कई प्रधानमंत्रियों ने खाड़ी देशों में मौका देखा, लेकिन वो PM Modi ही थे जिन्होंने इसे हकीकत में बदला

पीएम मोदी, भारत

चाहे कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ देना हो, या फिर भारत में खरबों डॉलर का निवेश करना हो, और चाहे भारत का कूटनीतिक समर्थन करने की ही बात क्यों ना हो, सऊदी अरब और यूएई जैसे खाड़ी देशों ने शुरू से ही भारत का समर्थन किया है। मुस्लिम देश होने के नाते पाकिस्तान के साथ भी इन देशों के रिश्ते अच्छे ही रहे हैं। हालांकि, पिछले कुछ समय में घटी घटनाओं से यह पता चलता है कि भारत की आक्रामक कूटनीति के चलते इन देशों की प्राथमिकताओं में बदलाव आया है और इन देशों ने खुलकर भारत का समर्थन किया है। मोदी सरकार के आने से पहले भारत सरकार ने इन देशों को इतनी तवज्जो नहीं दी थी और भारतीय राष्ट्राध्यक्षों के पास इन देशों का दौरा करने तक का समय नहीं था। हालांकि, पीएम मोदी ने इन देशों के साथ अपनी कूटनीति को बड़ी सक्रियता से आगे बढ़ाया, और इसका नतीजा यह है कि आज भारत को ये देश सिर्फ एक व्यापारिक साझेदार नहीं, बल्कि सुरक्षा साझेदार भी मानते हैं।

उदाहरण के तौर पर वर्ष 2014 में मोदी सरकार आने से पहले सऊदी अरब की यात्रा पर जाने वाले भारतीय प्रधानमंत्रियों की संख्या सिर्फ 3 थी। आखिरी बार वर्ष 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सऊदी अरब की यात्रा पर गए थे। वहीं वर्ष 2016 में पीएम मोदी सऊदी अरब की यात्रा पर गए थे। इसके बाद इसी वर्ष फरवरी में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भारत के दौरे पर आए थे, वहीं 29 अक्टूबर को भी पीएम मोदी सऊदी अरब में फ्युचर इनवेस्टमेंट इनिशिएटिव में हिस्सा लेने के लिए खाड़ी देश के दौरे पर गए थे। भारत और सऊदी अरब के बीच इसी तालमेल का यह नतीजा है कि सऊदी अरब ने कश्मीर मुद्दे पर पूरी तरह भारत का समर्थन किया और भारत में 100 बिलियन डॉलर का निवेश करने का भी वादा किया। सबसे रोचक बात तो यह है कि सऊदी अरब अब भारत का आर्थिक ही नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदार भी बनना चाहता है, जो कि भारत के दुश्मन पाकिस्तान के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा।

सऊदी अरब के साथ-साथ पीएम मोदी ने एक अन्य महत्वपूर्ण खाड़ी देश यूएई की भी यात्रा की थी और यह पूरे 34 सालों में किसी भी भारतीय पीएम द्वारा यूएई की पहली यात्रा थी। मोदी सरकार बनने के ठीक अगले वर्ष यानि वर्ष 2015 में पीएम मोदी ने इस देश का दौरा किया था और यही वजह है कि यूएई भी भारत का अहम साझेदार बनता जा रहा है। जब अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए थे और ईरान और सऊदी अरब के बीच विवाद के चलते भारत को कच्चे तेल की सप्लाई में संभावित खतरा पैदा हो गया था, तो वह यूएई ही था जिसने भारत को कच्चे तेल की सप्लाई जारी रखने का आश्वासन दिया था। इसके अलावा यूएई ऐसा पहला देश था जिसने भारत द्वारा कश्मीर को लेकर लिए गए फैसले का समर्थन किया था।

इसी के साथ भारत ने ओमान और बहरीन जैसे देशों के साथ भी अपना कूटनीतिक संवाद बढ़ाया है। ओमान तो एशिया में भारत के सबसे पुराने रणनीतिक साझेदारों में से एक है। ओमान के पूर्वी तट पर भारतीय नेवी को ओमान के दुक्म बंदरगाह को इस्तेमाल करने की छूट मिली हुई है जहां से भारत बड़ी आसानी से अरब खाड़ी में चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों पर नज़र रख सकता है। ओमान आतंकवाद को फंड करने वाले देशों के खिलाफ लड़ाई में भी भारत का साथी रहा है।

स्पष्ट है कि जिस तरह पीएम मोदी ने इन देशों के साथ अपनी कूटनीति को नया आयाम दिया है, अब उसका फल भारत को मिलता दिखाई दे रहा है। इसका भारत को आर्थिक फायदा भी हो रहा है और रणनीतिक फायदा भी। अगर पिछली सरकारें सही से इन देशों के साथ अपनी कूटनीति को आगे बढ़ाती, तो भारत उससे पहले भी इन देशों के साथ अपने रिश्ते बेहतर बना सकता था और देश को बड़ा आर्थिक फायदा हो सकता था। हालांकि, पीएम मोदी की सफल कोशिशों के लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए।

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