सोनम, स्वरा, बरखा, तालिब और शेहला-इन सभी को हिंदुओं से माफ़ी मांगनी चाहिए

कठुआ

हाल ही में कठुआ केस में एक नया मोड़ आया जब जम्मू और कश्मीर की एक अदालत ने मंगलवार को इस मामले की जांच करने वाले विशेष जांच दल (SIT) के 6 सदस्यों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया। न्यायालय में दायर याचिका के अनुसार कठुआ केस में हाल ही में निर्दोष साबित हुए विशाल जंगोत्रा के विरुद्ध बयान देने के लिए गवाहों को बाध्य करने, यातना देने एवं घटिया जांच पड़ताल के लिए तत्कालीन जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा नियुक्त एसआईटी के सभी सदस्यों के विरुद्ध जांच होनी चाहिए।

दरअसल, पूरा मामला जम्मू कश्मीर राज्य के कठुआ जिले का है, जहां गुज्जर बकरवाल समुदाय की एक 7-8 वर्षीय लड़की का अपहरण कर पहले दुष्कर्म किया गया, इसके बाद उसे मौत की नींद सुला दिया गया और फिर उसके शव को जंगल में फेंक दिया गया। परंतु इस घटना में विवाद तब उत्पन्न हुआ जब स्थानीय पुलिस ने आरोप लगाया कि दुष्कर्म मंदिर के देवस्थान में हुआ था।

इस मुद्दे को केंद्रबिन्दु में रखकर जेएनयू की छात्र नेता शेहला राशिद, अधिवक्ता दीपिका थुस्सू राजावत एवं ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ तालिब हुसैन ने मृतका के न्याय के लिए एक देशव्यापी आंदोलन चलाने का प्रयास किया। शुरू शुरू में किसी ने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। परंतु अप्रैल 2018 में जब जम्मू कश्मीर की पुलिस ने विशाल जंगोत्रा एवं मंदिर के प्रमुख पुजारी सांझीराम सहित पाँच अन्य आरोपियों को हिरासत में लिया और इसके विरोध में कठुआ के सनातन समुदाय ने निष्पक्ष जांच की मांग की, तो बरखा दत्त और राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार भी पक्षपाती पत्रकारिता करने पर उतर आये।

पत्रकार बरखा दत्त ने वॉशिंग्टन पोस्ट (The Washington Post) में एक पक्षपाती आर्टिकल प्रकाशित करवाया। इस आर्टिकल के टाइटल से ही आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये लेख कितना निष्पक्ष था, इसका शीर्षक था,‘हिन्दू राष्ट्रवादी बलात्कार के आरोपियों की रक्षा कर भारत को लज्जित कर रहे हैं।’

फिर क्या था, बरखा दत्त के इस पक्षपाती आर्टिकल के बाद क्या एनजीओ क्या बॉलीवुड, सभी कठुआ केस पर टूट पड़े और लगे सनातन समुदाय को निशाना बनाया। जो भी निष्पक्ष जांच की मांग करता, उसे झट से दुष्कर्म समर्थक घोषित कर दिया गया, और आवश्यकता पड़ने पर आरोपियों की सहायता करने का बेतुका आरोप भी मढ़ दिया गया। ऐसे में हमारे बॉलीवुड का प्लाकार्ड गैंग भला कहां पीछे रहता? उन्होंने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए सनातन धर्म का अपमान करना शुरू कर दिया।

इस काम में सबसे आगे रही ‘वीरे दी वेडिंग’ की तीन लीड एक्ट्रेस, स्वरा भास्कर, करीना कपूर खान एवं सोनम कपूर आहूजा, जिन्होंने इस प्लाकार्ड के साथ फोटो खिंचाई –

 

“आई एम हिंदुस्तान, आई एम अशेम्ड!” इस प्लाकार्ड में इन सभी ने इस बात को सर्वाधिक चिन्हित किया कि दुष्कर्म मंदिर के अंदर हुआ था, जिससे सनातनी इस घटना को लेकर शर्मिंदा महसूस करें। स्वरा भास्कर ने तो स्वयं इस पक्षपाती एजेंडा का विरोध करने वाले हर व्यक्ति को ‘रेप अपॉलिजिस्ट’ यानि दुष्कर्म समर्थक घोषित करना प्रारम्भ कर दिया

परंतु इनका वास्तविक चेहरा तब उजागर हुआ, जब इनके लाख विरोध के बाद भी मामले को पठानकोट के जिला न्यायालय में स्थानांतरित कराया गया। सबसे पहले विशाल जंगोत्रा के घटनास्थल पर उपस्थित को लेकर सबसे बड़ा सवाल उठा। इसके पश्चात पीड़िता के परिवार के लिए शेहला राशिद ने जितना फंड इकट्ठा किया था उसमें हेर-फेर के आरोप भी उनपर लगे।

यही नहीं, पीड़िता के न्याय के लिए लड़ने का दावा करने वाली दीपिका राजावत की पोल तब खुली, जब पता चला कि वो कोर्ट की अधिकतर सुनवाई  में उपस्थित ही नहीं थी, और इसका विरोध करने पर उन्होंने पीड़िता पक्ष को अपमानित भी किया था। वहीं, तालिब हुसैन के ऊपर न केवल अपनी पत्नी को पीटने, अपितु एक जेएनयू छात्र के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा है।

परंतु बात यहीं पर नहीं रुकी। जब हाल ही में पठानकोट के न्यायालय ने निर्णय सुनाया, तो उसमें विशाल जंगोत्रा को निर्दोष करार दिया, जबकि मीडिया के कई पत्रकार उसे प्रमुख आरोपी सिद्ध करने पर तुले हुए थे।

परंतु सच्चाई इससे कोसों दूर थी। जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट में कहा गया था कि विशाल जंगोत्रा घटना के वक्त न केवल मौजूद थे, अपितु उसने पीड़िता को जान से मारने के बाद सबूत मिटाने का प्रयास भी किया था। जबकि सच्चाई तो यह है कि जब यह घटना हुई थी उस समय विशाल मेरठ में था और उसने परीक्षा देने के बाद मेरठ के एक एटीएम से पैसे भी निकाले थे, जिसका सीसीटीवी फुटेज बाद में सामने भी आया था। इस बात पर ज़ी न्यूज़ सहित कई दक्षिणपंथी पत्रकारों ने प्रकाश डाला था और इन्हीं सबूतों के कारण विशाल दोषमुक्त सिद्ध हो सका था

अब प्रश्न यह उठता है, कि यदि जम्मू न्यायालय को लगता है कि एसआईटी ने निष्पक्षता से जांच नहीं की है, तो कठुआ मामले में ‘बॉलीवुड एनजीओ गैंग’ ने जितना आक्रोश दिखाया था, उसका उद्देश्य क्या था? क्या ये आक्रोश केवल सनातन धर्म को अपमानित करने के उद्देश्य से था ? क्या पीड़िता को न्याय दिलाने की बातें करना केवल चंद सेकंड के फेम के लिए उपयोग किया गया हथियार था? वैसे इन सवालों के जवाब स्पष्ट हैं क्योंकि किसी को भी जांच पूरा होने से पहले दोषी ठहरा देना और अपने एजेंडे के लिए पूरे सनातन धर्म को ही निशाना बनाना कहीं से भी सही नहीं है।

अब जब जम्मू न्यायालय ने कठुआ मामले की तह तक जाने का निर्णय ले ही लिया है, तो हमें इस बात पर भी प्रकाश डालना चाहिए कि आखिर किस कारण से बॉलीवुड और एनजीओ की मिलीभगत ने एक दुष्कर्म पीड़िता को न्याय दिलाने की लड़ाई को सनातन धर्म को अपमानित करने के अभियान में परिवर्तित कर दिया। इस दिशा में जम्मू न्यायालय द्वारा पक्षपाती एसआईटी के विरुद्ध एफ़आईआर कराने की स्वीकृति देना एक सराहनीय कदम है। इसके साथ ही बॉलीवुड के प्लाकार्ड गैंग को अविलंब और बिना शर्त समस्त भारत से सनातन धर्म को दुष्कर्म समर्थक कहने के लिए क्षमा भी मांगनी चाहिए।

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