‘कानून के बावजूद मुसलमान बच्चे पैदा करते रहेंगे’, अजमल का मैसेज न केवल अवैध है बल्कि अनैतिक भी है

बदरुद्दीन अजमल

PC: Asianetnews

मंगलवार (22 अक्टूबर) को असम की सर्बानंद सोनोवाल सरकार ने नए कानून के तहत उन लोगों को सरकारी नौकरी नहीं देने का फैसला लिया है जिस दंपति के पास दो से अधिक बच्चे हैं। इस फैसले के मुताबिक 1 जनवरी, 2021 के बाद से दो से अधिक बच्चे वाले लोगों को कोई सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी। असम सरकार के इस फैसले के बाद ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के प्रमुख और सांसद बदरुद्दीन अजमल ने शनिवार को एक विवादित बयान में कहा कि मुसलमान बच्चे पैदा करते रहेंगे, वे किसी की नहीं सुनेंगे।”

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, असम विधानसभा में 13 विधायक वाली पार्टी एआईयूडीएफ के चीफ बदरुद्दीन अजमल ने आगे कहा कि “इस्लाम में ऐसा कोई नियम नहीं है। हमारा धर्म भी मानता है कि जो लोग दुनिया में आना चाहते हैं, उन्हें आना चाहिए और उन्हें कोई रोक नहीं सकता है।’ बदरुद्दीन अजमल यही नहीं रुके, हद तो तब हो गयी जब उन्होंने कहा कि आप जो भी कानून बनाते हैं उससे मुसलमानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना उचित नहीं है। जितना जिसके नसीब में लिखा है उतने बच्चे पैदा करते रहो, प्रकृति से मत लड़ो।”

स्पष्ट है अजमल ने अपने बयान के जरिये इस मुद्दे को हिंदू बनाम मुस्लिम बना दिया, और अवसर देख अपनी राजनीतिक रोटी सेंकनी शुरू कर दी। अजमल ने जो आगे कहा उसे जानकर आप भी कहेंगे कि इस तरह के अवसरवादी नेताओं की वजह से ही देश में कई मुद्दे सुलझ नहीं पाते। दरअसल, अपने बयान में अजमल ने आगे कहा कि, “हमारे ऊपर कोई पाबंदी नहीं है। सरकार वैसे भी हमें नौकरी नहीं दे रही है और हमें कोई उम्मीद भी नहीं है। अब, सरकार मुसलमानों को नौकरी करने से रोकने के लिए यह कानून लाई है। सच्चर समिति के अनुसार, 2 प्रतिशत से नीचे के मुसलमानों को सरकारी नौकरी मिलती है। मैं तो कहूंगा कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा किए जाएं और उन्हें शिक्षा दी जाए जिससे वह खुद तरक्की कर सकें।”

इसके बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अजमल के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, अजमल पहले यह बताए कि क्या उनकी पत्नी या पत्नियां 7-8 बच्चे पैदा करने के लिए राजी हैं? आखिरकार उनकी राय भी मायने रखती है। महिलाएं ही बच्चों को जन्म देती हैं, उन्हें 9 महीने तक पीड़ा और मुश्किल स्थिति से गुजरना पड़ता है। ऐसे में उन्हें अपनी की अनुमति लेनी चाहिए।“

बता दें कि वर्ष 2016 में असम में भाजपा सत्ता में आई थी तभी से इसपर काम शुरू कर दिया था। इसके बाद सितंबर 2017 में असम विधानसभा ने असम की जनसंख्या और महिला सशक्तीकरण नीति को पास किया था। इस बिल को पास करने का मकसद छोटे परिवार को प्रोत्साहित करने का था। परन्तु अजमल ने इस मुद्दे का जिस तरह से सांप्रदायिक एंगल निकाला है और मुद्दे को ट्विस्ट करने की कोशिश की है, वो बेहद शर्मनाक है। ये तो सभी को ज्ञात है कि किसी भी देश की बढ़ती जनसंख्या उस देश की प्रगति में बाधा डालती है क्योंकि इससे मौजूदा प्राकृतिक संसाधन को कम होते हैं, साथ ही एक स्थायी समुदाय के लिए अवसर भी कम हो जाते हैं। ऐसे में इस स्थिति को समझते हुए जब भी हमारे देश में कोई कदम उठाया जाता है, तो बदरुद्दीन अजमल जैसे नेता इसमें खलल डालने का भरपूर प्रयास करते हैं, जिससे वो राजनीति में प्रासंगिक भी बने रहें और समुदाय विशेष कार्ड का इस्तेमाल कर अपने राजनीतिक स्वार्थ को भी पूर्ण कर सकें।

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