऐसा ही शेहला ने जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट जॉइन कर लिया।

शेहला की भांति ही उमर खालिद राजनीति में एक लंबी पारी खेलने हेतु पुनः मुसलमान बन गए हैं। खालिद के पिता सैयद कासिम रसूल इलियास ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के जंगीपुर सीट से बतौर वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशी हिस्सा लिया था। बता दें कि सैयद कासिम रसूल इलियास उसी स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया का हिस्सा रह चुके हैं, जिसे उसकी आतंकी गतिविधियों के लिए केंद्र सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। ऐसे में ये निस्संदेह चिंताजनक बात है कि जो मुस्लिम विद्यार्थी जेएनयू में साम्यवादी और नास्तिक होने का दावा करते हैं, वहां से निकलते ही वे कट्टर इस्लामी बन जाते हैं। विद्यार्थी राजनीति का सुधारवादी पक्ष अपनाने की बजाए वे कट्टर इस्लाम के आगे झुक जाते हैं।

Exit mobile version