रुपे कार्ड अब सऊदी अरब में देगा मास्टर कार्ड और वीज़ा कार्ड को टक्कर, भारत में है No.1

भारत के ‘रुपे कार्ड’ ने मास्टर कार्ड और वीज़ा कार्ड पहले ही देश में पीछे छोड़ दिया है

रुपे कार्ड सऊदी अरब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की दो दिवसीय यात्रा पर हैं और देर रात सऊदी अरब पहुंच भी चुके हैं।  29 अक्टूबर यानी की आज वो सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मिलेंगे, इसके बाद वो रियाद में 29 से 31 अक्टूबर के बीच होने वाले तीन दिवसीय कार्यक्रम फ्यूचर इनवेस्टमेंट इनिशिएटिव (FII) में हिस्सा लेंगे। जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाये जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री की ये यात्रा दोनों देशों के रिश्तों को और मजबूत करने की दिशा में काफी अहम मानी जा रही है। इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी तेल और गैस, नवीनीकरण ऊर्जा और नागरिक उड्डयन समेत कई क्षेत्रों में आपसी संबंध मजबूत करने की दिशा में अहम समझौते करेंगे, लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वो यह कि इस यात्रा के दौरन वह  सऊदी अरब में ‘रुपे कार्ड’ भी लॉन्च करेंगे। यह कार्ड सऊदी अरब में बड़ी संख्या में मौजूद भारतीय समुदाय के साथ ही हज पर जाने वाले यात्रियों के लिए भी उपयोगी साबित होगा। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी वर्ष अगस्त माह में संयुक्त अरब अमीरात यानि यूएई में ‘रुपे-कार्ड  में लॉन्च किया था। इसके अलावा 31 मई 2018 को सिंगापुर में भी रुपे कार्ड, भीम और एसबीआई ऐप को लॉन्च कर चुके हैं।

बता दें कि रुपे एक घरेलू प्लास्टिक कार्ड है, जिसका मकसद देश में पेमेंट सिस्टम का एकीकरण करना है और यह मूलतः स्वदेशी भुगतान प्रणाली पर आधारित एक एटीएम कार्ड है। भारत में कार्ड लेन-देन प्रणाली में अमेरिकी कंपनियों जैसे मास्टर कार्ड और वीज़ा कार्ड को पछाड़ने के बाद अब रुपे कार्ड अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी देश का नाम रौशन करने की ओर अग्रसर है। भारत जैसे बड़े मार्केट में पिछड़ चुकी इन कंपनियों के लिए यह खतरे की घंटी है। ये रुपे कार्ड की अभूतपूर्व सफलता ही है कि इसकी लोकप्रियता भारत के बाहर भी बढ़ रही है। तभी तो यूएई और बहरीन, भूटान, मालदीव और सिंगापूर में भी अब ये शुरू हो चुका है। अब सऊदी अरब में भी पीएम मोदी इसे जल्द ही लॉन्च करने वाले हैं। मतलब साफ़ है कि अब भारत की घरेलू कंपनी ‘रुपे’ विश्व के अन्य देशों में भी अपनी वर्चस्वता बनाने के लिए तैयार है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) ने ‘रुपे कार्ड’ को वर्ष 2011 में विकसित किया था और इसका एक ही मकसद था कि देश के लोग घरेलू कार्ड प्रणाली का ही उपयोग करें, जिससे लेन-देन पर शुल्क विदेशी कार्ड्स की तुलना में कम भी हो तथा वह शुल्क देश में ही रह जाए ताकि भारत का पैसा भारत से बाहर ना जाये। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से देश हित में ‘रुपे कार्ड’  और डिजिटल ट्रांजेक्शन प्लैटफॉर्म यूपीआई प्रयोग करने का आह्वान किया था। जिसके बाद रुपे और यूपीआई द्वारा लेन-देन में भारी बढ़ोतरी देखी गयी।

इससे पहले देश में भुगतान के लिए वीजा और मास्टर कार्ड का डेबिट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड प्रचलन में था और ये कार्ड विदेशी भुगतान प्रणाली पर आधारित है। भारत के बैंक हर साल वीजा और मास्टर कार्ड को डेबिट और क्रेडिट कार्ड की पेमेंट प्रोसेस करने के लिए करीब 300 करोड़ रुपये की फीस चुकाते थे। लेकिन ‘रुपेकार्ड’ के आने से बैंको को भी राहत मिली क्योंकि ‘रुपे’ के इस्तेमाल पर बैंकों को विदेशी कंपनियों के कार्ड के इस्तेमाल के मुक़ाबले काफी कम शुल्क देना पड़ता है। दुकानदार हर ट्रांजेक्शन के लिए अभी करीब 1.5-2 फीसदी कमीशन चुकाते हैं, लेकिन वीजा और मास्टर कार्ड के मुकाबले रुपे में ये कमीशन 30 फीसदी कम होती है।

नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद मोदी सरकार ने डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने की शुरुआत की थी। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार सार्वजनिक रूप से भारतीय पेमेंट गेटवे रुपे के इस्तेमाल की अपील करते रहे हैं। नोटबंदी के बाद भारत में कार्ड से लेन-देन दोगुना होकर 51 बिलियन डॉलर पहुंच चुका है। प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत खोले गए सभी खातों के लिए रुपे कार्ड जारी किये गए थे जिससे अमेरिका की दिग्गज पेमेंट गेटवे कंपनियां जैसे मास्टरकार्ड और वीजा का दबदबा कम हो चुका है। भारत के लगभग 1 बिलियन डेबिट और क्रेडिट कार्ड में से लगभग आधे से अधिक यानि करीब 58 प्रतिशत कार्ड अब रुपे पेमेंट सिस्टम के तहत काम कर रहे हैं। रुपे के आने से पहले केवल 35 बैंक ही डेबिट कार्ड जारी करते थे लेकिन अब 1000 से ज्यादा बैंक डेबिट कार्ड जारी करते है।

द हिन्दू बिजनेस लाइन की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘रुपे’ आधारित कार्डो पर लेनदेन का मूल्य और मात्रा दोनों में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली। वित्त वर्ष 2016 में रुपे कार्ड से जहां सिर्फ 1127 करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ था, तो वहीं इस वर्ष यह लेन-देन 104 गुना बढ़ कर 1,17,400 करोड़ हो गया। इसके अलावा ‘रुपे’ के द्वारा लेन-देन की संख्या में भी भारी वृद्धि हुई है। वर्ष 2016 के दौरान रुपे कार्ड के माध्यम से 60 लाख बार लेन-देन हुआ था, जबकि मौजूदा वक्त में इस कार्ड के माध्यम से 1.1 अरब बार लेन-देन हो चुका है। नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) के आंकड़ों के मुताबिक देश के प्रमुख भुगतान प्लेटफॉर्म यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) के माध्यम से लेनदेन 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है। इसकी सफलता को देखते हुए भारत सरकार ने इसे विश्वव्यापी बनाने का फैसला लिया था। डिजिटल भुगतान के संबंध में सुझाव देने के लिए रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले महीने नीलेकणि की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति बनायी थी। इस समिति ने भी यूपीआई को ग्लोबल बनाने, डिजिटल लेनदेन पर लगने वाले शुल्क को हटाने, चौबीस घंटे आरटीजीएस और एनईएफटी की सुविधा देने और पॉइंट ऑफ सेल मशीन के आयात को शुल्क मुक्त करने समेत कई सुझाव दिए थे।

यही नहीं लाइवमिंट में प्रकाशित एक लेख में ‘Privacy 3.0 : Unlocking Our Data Driven Future’ के लेखक एवं ट्राइलीगल के पार्टनर राहुल मत्थान ने भी इस बात पर ज़ोर डाला है कि कैसे यूपीआई विश्व स्तरीय है और अब समय आ चुका है कि इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जाए। मत्थान ने इस आर्टिकल में लिखा था कि, ‘यूपीआई को भले ही विकेंद्रित न कर पायें, परंतु हम जानते हैं कि यह कैसे पैची मोबाइल नेटवर्क पर भी सुचारु रूप से काम करता है”। सरकार ने रुपे कार्ड की शुरुआत भी वन नेशन वन कार्ड योजना के तहत शुरू किया था। और सरकार की ये योजना इस दिशा में सफल भी हो रही है।

भारत की स्वदेशी भुगतान प्रणाली पर आधारित रुपे कार्ड की सफलता से बौखलाकर अमेरिकी कंपनी वीजा और मास्टरकार्ड, दोनों ने ही अमेरिकी सरकार से शिकायत की थी और भारत सरकार पर ‘रुपे’ के लिए संरक्षणवादी नीतियों के आरोप लगाए थे। रुपे की बढ़ती लोकप्रियता और इस्तेमाल की वजह से इन दोनों ही कंपनियों का मार्केट शेयर बिल्कुल गिर चुका है और अब विश्व के अन्य देशों में भी यही होने वाला है। वीजा कार्ड और मास्टर कार्ड 3 दशको तक भारत में काफी मुनाफा कमाते रहे हैं लेकिन अब भारतीय कंपनी रुपे (RUPAY) इस क्षेत्र में अपनी वर्चस्वता की ओर बढ़ रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि इस पहल से जहां रुपे भुगतान प्रणाली का अंतरराष्ट्रीयकरण शुरू होगा वहीं इससे अरबों डालर के लेनदेन का मार्ग भी प्रशस्त होगा। जिससे इस कंपनी का मार्केट शेयर और भी बढ़ेगा तथा भारत की इस कंपनी की विश्व में स्वीकार्यता बढ़ेगी। यह भारत के लिए गर्व की बात है।

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