अगर दिल्ली और झारखंड को जीतना है, तो भाजपा को पटरी पर लानी होगी अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था

हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे जैसे-जैसे सबके सामने आते जा रहे हैं, वैसे ही एक बार फिर यह प्रश्न सबके सामने खड़ा हो गया है कि क्या अच्छी राजनीति का आधार अच्छी अर्थव्यवस्था ही मानी जाएगी? वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव हो या वर्ष 2019 का, भाजपा ने विकास मुद्दे को काफी प्राथमिकता दी है। विकास को आप अर्थव्यवस्था से भी जोड़कर देख सकते हैं। हालांकि, लोकसभा चुनावों के बाद जैसे ही वित्तीय वर्ष 2019 की पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़े सामने आए, ठीक वैसे ही देश में आर्थिक विकास के सकारात्मक माहौल को बड़ा झटका लगा और भारत से दुनिया की सबसे तेज़ी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था का भी टैग छिन गया।

जनवरी तिमाही में आर्थिक विकास दर 6.6 प्रतिशत से घटकर अप्रैल तिमाही में 5.8 प्रतिशत रह गई। जुलाई तिमाही में विकास दर घटकर 5 प्रतिशत रह गई।

जून तिमाही में, कृषि और संबन्धित गतिविधियां 2 प्रतिशत बढ़ीं, जो पिछले एक दशक में सबसे कम थी। कृषि और संबन्धित क्षेत्र की गतिविधियों में गिरावट किसान की आय को नए निम्न स्तर पर ले गयी।

कृषि, इन दोनों राज्यों के अधिकांश लोगों को रोजगार देती है। महाराष्ट्र और हरियाणा हरित क्रांति से सबसे अधिक लाभ पाने वाले राज्यों में शामिल थे, जिसने 1980 के बाद भारतीय कृषि को पूरी तरह बदल दिया था। महाराष्ट्र की GDP में कृषि का योगदान 15 प्रतिशत है, लेकिन कृषि क्षेत्र में राज्य के 51 प्रतिशत श्रमबल कार्यरत है। अधिकांश परिवार कृषि आय पर निर्भर हैं। कृषि मंत्री के रूप में शरद पवार के 10 वर्ष के कार्यकाल के दौरान महाराष्ट्र के किसानों को अत्यधिक लाभ मिला था। पवार ने सार्वजनिक व्यय के आवंटन में राज्य को खास तवज्जो दी और बदले में कृषि पर आधारित परिवार भी एनसीपी के प्रति वफादार रहे। यही कारण है कि एनसीपी ने पश्चिमी महाराष्ट्र, विशेषकर ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया है।

हरियाणा में अधिकांश परिवार कृषि आय पर निर्भर है और राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान 19 प्रतिशत है। राज्य के क्षेत्रफल का लगभग 86 प्रतिशत भाग कृषि योग्य है, और उस क्षेत्र के लगभग 96 प्रतिशत भाग पर खेती की जाती है। हरियाणा प्रदेश में देश की कुल आबादी का सिर्फ 3 प्रतिशत हिस्सा ही रहता है। हालांकि, देश के कुल कृषि उत्पादन में हरियाणा का योगदान 14.1 प्रतिशत है। पंजाब और हरियाणा देश में कृषि क्रांति से सबसे ज्यादा लाभान्वित हुए, और इन राज्यों के अधिकांश किसान देश की औसत कृषि आय से कई गुना अधिक कमाते हैं। लेकिन, खट्टर सरकार के सत्ता में आने के बाद से, और उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के कारण उत्पादकता गिर गयी, और फिर लगातार सूखे से किसान की आय काफी हद तक कम हो गई है।

GDP के सबसे ताज़ा आंकड़ों के जारी होने के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावी नतीजों पर नज़र डाली जाये तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि देश की अर्थव्यवस्था को पहुंचें नुकसान का खामियाजा सत्ताधारी पार्टी को भुगतना पड़ा है। एक तरफ जहां हरियाणा में भाजपा को सिर्फ 40 सीटों से संतोष करना पड़ा है, तो वहीं महाराष्ट्र में भी भाजपा-शिवसेना का गठबंधन भी प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा जितनी की उम्मीद की जा रही थी।

महाराष्ट्र के सूखे प्रभावित क्षेत्र विदर्भ में भाजपा के पास 44 सीटें थी जो अब घटकर 25 रह गई हैं, जबकि कांग्रेस ने पिछले बार की 10 सीटों के मुक़ाबले इस बार 17 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं जिस एनसीपी को पिछले चुनावों में यहां 1 सीट मिली थी, वहां अब उसे 6 सीटें मिली हैं।

वहीं रियल एस्टेट में भयंकर मंदी आने के कारण भी हरियाणा में इसका ज़्यादा प्रभाव पड़ा। आर्थिक मंदी और बिल्डर्स पर भरोसे की कमी की वजह से रियल एस्टेट को नुकसान उठाना पड़ा, जिसने पूरे भारत में हरियाणा और महाराष्ट्र को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया। महाराष्ट्र में मुंबई और हरियाणा में एनसीआर क्षेत्र में रियल एस्टेट का इन राज्यों की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान होता है। हालांकि, पिछले कुछ सालों में जिस तरह रियल एस्टेट क्षेत्र में मंदी देखने को मिली है, उसने इन दोनों राज्यों की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया है।

इसके अलावा महाराष्ट्र की बात करें तो पिछले पांच सालों में इस राज्य में निवेश में कमी देखने को मिली है। कभी महाराष्ट्र देशभर में निवेश करने के हिसाब से सबसे आकर्षक गतंव्य हुआ करता था, हालांकि आज कर्नाटका ने महराष्ट्र को इस दौड़ में पीछे छोड़ दिया है।

बता दें कि इस वर्ष फरवरी में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने स्वयं यह कहा था कि अच्छी राजनीति का आधार अच्छी अर्थव्यवस्था ही होती है। वही बात इन चुनावों में प्रमाणित होती दिखाई दे रही है। विकास के बड़े-बड़े दावों और वादों के बीच जीडीपी के आंकड़ों ने वोटर्स को निराश करने का काम किया है। इन चुनावों में आर्थिक मंदी के मुद्दे को विपक्ष काफी हद तक भुनाने में असफल ही रहा था, लेकिन उसके बावजूद जिस तरह चुनावी नतीजों में भाजपा को झटका लगा है, यह दर्शाता है कि वोटर्स देश के विकास के मुद्दे पर वोट करते हैं और अब की बार आर्थिक मंदी के कारण ही हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा है।

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