बिहार हर साल आने वाली बाढ़ से जूझता रहता है, और हर बार लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस वर्ष भी बिहार में भयंकर बाढ़ आई और लोगों को कई मुश्किलों से दो चार होना पड़ा। 40 से ज़्यादा लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। हालांकि, बिहार के मुख्यमंत्री बिहार में आने वाली बाढ़ का दोष हर वर्ष पश्चिम बंगाल के फरक्का बैराज पर मढ़ देते हैं। वर्ष 2016 में तो बिहार के सीएम नितीश कुमार ने केंद्र से इस बैराज को तोड़ने तक की प्रार्थना की थी। इस बात में कोई शक नहीं है कि बिहार में आने वाली बाढ़ के कारणों में बड़ा हिस्सा इसी फरक्का बैराज का होता है। कम पानी की निकासी के चलते जहां एक तरफ बाढ़ के समय बिहार को ज़्यादा पानी का शिकार होना पड़ता है, तो वहीं बांग्लादेश के साथ एक प्रतिकूल जलसन्धि के तहत सूखे के समय बिहार को अपने हिस्से की अन्य नदियों के पानी में से भी बांग्लादेश को पानी देना पड़ता है और इसी वजह से बिहार में पानी की कमी हो जाती है। यानि दोनों स्थितियों में बिहार को ही समस्यओं से झूझना पड़ता है।
बता दें कि फरक्का बांध भारत के पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के ऊपर बना बांध है और इसका निर्माण साल 1975 में हुआ था। फरक्का बांध का निर्माण का एक मात्र मकसद गंगा से 40 हजार क्यूसेक पानी को हुगली में भेजना था ताकि हुगली में कोलकाता से फरक्का के बीच बड़े जहाज चल सकें। इस बांध में 109 गेट बनाए गए थे। गर्मी के मौसम में हुगली नदी के बहाव को लगातार बनाये रखने के लिये गंगा नदी के पानी के एक बड़े हिस्से को फ़रक्का बांध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है।
हालांकि, इस बैराज के साथ कई समस्याएँ भी थीं। बैराज के बनाए जाने के बाद बिहार में बहने वाली गंगा नदी में गाद और मिट्टी की मात्रा तेजी से बढ़ने लगी, जिसका सबसे बुरा असर बिहार पर ही पड़ा। बारिश के समय नदी से बहने वाले पानी की मात्रा कम हो गयी और बिहार में बाढ़ की समस्या और गंभीर हो गयी। इतना ही नहीं, इस बैराज से पानी छोड़ने की सीमा भी केवल 27 लाख क्यूसिक पानी ही थी, जो कि बाढ़ के समय किसी भी तरह की राहत देने के योग्य नहीं थी।
यह तो बात हुई कि किस तरह इस बैराज की वजह से हर साल बिहार की बाढ़ की स्थिति और बिगड़ जाती है। अब यह भी जान लीजिये कि किस तरह गर्मी के मौसम में बिहार को पानी की कमी से जूझना पड़ता है। दरअसल, वर्ष 1996 में एचडी देवेगौड़ा की सरकार के समय बांग्लादेश और भारत के बीच एक जलसन्धि पर हस्ताक्षर किए गए थे जिसमें भारत के हितों को नज़रअंदाज़ किया गया था। एक तरफ जहां संधि के तहत हर साल भारत द्वारा बांग्लादेश को पानी मुहैया करवाना पड़ता है, तो वहीं हूगली चैनल में भी फरक्का बांध से 40 हज़ार क्यूसिक पानी छोड़ा जाने लगा, जिसकी वजह से बिहार में पानी की कमी होने लगी। हालांकि, कभी इसको लेकर ना तो बिहार की चिंताओं को किसी सरकार ने सुना और केंद्र सरकार ने ना ही वर्ष 1996 में बिहार की कोई बात सुनी।
अब चूंकि बिहार और केंद्र, दोनों जगह एनडीए की सरकार है, तो भारत सरकार को इस समस्या को हल करने की दिशा में काम करने की ज़रूरत है। यह तो स्पष्ट है कि फरक्का बैराज अपने किसी भी मकसद पर खरा उतरने में असफल हुआ, तो ऐसी स्थिति में इस बैराज को तोड़ने के संबंध में भी विचार करने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, भारत सरकार को देश के हित में बांग्लादेश के साथ की गई प्रतिकूल जलसन्धि पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।