राजनीति में सत्ता लोभ व महात्वाकांक्षा कब किसे कहां ला दे कोई नहीं जानता। इसके सबसे बेहतरीन उदाहरण हैं तेदेपा सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू क्योंकि उन्हें अब समझ में आ गया है कि उन्होंने भाजपा का साथ छोड़कर कितनी बड़ी गलती की है। अर्श से फर्श पर आने वाले आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने हाल ही में विशाखापटंनम में हुई एक पार्टी मीटिंग के दौरान नायडू ने अपने पार्टी कैडरों से बातचीत में कहा, “हमने अमरावती, विशेष अधिकार एवं पोलावरम पर अपनी मांगों को पूरा करने के लिए भाजपा से संबंध तोड़ लिए और केन्द्रीय कैबिनेट से अपने मंत्री भी हटवा लिए। परंतु ये दांव उल्टा पड़ गया और टीडीपी को भाजपा से संबंध तोड़ने के कई दुष्परिणाम भी झेलने पड़े।‘’
यही नहीं, नायडू ने काँग्रेस के साथ अपने गठबंधन को भी एक गलती के रूप में स्वीकार किया और कहा, “तेलंगाना में मैंने काँग्रेस के साथ सीट बांटने का निर्णय लिया था। हम इसमें बुरी तरह असफल रहे। बीच राह में मुझे समझ में आया कि यह एक बहुत बड़ी भूल थी, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी”।
हालांकि तेदेपा में इस बदलाव के संकेत इस वर्ष अगस्त में ही पड़ने शुरू हो चुके थे, जब नायडू के नेतृत्व में पार्टी ने मोदी सरकार द्वारा जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधान हटाये जाने का समर्थन किया। इससे पहले राज्य सभा में टीडीपी ने तीन तलाक विधेयक पर वोट डालने से ही मना कर दिया, जो भाजपा के अप्रत्यक्ष समर्थन के तौर पर भी देखा जा सकता है।
डेक्कन हेराल्ड के रिपोर्ट की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेदेपा को आगाह करने का प्रयास किया था। जब तेदेपा ने पिछले वर्ष सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव सदन में रखा था, तो पीएम मोदी ने कहा था कि नायडू वाईएसआर काँग्रेस पार्टी के बुने जाल में फंस चुके हैं। यहाँ इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि जब बीजेपी-टीडीपी गठबंधन में दरार पड़ने लगी थी, तब भाजपा ने आंध्र प्रदेश में अपने मित्र दल को शांत करने के लिए काफी प्रयास किए थे।
ईटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, पीएम मोदी ने टीडीपी को मनाने का दायित्व पार्टी के शीर्ष नेताओं – अमित शाह एवं स्वर्गीय अरुण जेटली को सौंपा था। परंतु नायडू तो कुछ और ही ख्याल बुने हुये थे इसीलिए वे नहीं माने और दोनों पार्टियों के बीच का गठबंधन टूट गया। अब नायडू को समझ में आने लगा है कि उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है। एक ओर भाजपा ने सभी कठिनाइयों से पार करते हुये सत्ता में प्रचंड बहुमत के साथ वापसी की, तो वहीं नायडू के नेतृत्व में टीडीपी राजनीति में अब अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। लोकसभा तो छोड़िए, विधानसभा में भी चंद्रबाबू नायडू अपनी साख बचाने में असफल रहे थे।
2019 के लोकसभा चुनाव ने कई राजनीतिक सूरमाओं को धूल चाटते हुये देखा, जिसमें सबसे अव्वल थे चंद्रबाबू नायडू और उनकी तेलुगू देसम पार्टी। 2014 में 100 से भी ज़्यादा सीट जीतने वाली टीडीपी इस बार 175 सीटों में से केवल 23 सीटों पर ही विजयी हो पायी। यहीं नहीं, टीडीपी लोकसभा चुनावों में पिछली बार के 15 सीटों के मुक़ाबले इस बार केवल 3 सीट ही जीत पायी।
लेकिन यदि नायडू बाबू भाजपा के साथ पुनर्गठन के सपने बुन रहे हों, तो वे यह ख्याल भूल ही जाएँ। कभी पीएम मोदी को आतंकी कहने वाले चंद्रबाबू नायडू के लिए वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह ने बहुत पहले ही कहा था, “चंद्रबाबू नायडू के लिए भाजपा और एनडीए की ओर से सभी दरवाजे बंद हो चुके हैं, और पार्टी उनके साथ कोई संबंध दोबारा नहीं बनाना चाहेगी”। 2019 के चुनावों के दौरान चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा के खिलाफ महागठबंधन की सबसे ज़्यादा पैरवी की थी। पीएम बनना तो बहुत दूर की बात, अब तो चंद्रबाबू न घर के रहे न घाट के। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि- अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।