भाषा का विषय जितना सरस और मनोरम है, उतना ही गंभीर और कौतूहलजनक भी। वह क्रमश: विकसित होकर नाना रूपों में परिणत हुई और आज भी हमारे बीच है। कोई भाषा को ईश्वरदत्ता कहता है, कोई उसे मनुष्यकृत बताता है। लेकिन आज ऐसा समय आ गया है कि लोग हिन्दी की तुलना डायपर पहने बच्चे से कर देते हैं। हिन्दी दिवस पर हंगामा होने के बाद फिर से भाषा का विवाद शुरू हो गया है। इस बार इस विवाद के केंद्र में है जाने-माने अभिनेता व नेता कमल हासन, जिन्होंने हिन्दी की तुलना डायपर पहने एक छोटे बच्चे से कर दी। लेकिन उनके इस बयान के बाद भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कमल हासन को ही हंसी का पात्र बना दिया।
दरअसल, मक्कल नीधि माईम (एमएनएम) के प्रमुख कमल हासन ने चेन्नई के लॉयला कॉलेज में गत मंगलवार को एक बयान देते हुए कहा था कि ‘हिंदी एक ऐसे छोटे बच्चे की तरह है, जो अभी भी डायपर पहनता है। हमें इसका ख्याल रखना होगा क्योंकि यह भी हमारा बच्चा है’। उन्होंने कहा कि ‘तमिल, संस्कृत और तेलुगु की तुलना में हिंदी सबसे युवा भाषा है’।
कमल हासन के इस बयान पर भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने व्यंगात्मक तरीके से जवाब दिया है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि ‘कमल हासन भारतीय राजनीति में कौन हैं? वह राजनीति में एक बिना डायपर के बच्चे के समान हैं जो पूरे राज्य में गंध फैलाते हैं।‘
What is Kamalahaasan in politics? A little child without a diaper causing smell all around the State
— Subramanian Swamy (@Swamy39) October 3, 2019
इसके साथ ही सुब्रमण्यम स्वामी ने हिंदी को लेकर कमल हासन की इन बेतुकी टिप्पणियों पर अपने विचार स्पष्ट कर किये। कमल हासन को अब यह समझ लेना चाहिए कि उनकी इन बेतुकी टिप्पणियों से उनका ही मज़ाक बनने वाला है। अब देश भाषा के आधार पर बांटने वाले उनके बयानों को न ही सहेगा और न ही कोई महत्व देगा।
इससे पहले भी कमल हासन ने हिंदी भाषा पर तीखे बोल कहे थे। उन्होंने हिन्दी दिवस के दिन गृह मंत्री अमित शाह के हिंदी भाषा पर दिए गये बयान पर हमला बोला था। उन्होंने कहा था कि ‘कोई शाह, सुल्तान या सम्राट हिंदी भाषा को हमपर थोप नहीं सकते’। अपने इन बयानों के करण कमल हासन भी भाषाई आधार पर भारत को उत्तर और दक्षिण में बांटने वाले राजनेताओं की सूची में शामिल हो चुके हैं। इससे पहले भी कमल हासन ने तमिलनाडु के अरावाकुरुची विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के दौरान देश को बांटने वाली बात कही थी। उन्होंने कहा कि, ‘भारत की आजादी के बाद पहला आतंकवादी एक हिंदू था।‘ हालांकि, चुनावों के नतीजों ने कमल हासन को करारा जवाब भी दिया था।
वैसे हिंदी भाषा को लेकर विवाद कोई नया नहीं है, लेकिन हिंदी दिवस के दिन गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए गये बयान के बाद से इस मुद्दे को और तूल दिया जाने लगा। जबकि अमित शाह ने अपने बयान में हिंदी भाषा को थोपने की बात नहीं कही थी। अमित शाह ने हिंदी भाषा के महत्व पर कहा था कि, “मुझे लगता है यह हमारी देश की सबसे बड़ी ताकत हैं। परंतु जरूरत है देश की एक भाषा हो, जिसके कारण विदेशी भाषाओं को जगह न मिले। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमारे पुरखों और स्वतंत्रता सेनानियों ने राजभाषा की कल्पना की थी और राजभाषा के रूप में हिंदी को स्वीकार किया था।’ उन्होंने आगे कहा था कि, “मैं मानता हूं कि हिंदी को बल देना, प्रचारित करना, प्रसारित करना, संशोधित करना, उसके व्याकरण का शुद्धिकरण करना, इसके साहित्य को नए युग में ले जाना चाहे वो गद्य हो या पद्य हमारा दायित्व है।”
अमित शाह के इस बयान के बाद विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया और सरकार पर गैर-हिंदी भाषियों पर हिन्दी थोपने का आरोप लगाने लगे थे। सियासी बवाल मचने के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने साफ तौर पर कहा कि उन्होंने कभी भी दूसरे क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी भाषा को थोपने की बात नहीं की थी। बल्कि उन्होंने आग्रह करते हुए कहा था कि ‘एक मातृभाषा सीखने के बाद दूसरी भाषा के तौर पर हिंदी सीखी जा सकती है। मैं खुद एक गैर हिंदी भाषी राज्य गुजरात से आता हूं। अगर कोई व्यक्ति इसपर राजनीति करना चाहता है तो वह उसकी इच्छा है।’
इसके बावजूद कमल हासन जैसे नेता खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इस तरह के विवादित बयान देते हैं, लेकिन इन्हें यह समझ में नहीं आता है कि अब देश एक हो रहा है और इनके भाषायी आधार पर बांटने की कोशिश सफल नहीं होने वाली है। अपने भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों से सुब्रमण्यम स्वामी ने तो भ्रष्टाचारियों के नाक में दम कर ही रखा है और अब भाषा पर ज्ञान देने वाले और देश को बांटने वाले नेताओं को भी आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है।