राहुल और प्रियंका गांधी ने 2 अक्टूबर पर शास्त्री जी को याद करना जरूरी नहीं समझा, आखिर क्यों

गांधी लाल बहादुर शास्त्री

कल यानि 2 अक्टूबर को देश के दो महान व्यक्तित्वों की जयंति थी। महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की। देशभर में इन दोनों महानायकों की जयंति जोश-शोर से मनाई गई। सभी दलों के नेताओं ने राज घाट और विजय घाट पर पहुंचकर श्रद्धाजंलि अर्पित की। हालांकि गांधी परिवार दो बड़े नेताओं ने उन्हें याद करना जरूरी नहीं समझा।

दरअसल, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी व राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने केवल महात्मा गांधी को ही याद किया। ये दोनों नेता पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी पर एक भी ट्वीट नहीं किए और न ही उन्हें विजय घाट पहुंचकर श्रद्धाजंलि अर्पित की, कुल मिलाकर उन्हें सिर्फ सोनिया गांधी ने याद किया, पार्टी के भविष्य कहे जाने वाले राहुल व प्रियंका दोनों ने शास्त्री जी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। राहुल व प्रियंका, महात्मा गांधी के लिए पदयात्रा कर रहे हैं। राहुल दिल्ली में मोर्चा संभालें हैं तो प्रियंका लखनऊ में कार्यकर्ताओं के साथ पदयात्रा कर रही हैं।

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यह कोई हैरत वाली बात नहीं है, यह कांग्रेस की पुरानी परंपरा है कि वे केवल ‘गांधी परिवार’ या गांधी सरनेम वाले नेताओं को ही तवज्जो देते हैं। यहां गांधी जी उनके परिवार से नहीं हैं लेकिन उन्होंने ही यह गांधीरूपी सरनेम वाली विरासत आज के कांग्रेस के लिए छोड़ी है। ये वही कांग्रेसी नेता हैं जो शास्त्री जी की कामयाबियों को चुनाव के समय जरूर गिनाते मिल जाएंगे, लेकिन जब उन्हें सम्मान देने की बात आती है तो वे भूल जाते हैं। फिर उन्हें केवल वही नेता दिखाई देते हैं जिनके नाम के आगे गांधी लगा होता है।

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब कांग्रेस ने गैर गांधी परिवार के नेताओं को तवज्जो नहीं दिया है। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव व सीताराम केसरी को भी कांग्रेस ने लगभग भुला दिया है। सबसे पहले बात करें नरसिम्हा राव की, जो एक कांग्रेसी नेता और प्रधानमंत्री भी थे। नरसिम्हा राव को भले भारत में आर्थिक सुधारों का जनक माना जाता हो लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा उन्हें ज्यादा याद रखती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए कई बार राव का जिक्र किया है।

नरसिम्हा राव की मृत्यु के समय भी श्रद्धाजंलि देने कोई नहीं पहुंचा था

दिसंबर 2004 में नरसिम्हा राव की मृत्यु हो गई थी कांग्रेस तब तक केंद्र में सत्ता में वापस आ गई थी। उस वक्त सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। राव की मृत्यु के एक दिन बाद, शव को नई दिल्ली के अकबर रोड पर कांग्रेस मुख्यालय पर लाया गया। लेकिन राव के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यालय अंदर नहीं जाने दिया गया। उनके पार्थिव शरीर को एआईसीसी के गेट के बाहर फुटपाथ पर रखा गया था। इस बात की पुष्टि वरिष्ठ नेता मार्गरेट अल्वा ने अपनी आत्मकथा Courage & Commitment में की थी, जो 2016 में प्रकाशित हुई। तब कांग्रेस ने बचाव करते हुए यह तर्क दिया था कि राव का शरीर इतना भारी था कि उसे गन कैरेज से उठाकर कांग्रेस मुख्यालय के अंदर रखना मुश्किल था। परिजनों की इच्छा का हवाला देकर शव को हैदराबाद ले जाया गया।

दूसरे नेता हैं सीताराम केसरी जिन्हें कांग्रेस ने कोई तवज्जो नहीं दी

कहा जाता है कि सीताराम केसरी कांग्रेस व गांधी परिवार के सबसे वफादार नेता थे। उन्होंने कांग्रेस में लंबे समय तक कोषाध्यक्ष का कार्यभार संभाला था। राव के बाद पार्टी ने उन्हें कांग्रेस की कमान दी। हालांकि कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर वे ज्यादा दिन टिक नहीं पाए। साल था 1997, और सोनिया गांधी राजनीति में प्रवेश करने का फैसला लें ली थीं। उस दौरान सीताराम केसरी ने इंडिया टूडे को अपने इंटरव्यू में कहा था कि ‘सोनिया सेवियर हैं’ यानि ‘रक्षक’। हालांकि केसरी का कांग्रेस के पद पर बने रहना सोनिया को खटकने लगा और उन्हें साल 1998 के मार्च में पार्टी अध्यक्ष से बर्खास्त कर दिया गया। केसरी के जाते ही सोनिया ने अपने हाथों में पार्टी की बागडोर ले ली। हांलाकि केसरी पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से इंकार कर रहे थे। कहा जाता है कि केसरी को कार्यालय से बाहर भी निकाल दिया गया था।

राव और केसरी दोनों ही गांधी परिवार के वफादार थे, लेकिन उन्हें यहां सिर्फ अपमान ही मिला। आज के राजनीतिक हालातों पर गौर करें तो देखेंगे कि कांग्रेस गैर गांधी परिवार के नेताओं को खोती जा रही है। आज ऐसा लगता है कि सरदार पटेल से लेकर नरसिम्हा राव तक कांग्रेस के नहीं बल्कि भाजपा के नेता हैं। ये भाजपा का राजनीतिक अपहरण नहीं है बल्कि ये कांग्रेस की नाकामी है कि वह केवल गांधी परिवार के नेताओं को ही तवज्जो देती है।

ऐसे में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी व महासचिव प्रियंका गांधी का पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्री जी की जयंति पर याद न करना यही दिखाता है कि उन्हें गांधी सरनेम वाले नेता ही पसंद हैं गैर गांधी वाले नहीं। आज जब लग रहा है कि गांधी जी भी हाथ से फिसलते जा रहे हैं तो उन्हें बचाने के लिए कांग्रेस संघ को कोस रही है, उनके लिए पदयात्रा कर रही है। लेकिन शास्त्री जी पर कांग्रेस के राहुल व प्रियंका जैसे महत्वपूर्ण नेताओं का यह व्यवहार सौतेला ही कहा जाएगा। वह दिन दूर नहीं, जब कांग्रेस के पास केवल गांधी सरनेम वाले नेता ही विरासत के रूप में बचेंगे।

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