ASI ने खोज निकाला पुख्ता सबूत, जितना हम जानते हैं उससे भी कहीं ज्यादा पुराना है महाभारत

महाभारत

हमारे देश के वामपंथी इतिहासकार जो महाभारत को मात्र मिथ्या के तौर पर देखते हैं सबूत मांगते नहीं थकते है, उनके लिए एक बहुत ही ज्ञानवर्धक खबर सामने आई है। एएसआई यानि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया है कि महाभारत काफी प्राचीन है, और जितना हमें पता है ये उससे भी प्राचीन हो सकती है। बी.बी. लाल के शोध के अनुसार जो महाभारत 900 से 1000 ईसा पूर्व में हुई थी, वो अब 1500-2000 ईसा पूर्व में घटित हुई प्रतीत होती है।

महाभारत के सबूत

यहां यह बताना आवश्यक है कि पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश एएसआई ने बागपत में कांस्य युग के रथों के पहले भौतिक साक्ष्य का पता लगाया था। इसे एएसआई द्वारा एक अभूतपूर्व शोध के रूप में देखा गया था और प्राचीन भारतीय इतिहास की कई धारणाओं को परिवर्तित करने की आशा भी की गयी थी। यह पहला ऐसा रथ था जो 1920 के दशक में सिंधु घाटी सभ्यता के अन्वेषण के बाद से पाया गया था। अवशेष से पता चलता है कि उस समय दो पहियों वाले खुले वाहन प्रयोग किए जाते थे, जो एक व्यक्ति द्वारा संचालित होता था। पहिए एक निश्चित धुरी पर घूमते थे।

महाभारत के सबूत

यही नहीं, खुदाई के समय जो अवशेष मिले हैं वो इस बात के संकेत हैं कि ये महाभारतकाल के हैं। अर्थात, उत्खनन में मिले शाही ताबूत के ऊपरी भाग पर आठ विशेष प्रकार की मानव कलाकृतियां बनाई गई हैं। बीच में पीपल के पत्ते और युद्ध सामग्री भी दर्शाई गई है, जिससे ये लगता है कि किसी योद्धा को सम्मान के साथ यहां पर अंतिम संस्कार किया गया होगा। हड़प्पा, मोहनजो-दारो और धोलावीरा (गुजरात) में पिछले उत्खनन के दौरान ताबूतों की खोज की गई थी परंतु उन पर तांबों से सजावट नहीं की गई थी।

इसके अलावा, तलवारें, कटार, ढाल और एक हेलमेट ने एक योद्धा आबादी के अस्तित्व की पुष्टि की। उस समय, ASI पुरातत्व संस्थान के निदेशक संजय मंजुल ने कहा था, “इससे ये पुष्टि की जाती है कि वे एक योद्धा वर्ग थे। उत्खनन में प्राप्त हथियारों से सिद्ध होता है कि वे वीर योद्धा थे।‘

महाभारत का और भी प्राचीन होना इसी उत्खनन से प्राप्त रथ के अन्वेषण के आधार पर सिद्ध किया गया है। संजय मंजुल के अनुसार पिछले वर्ष खोजा गया यह युद्ध रथ अपने आप में अनोखा है। एडवांस टेस्टिंग के बाद पता चलता है कि ये अश्वारोही रथ है। इससे इस रथ का ‘महाभारत’ के युग से भली भांति संबंध स्थापित होता है।

इसी बारे में आगे बताते हुये मंजुल कहते हैं, “हमने जो कोड़े खोजें हैं, उसका उपयोग बैलों पर नहीं, अपितु घोड़े पर किया जाता था। पहिये हों, पोल हो, या फिर जुआ [yoke] हों, सभी ठोस रूप में पाये गए हैं, तांबे के त्रिकोणों सहित, हेलमेट और ढाल भी काफी परिष्कृत [sophisticated] हैं। सनौली में मिले अवशेष ऋगवैदिक संस्कृति और हमारी सभ्यता के बीच की वो अदृश्य कड़ी थी, जो अब मिल चुकी है। रथों का उल्लेख ऋग्वेद, रामायण और महाभारत में किया गया है”।

बता दें कि सनौली ग्राम हड़प्पा सभ्यता के एक अहम केंद्र आलमगीरपुर से सिर्फ 36 KM दूर है। हड़प्पा सभ्यता की दूसरी अवधि 1800-1300 ईसा पूर्व की है। इसलिए सनौली में खुदाई के सबूत के आधार पर महाभारत काल की 1500-2000 ईसा पूर्व की डेटिंग मार्क्सवादी इतिहासकारों के लिए किसी भारी झटका से कम नहीं है, क्योंकि यह उनके प्रचलित झूठ ‘आर्यन आक्रमण सिद्धांत’ की धज्जियां उड़ाकर रख देती है, जो देश में कुछ प्रतिष्ठित इतिहासकारों द्वारा आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया गया है।

यहां पर ये भी बताना आवश्यक है कि बिजनौर [जो आलमगीरपुर से सिर्फ 90 किलोमीटर दूर है] का उल्लेख महाभारत में राजा पृथु से जुड़ा हुआ है। बिजनौर में विदुर कुटीर भी है। बिजनौर को “व्याघ्रप्रस्थ” के रूप में जाना जाता है और इसकी स्थापना पांडवों द्वारा की गई थी। महाभारत और पिछले साल की खुदाई में जिन घटनाओं का वर्णन किया गया है, उन सभी घटनाओं का एएसआई के वर्तमान निष्कर्ष से काफी गहरा नाता है।

जो वामपंथी इतिहासकार संस्कृत महाकाव्यों- महाभारत और रामायण को ‘मिथक’ करार देते हैं और यह सुनिश्चित करने में उतावले थे कि दोनों को ऐतिहासिक स्रोत न माना जाये, वे निस्संदेह इस बात पर चिंतित होंगे कि अगर महाभारत या रामायण के बारे में उपलब्ध सबूतों का खुलासा किया गया तो उनका दशकों पुराना प्रोपगेंडा ध्वस्त हो जाएगा, इसके साथ ही उनकी लिखी किताबें भी रद्दी मानी जाएंगी। अब तक, वे इन महाकाव्यों को ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में नकारने के लिए पुरातात्विक साक्ष्य (सबूत) की कमी की दुहाई देते रहे हैं। परंतु एएसआई का वर्तमान निष्कर्ष एक गेम-चेंजर के रूप में सामने आई है। सनौली की इस नई खोज और साथ में उचित साक्ष्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि महाभारत 1500-2000 ईसा पूर्व की हो सकती है और भौगोलिक रूप से भी यह सिद्ध होता है कि यह क्षेत्र कुरू जनपद का प्राचीन काल से एक केंद्र रहा है, जिसकी प्राचीन राजधानी हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) रही है।  इन प्रमाणों के आने से वामपंथियों का छद्म इतिहास एक बार फिर ध्वस्त हो गया है।

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