बिहार उपचुनाव में नीतीश कुमार फेल, आखिर हारे हुए राजनेता के साथ कब तक रहेगी भाजपा?

नितीश कुमार

जहां एक ओर महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आशा के विपरीत परिणाम मिले हैं, तो वहीं बिहार राज्य में हुये उपचुनावों में एनडीए को काफी गहरा झटका लगा है। बिहार के विधानसभा में रिक्त पड़ चुकी 5 सीटों पर उपचुनाव हुए थे, जिसमें एनडीए को केवल एक सीट पर ही बढ़त मिली। यही नहीं, इस उपचुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम पार्टी को भी एक सीट पर जीत मिली है। बेलहर विधानसभा सीट पर आरजेडी के रामदेव यादव ने बढ़त बनाई है, तो दरौंदा विधानसभा में निर्दलीय प्रत्याशी कर्णजीत सिंह लगातार आगे चल रहे हैं।

वहीं, किशनगंज सीट पर एआईएमआईएम कैंडिडेट कमरुल होदा ने बढ़त बनाई है, और यहां भाजपा प्रत्याशी स्वीटी सिंह दूसरे नंबर पर हैं। सिमरी बख्तियारपुर में आरजेडी प्रत्याशी जफर आलम ने जेडीयू के अरुण कुमार को पीछे छोड़ दिया है।

केवल समस्तीपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में एलजेपी के प्रत्याशी प्रिंस राज ने कांग्रेस के डॉ. अशोक कुमार पर बड़ी बढ़त बना ली है। यहां एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान के भाई रामचंद्र पासवान के निधन के बाद उपचुनाव हुआ था।

समस्तीपुर में अंतिम अपडेट मिलने तक प्रिंस राज ने कांग्रेस के डॉ अशोक कुमार को 98 हजार से ज्यादा मतों से पीछे छोड़ दिया है। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी जेडीयू-बीजेपी गठबंधन के लिए रुझानों से अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं। लोकसभा में एनडीए ने 40 में से 39 सीटों पर कब्जा किया था लेकिन उपचुनाव में तस्वीर बदलती नजर आ रही है। लोकसभा चुनाव के पश्चात से बिहार के हालत ठीक नहीं है।

पहले जून – जुलाई के बीच चमकी बुखार के कारण बिहार के कई क्षेत्रों में बच्चों की असामयिक मृत्यु हुई, जिसके कारण नितीश कुमार की सरकार को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण बड़ी संख्या में बच्चों की मौत ने नीतीश कुमार के कुशासन की पोल खुल गयी थी। बिहार में यह बीमारी काफी पहले से है लेकिन नीतीश कुमार ने अपने 13 साल के शासनकाल में इस बीमारी से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

कुछ दावों की माने तो इस बीमारी के कारण पहले भी मासूमों की मौत हो चुकी हैं। इतनी मौतों के बाद भी नीतीश सरकार ने इस मामले को गंभीरता से कभी नहीं लिया। हमेशा उन्होंने सब कुछ ठीक होने का ढोंग किया। यही नहीं हर बार की तरह उन्होंने बस मृतकों के परिवार को मुआवजा देने की घोषणा कर अपनी ज़िम्मेदारी से पलड़ा झाड़ लेना उनकी राजनीति का हिस्सा रहा है।

इसके अलावा जब बिहार बाढ़ से प्रभावित था तब भी नीतीश सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह सही तरीके से नहीं किया था और तो और इसके लिए भी वो केंद्र सरकार की और देख रहे थे। नीतीश कुमार ने केंद्र से मदद की दरकार की लेकिन अपने स्तर पर कोई उचित कदम नहीं उठाये। हर बार नीतीश कुमार स्थिति का आंकलन करने की बजाय और उचित कदम उठाने की बजाय पल्ला झड़ने की भरपूर कोशिश करते हैं। स्थिति तो इतनी दयनीय हो गयी कि स्वयं उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी बाढ़ में फंसे हुए दिखाई दिये। परंतु नितीश कुमार की असफलता यहीं तक सीमित नहीं है।

यही नहीं जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का जहां पूरा देश समर्थन कर रहा था जेडीयू ने इसका विरोध किया था। राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पर लाए गए बिल पर चर्चा के दौरान जेडीयू के सदस्यों ने वॉकआउट किया था। बाद में आलोचनाओं के बाद जेडीयू ने यू-टर्न लिया था लेकिन तब तक इस पार्टी को काफी नुकसान पहुंच चुका था। अपनी पार्टी के हित के लिए नीतीश कुमार अपने सहयोगी का विरोध करने से भी नहीं झिझकते।सच तो यह है कि किसी को नहीं पता कि वे वास्तविक रूप से किस पार्टी या विचारधारा की ओर अपनी निष्ठा रखते हैं।

बिहार के उपचुनाव के नतीजे भाजपा के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं है। नितीश कुमार की असफलता अब खुलकर सामने आ रही है। यदि भाजपा समय रहते नहीं चेती, तो जदयू के साथ गठबंधन 2020 में बिहार चुनाव में भाजपा के लिए काफी हानिकारक होगा। इसलिए भाजपा को अविलंब नितीश कुमार जैसे अवसरवादियों का साथ छोड़कर बिहार में अपना जनाधार सशक्त करने पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इस बार नितीश तो डूबेंगे ही, और अगर भाजपा न चेती तो उन्हे भी साथ ले डूबेंगे।

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