दिल्ली में महिलाओं के लिए केजरीवाल की फ्री बस सेवा ‘फ्री’ नहीं है

केजरीवाल

PC: livemint

नेता चुनाव में जीतने के लिए क्या नहीं करते? देश को मुनाफा हो या घाटा किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। बस राजनीतिक फायदे के लिए कुछ करना है तो करना है। इसी का नमूना दिल्ली में भी देखने को मिल रहा है। कुछ महीने पहले दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने जून में महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा देने की घोषणा की थी जिसे 29 अक्टूबर से लागू कर दिया गया। कहने को तो यह फ्री सेवा कहा जा रहा है लेकिन सच में क्या यह फ्री सेवा है?

इसका जवाब है नहीं! केजरीवाल सरकार इस फ्री सेवा के लिए प्रत्येक पिंक पास के लिए डीटीसी को 10 रुपये देगी, ताकि इससे डीटीसी का घाटा न हो। अब यह दस रुपये कहां से आयेंगे? अगर प्रत्येक दिन होने वाली आवाजाही को देखे तो दिल्ली में फिलहाल 5500 से ज्यादा बसें चल रही हैं। इसमें 3800 के करीब डीटीसी और 1600 से ज्यादा कलस्टर बसें शामिल हैं। हर रोज डीटीसी बसों में औसतन 31 लाख और क्लस्टर बसों में 12 लाख लोग सफर करते हैं और इनमें से करीब 30 फीसदी महिला यात्री होती हैं। यानि लगभग 12 लाख 90 हज़ार महिलाएं रोज फ्री बस सेवा का लाभ लेंगी। इस हिसाब से लगभग 1 करोड़ 30 लाख रूपय दिल्ली की केजरीवाल सरकार को रोजाना इस फ्री सेवा के लिए DTC  को देना होगा। अब यह कहां से फ्री सेवा हो गयी? आखिर प्रतिदिन 1 करोड़ 30 लाख, महीने में 39 करोड़ और साल में लगभग 474 करोड़ 50 लाख कहां से आएंगे? निश्चित ही टैक्सपेयर्स का रुपए ही इस फ्री सेवा के लिए भुगतान किए जाएंगे। जबकि एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा दी गई अनुदान की अनुपूरक मांगों के अनुसार, दिल्ली सरकार ने दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा के लिए 140 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं।

इस फ्री सेवा में होने वाली अनियमितता और भ्रष्टाचार तो इसमें अभी जुड़ा ही नहीं है। दरअसल, फ्री सफर करने के लिए महिलाओं को गुलाबी रंग का सिंगल जर्नी पास लेना होगा। यह फ्री पास दिल्ली-एनसीआर में चलने वाली कोई भी डीटीसी (एसी, नॉन एसी), कलस्टर बसों के कंडक्टर से ही मिलेगा। प्लान के मुताबिक, प्रत्येक दिन 10 लाख पिंक पास इशू किए जाएंगे। 29 अक्टूबर तक 1.5 करोड़ फ्री पास प्रिंट करवाए जा रहे हैं। वहीं दिल्ली सरकार ने बस में महिलाओं की सुरक्षा हेतु 3400 मार्शलों की संख्या में भारी इजाफा करते हुए 13000 कर दिया है।

फ्री सेवा फ्री सेवा के नाम पर ढोल पीटने वाले केजरीवाल सरकार इन रुपयों का सही जगह जैसे दिल्ली में जमा हुए कूड़े के ढेर को हटाने या हवा साफ करने के उपायों के लिए इस्तेमाल करने की बजाए, ऐसे फ्री राइड जैसी सेवाओं पर मेहनत से कमा रहे करदाताओं को टैक्स का इस्तेमाल कर रही है। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 से ही दिल्ली को 11,000 बसों की दरकार है। लेकिन 2019 में भी कुल सरकारी बसों की संख्या महज़ 3800 है। अगर दिल्ली सरकार बसों को बढ़ाने का फैसला लेती तो शायद यह दिल्ली की जनता के लिए ज्यादा अच्छा कदम होता। हैरत की बात ये है कि 2013 से अब तक दिल्ली में एक भी बस नहीं ख़रीदी गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार ने सितंबर 2018 तक ग्रीन टैक्स के तहत 1800 करोड़ रुपए वसूले हैं। इन पैसों से सरकार को पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सुधार करना था, लेकिन 2019 के जून तक दिल्ली में इस फंड का कोई प्रभावी इस्तेमाल नज़र नहीं आता। पिछले वित्त वर्ष में डीटीसी को 1,000 करोड़ का नुकसान भी हुआ था, कई डिपो प्राइवेट ऑपरेटर्स को दे दिए गए हैं। इस ओर सुधार न कर फ्री सेवा देना और कुछ नहीं बल्कि मूर्खता है ।

केजरीवाल सरकार ने यह फ्री सेवा का तमाशा बसों तक ही सीमित नहीं रखा है बल्कि इसे मेट्रो में भी लागू करने की योजना है। मेट्रो में फ्री सेवा का विरोध खुद मेट्रो मैन कहे जाने वाले ई श्रीधरन ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर इसे रोकने को कहा था।  वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी यह माना था कि महिलाओं को मेट्रो में फ्री सेवा देना DMRC के लिए घाटे का सौदा है।

दिल्ली सरकार ने पहले ही शिक्षण संस्थानों के फंड रोक रखा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेजों में दो हजार से अधिक शिक्षकों और कर्मचारियों को कई माह से वेतन नहीं मिला है।

जब डीयू के महत्वपूर्ण संस्थान फ़ंड की भारी कमी से जूझ रहे हों, तो इस मामले को हल करना दिल्ली सरकार की प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए था, ताकि इन शैक्षणिक संस्थानों की कार्यप्रणाली पर कोई असर ना पड़े, लेकिन दिल्ली सरकार ने महिलाओं को मुफ्त यात्रा करने का अवसर देने वाली इस बेतुकी योजना के जरिये अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने में भलाई समझी। यह योजना बेतुकी इसलिए है क्योंकि इस योजना के पीछे दिल्ली सरकार का कोई लॉजिक नज़र नहीं आता।

इस योजना से तो मुझे विक्टोरिया काल याद आ गया जहां महिलाओं को सुविधाएं सिर्फ इसलिए दी जाती थी क्योंकि उन्हें नाज़ुक समझा जाता था, और पुरुष समाज को शक्तिशाली और आत्मनिर्भर समझा जाता था। उस समय समानता का सिद्धान्त किसी को नहीं पता था, और लगता है केजरीवाल की सरकार ने इस बार भी समानता के सिद्धान्त की अनदेखी की है। न केवल राज्य सरकार एक महिला के आर्थिक स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए पितृसत्ता को बढ़ावा दे रही है, बल्कि पुरुषों के साथ भी भेदभाव कर रही है।

ऐसी योजना जो पुरुष और महिला में भेद करे, यही सिद्ध करता है कि महिलाएं स्वाभाविक रूप से कमजोर हैं, जो अपने आप को आर्थिक रूप से संभाल नहीं सकती, टिकट के लिए भुगतान करना तो बहुत दूर की बात है। आज के आधुनिक समाज में महिलाओं की पुरुषों की बराबरी करने और उनके आत्मनिर्भरता के बीच राज्य सरकार का वर्तमान निर्णय आड़े आ रहा है। महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और उनकी सुरक्षा पर ध्यान देने के बजाए सरकार उन्हें ‘फ्री टिकट’ कह कर देश के करदाताओं के रुपये का गलत इस्तेमाल कर रही है।

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