बिहार की राजधानी पटना में मंगलवार को रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाकर ऐतिहासिक गांधी मैदान में पूरे हर्षोल्लास के साथ दशहरा का पर्व मनाया गया। हालांकि त्योहार के दिन भी बिहार की सत्ताधारी गठबंधन NDA में मनमुटाव देखने को मिला। दरअसल, गांधी मैदान में आयोजित रावण वध कार्यक्रम में भाजपा का कोई नेता मौजूद नहीं था। सबसे हैरत वाली बात तो यह थी कि नितीश कुमार के साथ मंच पर राज्य कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा मौजूद थे। मंच पर बिहार कांग्रेस अध्यक्ष की मौजूदगी और भाजपा के नेता की अनुपस्थिति से अटकलें तेज हो गई हैं कि दोनों पार्टी में दरार पड़ चुकी है।
गौरतलब है कि कार्यक्रम में सीएम नितीश कुमार के बाद राज्य सरकार में दूसरे नम्बर की हैसियत रखने वाले नेता सुशील मोदी की कुर्सी भी खाली थी। सबसे खास ये रहा कि मंच पर मुख्यमंत्री नितीश कुमार के बगल में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बैठे थे जबकि, सामान्यत: उनके बगल में उपमुख्मंत्री सुशील मोदी बैठते रहे हैं। पूरे कार्यक्रम के दौरान सभी की निगाहें मंच पर खाली सीटों पर रहीं। ऐसा माना जा रहा है कि खाली सीटों पर केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, पाटलीपुत्र से सांसद राम कृपाल यादव और राज्य में मंत्री नंद किशोर यादव को बैठना था लेकिन सुशील मोदी के साथ ये नेता भी वहां अनुपस्थित रहे।
उल्लेखनीय है कि बिहार में जेडीयू और भाजपा के बीच बीते कई महीने से मनमुटाव चल रहा है। हाल ही में जेडीयू के मंत्री श्याम रजक ने जिस तरह से सुशील मोदी पर निशाना साधा था लेकिन पार्टी के हाई कमान ने इसपर चुप्पी साधे रखा जो बीजेपी नेताओं को नागवार गुजरा। वहीं, बाढ़ और जलभराव के मुद्दे पर भाजपा के नेताओं ने जिस तरह से बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार पर निशाना साधा था उसे देखकर तो यही लगता है कि दोनों दलों में आंतरिक कलह एक बार फिर तेज हो गई है।
दरअसल, बिहार में जलभराव के मुद्दे पर दोनों दल आमने-सामने दिख रहे हैं। मुख्यमंत्री नितीश कुमार इसे प्राकृतिक आपदा बताते रहे हैं, तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इसके लिए सीधे तौर पर सीएम नितीश कुमार को जिम्मेदार माना है। यहीं नहीं पूरे एनडीए की तरफ से जनता से माफी मांग उन्होंने जेडीयू की जिम्मेदारी भी तय करने की कोशिश की। वहीं नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा ने आरोप लगाया था कि अधिकारी उनकी बात ही नहीं सुनते । केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह राज्य में नितीश कुमार के खिलाफ खुलकर निशाना साध रहे हैं। गिरिराज सिंह के समर्थक भी उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर चुके हैं। वहीं अभी कुछ दिन पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता और एमएलसी संजय पासवान ने कहा था कि हमने 15 वर्षों तक बिहार के मुख्यमंत्री के पद के साथ नितीश कुमार पर भरोसा किया, उन्हें भी हमें एक कार्यकाल के लिए मौका देना चाहिए। स्पष्ट है भाजपा का इस तरह से खुलकर राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव में बिग ब्रदर की भूमिका निभाने की बात कहना नितीश कुमार को बिलकुल रास नहीं आया. इससे दोनों दलों के बीच खटास बढ़ गयी है।
गौरतलब है कि कुछ महीने पहले भी देखा गया कि भाजपा और जेडीयू में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। हर बार दोनों दलों के विचारों में टकराव देखने को मिला है। उदाहरण के तौर पर तीन तलाक बिल हो या NRC का मुद्दा या कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का मुद्दा जेडीयू ने भाजपा का साथ नहीं दिया है. ये मामले भी दोनों दलों के बीच मनमुटाव का बड़ा कारण माने जा रहे है।
यही नहीं, जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर भी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं। ज़ाहिर है वो बगैर नितीश कुमार के सहमति के ऐसा नहीं कर रहे होंगे। स्पष्ट है जेडीयू और भाजपा के गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है. ऐसे में भाजपा के महत्वपूर्ण नेता का खुले तौर पर फ्रंट फुट पर राजनीति करने की बात कहना और सीएम नितीश के कार्यक्रम में भाजपा के एक भी नेता की मौजूदगी न होना व कांग्रेस नेता का मंच पर होना, इस बात की तरफ इशारा करता है कि आने वाले दिनों में दोनों सहयोगी दल अलग होकर मैदान में चुनाव लड़ सकती है. और ऐसा हुआ तो भाजपा का राज्य में अपने दम पर सरकार बनाना तय है। अगर 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पहले की तुलना में मजबूत पकड बनाई थी और 243 सीटों में से 53 सीटों पर जीत दर्ज की थी और इस बार ये सीट का आंकड़ा और ज्यादा होगा ऐसा कहना भी गलत नहीं होगा क्योंकि भाजपा की स्थिति राज्य में पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हुई है और इस साल के लोकसभा चुनाव में यह देखने को भी मिला है। वहीं राज्य में नितीश कुमार की स्थिति बेहद खराब लग रही है।