अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जब से सत्ता में आए हैं, तब से ही वे चीन के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं। पिछले महीने ही यूएन के मंच से डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर चीन की गुंडागर्दी को आड़े हाथों लिया और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को यह चेतावनी जारी की कि अगर उसने अपनी आर्थिक नीतियों में कोई बदलाव नहीं किया तो चीन से आयात होने वाले सामानों पर अमेरिका और ज़्यादा ड्यूटी लगाएगा। इसके साथ ही राष्ट्रपति ट्रम्प ने हॉन्ग कॉन्ग मुद्दे पर भी चीन को घेरा और चीन से हॉन्ग कॉन्ग के लोकतन्त्र का सम्मान करने की बात कही।
हालांकि, हैरानी की बात तो यह है कि दुनिया भर की मीडिया ने डोनाल्ड ट्रम्प के इस भाषण को पूरी तरह नकार दिया और उनकी कही बातों को कोई तवज्जो नहीं दी। दुनिया भर की लिबरल मीडिया के साथ-साथ गूगल और फेसबुक जैसे सर्विस प्रोवाइडर्स ने भी डोनाल्ड ट्रम्प के इस भाषण को लोगों के सामने आने नहीं दिया। कुल मिलाकर ट्रम्प के इस भाषण को उस हद तक कवरेज नहीं दी गई जो मीडिया से उम्मीद की जा सकती है। गूगल और फेसबुक चीन में अपनी सेवाएँ प्रदान करने पर फोकस कर रही हैं और इसके लिए लगातार चीनी सरकार के संपर्क में हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि इन सभी बड़ी कंपनियों ने चीन के प्रभाव में डोनाल्ड ट्रम्प के भाषण को सेंसर किया है।
यूएन के मंच से राष्ट्रपति ट्रम्प ने लगभग 37 मिनट का भाषण दिया जिसमें से उन्होंने लगभग 7-8 मिनट तक चीन की चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्ष 2001 में चीन को वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन में शामिल किया गया था और तब हमारे नेताओं का यह मानना था कि इससे चीन अपनी रक्षात्मक आर्थिक नीतियों में बदलाव लाएगा और ट्रेड में खुलेपन का समर्थन करेगा लेकिन आज दो दशकों के बाद यह सोच पूरी तरह गलत साबित हुई है। ट्रम्प ने कहा “चीऩ ने न सिर्फ वादा करने के बावजूद, व्यापार सुधार लाने से इनकार किया, बल्कि उसने बाजार में कई बाधाओं वाली आर्थिक व्यवस्था लागू की, जिससे अमेरिका में लगने वाली करीब 60 हज़ार फैक्ट्रियाँ चीन में स्थापित कर दी गईं”।
इसके साथ ही उन्होंने चीन पर अमेरिकी कंपनियों के ‘इंटेलेक्चुअल राइट्स’ का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और चिप बनाने वाली एक अमेरिकी कंपनी के सीईओ के दुख को बयां किया। उन्होंने कहा ‘पिछले दिनों मेरी एक चिप बनाने वाली कंपनी के CEO से मुलाक़ात हुई। उसने मुझे बताया कि उस कंपनी के डिजाइन को एक चीनी कंपनी ने चुराकर अपने नाम से पेटेंट रजिस्टर करवा लिया और चीन में उस उत्पाद की बिक्री करना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं, चीऩ ने उस अमेरिकी कंपनी के ट्रेड करने पर भी रोक लगा दी”। आगे ट्रम्प ने कहा “विश्व व्यापार संगठन में बड़े परिवर्तनों की जरूरत है। दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था को विकासशील होने के नाम पर दूसरे देशों की व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए”।
इसके बाद ट्रम्प ने हॉन्ग कॉन्ग के मुद्दे पर चीऩ को आड़े हाथों लिया। ट्रम्प ने कहा “चीऩ जिस तरीके से हॉन्ग कॉन्ग से निपट रहा है, उनका प्रशासन उस पर सावधानी से नजर रख रहा है। विश्व यही उम्मीद करता है कि चीन सरकार अपनी बाध्यकारी संधि का सम्मान करेगी और हॉन्ग कॉन्ग की आजादी और कानूनी व्यवस्था तथा जीवनशैली की लोकतांत्रिक तरीकों से रक्षा करेगी”।
ज़ाहिर है, ट्रम्प ने अपने इस शक्तिशाली भाषण से विश्व-पटल पर चीन के एजेंडे की धज्जियां उड़ा दी है लेकिन पूरे विश्व की लिबरल मीडिया और सोशल मीडिया संगठनों ने उनके इस भाषण को पूरी तरह सेंसर कर दिया। ना तो उनका भाषण कहीं सोशल मीडिया पर ट्रेंड किया और ना ही इसको लेकर बड़े स्तर पर कोई कवरेज की गई। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि गूगल और फेसबुक जैसी अमेरिकी कंपनियां अभी चीन में अपने व्यापार को बढ़ाने पर फोकस कर रही हैं। वर्ष 2018 की न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक गूगल चीन में एक सेंसर्ड सर्च इंजन की सुविधा प्रदान करने के लिए लगातार चीनी सरकार के संपर्क में है। इसके अलावा फेसबुक भी ऐसे तकनीक पर काम कर रहा है जिसके कारण ‘कुछ खास तरह का कंटेट’ चीन में उपलब्ध ही नहीं होगा। यही कारण है कि ये सोशल मीडिया जाइंट्स अपने प्लेटफ़ार्म पर कम से कम चीन-विरोधी कंटेन्ट को प्रसारित कर रहे हैं। आपको याद होगा कि दुनिया भर की लिबरल मीडिया ने हॉन्ग कॉन्ग के प्रदर्शनों से संबन्धित खबरों को छुपाकर कश्मीर से जुड़ी खबरों को प्राथमिकता से प्रकाशित किया था।
अगले साल अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव भी होने हैं और ऐसे में ट्रम्प के भाषण के अघोषित सेंसर किए जाने के कई मायने हो सकते हैं। गूगल और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया जाइंट्स को लोकतान्त्रिक मूल्यों का सम्मान करना चाहिए न कि चीन के एजेंडे को बढ़ावा देना चाहिए। बता दें कि चीन ने गूगल फेसबुक समेत लगभग सभी अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों पर पाबंदी लगा रखी है, और ये कंपनियाँ चीन में सेवाएँ प्रदान करने की इजाजत प्राप्त करने के लिए किसी भी तरह के चीनी एजेंडे को बढ़ावा देने में लगी हैं जो बेहद निंदनीय है।