नीतीश फिर से बिहार के CM बनने के योग्य नहीं, BJP का उनके साथ जाना बहुत बड़ी गलती होगी

नीतीश कुमार, अमित शाह

(PC: The Print Hindi)

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए साफ कर दिया है कि बिहार में एनडीए के अगले सीएम पद के प्रत्याशी नीतीश कुमार ही होंगे। News18 को दिए एक साक्षात्कार में, शाह ने कहा-

”विधानसभा का चुनाव राज्य के मुख्यमंत्री और जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। राष्ट्रीय स्तर पर, दोनों पार्टियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काम कर रही हैं और राज्य के अगले सीएम नीतीश कुमार ही होंगे।”

आपको बता दें कि 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा के लिए अक्टूबर 2020 में चुनाव होंगे। चुनाव से पहले ही दोनों दलों में मनमुटाव की खबरें राष्ट्रीय सुर्खियों में आती रही हैं। जब शाह से पूछा गया कि दोनों दलों में अक्सर झगड़े होते रहते हैं तो इस पर अमित शाह ने कहा-

‘‘इन झगड़ों को हमेशा एक स्वस्थ गठबंधन का पैरामीटर माना जाना चाहिए। बस मत-भेद मन-भेद में नहीं बदलना चाहिए।”

नीतीश कुमार की सरकार बिहार में कई मोर्चों पर फेल रही है। इसी वजह से दोनों दलों में काफी मनमुटाव की खबरें आती रही हैं। अगर हाल की बात करें तो बाढ़ की खबर राष्ट्रीय मीडिया में कुछ दिनों से छाई हुई है। बाढ़ का पानी तो खत्म हो गया है लेकिन राज्य में डेंगू के लगातार मामले आ रहे हैं जिस पर बिहार सरकार पूरी तरह फेल है। यानि राज्य में सिर्फ आपदा राहत, लॉ एंड ऑर्डर ही नहीं स्वास्थ्य मोर्चे पर भी पूरी तरह से ध्वस्त हैं।

मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण बड़ी संख्या में बच्चों की मौत ने नीतीश कुमार के कुशासन की पोल खुल गयी थी। बिहार में यह बीमारी काफी पहले से है लेकिन नीतीश कुमार ने अपने 13 साल के शासनकाल में कोई सख्त कदम नहीं उठाया। कुछ दावों के अनुसार, इस बीमारी ने 2012 में मुजफ्फरपुर में कहर बरपाया, जिसमें 424 बच्चों की जान चली गई। इस बीमारी से पहले भी मासूमों की मौत हो चुकी हैं। इतनी मौतों के बाद भी नीतीश सरकार ने इस मामले को गंभीरता से कभी नहीं लिया। हमेशा उन्होंने इस स्थिति को नज़रअंदाज़ किया और सब कुछ ठीक होने का ढोंग किया। यही नहीं हर बार की तरह उन्होंने बस मृतकों के परिवार को मुआवजा देने की घोषणा कर अपनी ज़िम्मेदारी से पलड़ा झाड़ लेना उनकी राजनीति का हिस्सा रहा है। जब बिहार बाढ़ से प्रभावित था तब भी नीतीश सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह सही तरीके से नहीं किया था और तो और इसके लिए भी वो केंद्र सरकार की और देख रहे थे। नीतीश कुमार ने केंद्र से मदद की दरकार की लेकिन अपने स्तर पर कोई उचित कदम नहीं उठाये। हर बार नीतीश कुमार स्थिति का आंकलन करने की बजाय और उचित कदम उठाने की बजाय पल्ला झड़ने की भरपूर कोशिश करते हैं।

यही नहीं जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का जहां पूरा देश समर्थन कर रहा था जेडीयू ने इसका विरोध किया था। राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पर लाए गए बिल पर चर्चा के दौरान जेडीयू के सदस्‍य वॉकआउट किया था। बाद में आलोचनाओं के बाद जेडीयू ने यू-टर्न लिया था लेकिन तब तक इस पार्टी को काफी नुकसान पहुंच चुका था। अपनी पार्टी के हित के लिए नीतीश कुमार अपने सहयोगी का विरोध करने से भी नहीं झिझकते।

बिहार में 13 साल के शासन में नीतीश कुमार ने केवल अपना स्वार्थ देखा है और अब जनता भी उनके इस रूप को भलीभांति समझ चुकी है। लगातार 13 साल तक बिहार पर राज करने के बाद भी नीतीश देशभर में बिहार की छवि को सुधारने में सफल नहीं हुए और बिहार की गिनती देश के सबसे खराब राज्यों में ही होती रही।  नीतीश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड है भी कुछ ऐसा ही वो सिर्फ अपना हित देखते हैं और इसके लिए निम्न स्तर की राजनीति करते आये हैं और ये बात वो और उनकी पार्टी अच्छी तरह से समझती है। ऐसे में ‘कामचलाऊ’ का टैग उनके लिए अच्छा ही है। परन्तु भाजपा को अब समझने की जरूरत है कि नीतीश के कुशासन वाली छवि उसके लिए अच्छी नहीं है और उसे ये सुनिश्चित करना होगा कि नीतीश कुमार की वजह से राज्य में उसे नुकसान न झेलना पड़े।

अब गृहमंत्री अमित शाह द्वारा एनडीए का सीएम प्रत्याशी घोषित करने के बजाय बिहार की जनता के भले के लिए एक बेहतर नेता को मैदान में उतारने की जरूरत है। भाजपा पूरे देश में अपने वादों को पूरा करने के लिए जानी जाती है और पीएम मोदी भी आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय है। 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के आने के बाद यह साफ भी हो गया कि पीएम मोदी के आगे जनता ने किसी को भी ध्यान में नहीं रखा। बिहार से सभी क्षेत्रीय पार्टियों का सफाया हो गया था और जनता ने पूरे प्रदेश में भगवा लहराने का काम किया। प्रधानमंत्री मोदी एकब्रांड’ है, ये बात किसी से छुपी नहीं है। एक काम चलाऊ पार्टी के सहारे के बजाय भाजपा को बिहार के विकास के लिए खुद विधानसभा चुनाव में मजबूती के साथ अकेले उतरने की जरूरत है। भाजपा के मुख्यमंत्रियों का ट्रैक रिकॉर्ड नीतीश कुमार से काफी बेहतर रहा है, चाहे वो मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हो या छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह हों।

ऐसे में अमित शाह को बिहार में महाराष्ट्र वाली राजनीति अपनानी चाहिए। जिस तरह से उन्होंने महाराष्ट्र के विकास के लिए देवेंद्र फडणनवीस को उतारा और सहयोगी पार्टी शिवसेना को फ्रंट फुट की राजनीति से दूर कर दिया, जोकि महाराष्ट्र में ढंग से काम नहीं कर रही थी। वैसे ही बिहार में जदयू को किनारे करने की जरूरत है क्योंकि जनता अब नीतीश कुमार से ऊब चुकी है, वह किसी ऊर्जावान सीएम को देखना चाहती है, जो उनकी समस्याओं को सुन सके।

 

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