कॉमेडियन, फैंसी ड्रेस के शौकीन और कनाडा के वर्तमान प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने चुनाव लड़े बिना ही हार मान ली है। यह हम नहीं कह रहे, अपितु उनके खुद के बयान इस बात की ओर संकेत करते हैं। टोरंटो के पूर्व में स्थित व्हिटबी शहर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान ट्रूडो ने कहा, “ऐसा हो सकता है कि कंजर्वेटिव की सरकार बने, जो हमारे लिए प्रतिकूल होगा”। मैं किसी वोट को हल्के में नहीं ले सकता। मैं समझ सकता हूं कि कैनेडियाई किस तरह का भविष्य चाहते हैं”। भले ही ट्रूडो ये दावा करें कि वे हर एक वोट के लिए लड़ रहे हैं परन्तु उनकी घटती लोकप्रियता और भ्रष्टाचार से संबंधित आरोपों के कारण उन्होंने समय से पहले ही हार मान ली है।
कनाडा के चुनाव विश्लेषण की मानें तो सोमवार को पड़ने से पहले ही ट्रुडो की लिबरल पार्टी विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी के साथ टाई में है और उन्हें बहुमत के लिए आवश्यक वोट नहीं मिल पाएंगे। जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा के सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाले प्रांत ओंटारियो में जमकर प्रचार किया है। हाऊस ऑफ कॉमन्स में इस प्रांत से 338 में से 108 सीटें आती हैं, जिनमें में से 76 सीट ट्रूडो के पार्टी के पास हैं, और वे किसी भी स्थिति में नहीं गंवाना चाहेंगे। परन्तु कनाडा का वर्तमान राजनीतिक माहौल देखकर तो ऐसा नहीं लगता।
लिबरल सांसद सेलिना सीज़र चेवांस ने व्हिटबी सीट से इस्तीफा दे दिया है क्योंकि वे ट्रूडो के नेतृत्व से काफी नाखुश थीं। इसके अलावा दो अहम महिला कैबिनेट मंत्रियों ने भी हाल में अपना त्यागपत्र इसलिए सौंपा क्योंकि वे ट्रूडो द्वारा एक कंस्ट्रक्शन कंपनी पर भ्रष्टाचार के आरोप हटाए जाने के विरुद्ध थे।
ऐसा बहुत बार सिद्ध हो चुका है कि ट्रूडो एक कमज़ोर नेता हैं जो अहम निर्णय लेने से कतराते हैं। एसएनसी लवालिन ग्रुप ने इनकी नारीवादी छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि 2015 में इन्हे महिला वोटरों ने भर-भर कर वोट किया था।
इसके अलावा ट्रूडो की 2018 की भारत यात्रा भी काफी फ्लॉप सिद्ध हुई थी। चाहे वह खालिस्तानी आतंकियों से बातचीत करनी हो या फिर बेढंगे कॉस्ट्यूम पहनने हो, ट्रुडो ने अपनी भारत यात्रा में अपनी फजीहत कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। ट्रूडो का खालिस्तानी उग्रवादियों के लिए इतना प्रेम इतना उमड़ उमड़ के निकलता है कि उनके डेलिगेशन में जसपाल अटवाल भी शामिल थे, जिन्होंने 1987 में वैंकूवर द्वीप पर दौरा करने वाले पंजाब के कैबिनेट मंत्री मलकियत सिंह सिद्धू की हत्या करने का प्रयास किया था।
इसी कारण पीएम मोदी ने ट्रुडो के दौरे के 5वें दिन तक मुलाकात नहीं की, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ताज महल के उनके दौरे में मुलाकात तक नहीं की। उन्हें जिले के अधिकारियों ने रिसीव किया था। खालिस्तानियों के साथ अपने संबंध के कारण दुरुदुराए गए ट्रुडो अब कनाडा में एक शर्मनाक हार की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
यदि ये काफी नहीं था तो ट्रुडो के जवानी के फोटो सामने आए, जिसमें वे नस्लभेद को बढ़ावा देते नजर आए। इसके कारण कनेडियाई राजनीति में नस्लभेद की समस्या दोबारा केंद्रबिंदु में आ गई है और ट्रुडो हर जगह क्षमा मांगते दिखाई दे रहे हैं।
छद्म उदारवाद के प्रणेता माने जाने वाले जस्टिन ट्रुडो अब अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ रहे हैं। उनका राजनीतिक शिष्टाचार केवल चुनाव जीतने हेतु होता है और ये बात अब सबके समक्ष आ चुकी है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रुडो असफल साबित हुए हैं और अब अपने ही देश में पराजय की और अग्रसर है। वे भले ही लिबरल दुनिया के पोस्टर बॉय हों, पर देश को चलाने के लिए प्राशसनिक क्षमता और साहस की आवश्यकता होती है।