अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शुरू से ही सीरिया से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के पक्षधर रहे हैं, जिसके बाद पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के बीच फोन पर बातचीत हुई। बातचीत में ट्रम्प ने एर्दोगन से कहा कि वे तुर्की द्वारा उत्तर सीरिया में किए जाने वाले हमले में अपना हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इसके तुरंत बाद तुर्की की सेना ने सीरिया में मौजूद कुर्दिश के लड़ाकों पर हमला बोलना शुरू कर दिया।
तुर्की वैसे तो वहां पर आतंकवाद को खत्म करने की बात कहकर सीरिया में अपनी फौज भेज रहा है, लेकिन असल में तुर्की ISIS के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले कुर्द लडाकों पर हमला कर रहा है। तुर्की के इस हमले से सीरिया में एक बड़ा मानवीय संकट पैदा हो गया है और हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ रहा है। हालांकि, अब यह सामने आया है कि कुर्द लड़ाकों ने रूस के कहने पर सीरिया सरकार के साथ समझौता कर लिया है और अब सीरिया के सैनिक कुर्द लड़ाकों के साथ मिलकर तुर्की के हमलों का जवाब देंगे।
कुर्द लड़ाकों का कहना है कि जैसे ही अमेरिका ने उनका साथ छोड़ा था, ठीक वैसे ही कुर्द लड़ाकों ने रूस सरकार की मध्यस्थता के बाद सीरिया की सरकार के साथ समझौता कर लिया। बता दें कि वैसे तो कुर्द लड़ाके सीरिया सरकार के विरोधी रहे हैं और सीरिया में अपने अलग देश कुर्दिस्तान की मांग करते आए हैं। हालांकि, तुर्की के विरोधी रूस ने अपने हितों के लिए अब सीरिया सरकार और कुर्द लड़ाकों के बीच सुलह करवाई है। इस सुलह के तहत अब कुर्द लड़ाके अपने कब्जे वाले मनबिज और कबाने जैसे शहरों को सीरिया सरकार के हवाले कर देंगे और बदले में सीरिया सरकार कुर्द लड़ाकों के साथ मिलकर तुर्की के हमलों का मुक़ाबला करेगी।
तुर्की के हमलों ने सीरिया में एक बार फिर अस्थिरता का माहौल पैदा कर दिया है। तुर्की के इन हमलों के कारण अब तक 1 लाख 30 हज़ार लोग अपना स्थान छोड़ने पर मजबूर हो चुके हैं और 60 लोगों की मौत हो चुकी है। तुर्की के हमलों के जवाब में कुर्दों द्वारा किये गये हमले में तुर्की के भी 18 नागरिकों की मौत होने की खबर आ रही है। मासूम जानों के जाने के साथ-साथ तुर्की के हमलों से कुर्दों के कब्जे में कैद लगभग 700 ISIS के आतंकवादी कैद से भागने में कामयाब हो रहे हैं जिसके कारण फिर एक बार ISIS के फिर से सक्रिय होने का खतरा बढ़ गया है।
बता दें कि सीरिया के ये कुर्द लड़ाके तुर्की को फूटी आँख भी नहीं सुहाते हैं। ये कुर्दी फाइटर्स सीरिया में अपना एक अलग देश कुर्दिस्तान बनाना चाहते हैं, और तुर्की के इस हिस्से पर भी अपना ही राज चाहते हैं। इसलिए तुर्की इन कुर्दी संगठनों को आतंकी संगठन मानता है और इनके खिलाफ अब कार्रवाई कर रहा है। तुर्की का कहना है कि वो कुर्द लड़ाकों को हटाकर एक ‘सेफ़-ज़ोन’ तैयार करना चाहता है, जहां लाखों सीरियाई शरणार्थी भी रहते हैं। बता दें कि तुर्की पर समय-समय पर सीरिया और इराक में आतंकी संगठन ISIS का समर्थन करने का आरोप लगता रहता है। सीरिया के लड़ाके यह कहते रहे हैं कि तुर्की ISIS को हथियार भी सप्लाई करता था।
25 अगस्त, 2015 को तुर्की के एक मीडिया संगठन ने यह बड़ा खुलासा किया था कि अक्काकाले सीमा पर तुर्की की ओर से ISIL को बड़े पैमाने पर हथियार ‘ट्रांसफर’ किए गए हैं। इसके अलावा नवंबर 2015 में रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी तुर्की पर कुछ इसी तरह के आरोप लगाए थे। तुर्की ISIS के जरिये सीरिया पर अपना प्रभाव जमाना चाहता था, लेकिन कुर्द लड़ाकों ने ISIS को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई। आज भी ISIS के लिए लड़ने वाले हजारों आतंकी और उनके परिवार-जन इन्ही कुर्द लड़ाकों के कब्जे में हैं। ऐसे में अगर तुर्की की योजना सफल होती है तो इस बात की पूरी आशंका है कि ISIS दोबारा अपने पैर सीरिया में जमा सकता है। हालांकि, अब सीरिया सरकार और कुर्द लड़ाकों के बीच समझौते से एक नई उम्मीद की किरण अवश्य दिखाई दे रही है।