नौकरशाही लॉबी का अंत- पीएम मोदी के सबसे कमतर आंकी जाने वाली उपलब्धियों में से एक

नौकरशाही

PC: deccanchronicle

वर्ष 2014 में सत्ता संभालने के बाद मोदी सरकार ने सबसे ज्यादा पारदर्शिता लाने पर काम किया। इसके लिए जो भी उचित एक्शन लेना था सरकार ने लिया। चाहे वह भ्रष्टाचारी नेताओं की बात हो या नौकरशाहों की सरकार ने किसी को नहीं बख्शा। देश के अधिकतर IAS, IPS,IRS तथा अन्य सरकारी बाबू सरकार के इस कदम का समर्थन किया लेकिन कई ऐसे भी है जिनको यह बदलाव नहीं पसंद आ रहा है। हालांकि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में नौकरशाही व्यवस्था में जबरदस्त सुधार कर रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे देश के नौकरशाह कई मामलों में एजेंसियों को बदनाम कर रहे हैं।

सबसे पहले मोदी सरकार ने नौकरशाही में लैटरल एंट्री (पाश्र्विक प्रवेश) योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत 40 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों और अर्थशास्त्र, विमानन वाणिज्य व अन्य क्षेत्रों में 15 साल के अनुभव के साथ संयुक्त सचिव पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

ये सच है कि आईएएस और अन्य सिविल सेवा कैडरों में कई कड़ी मेहनत करने वाले और सक्षम व्यक्ति शामिल हैं लेकिन ये भी सच है कि कई अधिकारी सुस्ती, अक्षमता और भ्रष्टाचार में भी सबसे आगे रहे हैं। अब तक भारतीय नौकरशाही के लिए कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी। यह फैसला समय के साथ नौकरशाहों को और बेहतर बनाएगा।

मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में इसी को आगे बढ़ाते हुए इसे और व्यापक बना दिया। सरकार ने यह तय किया कि संयुक्त सचिव पद पर लगभग 40 प्रतिशत अधिकारी सिस्टम के बाहर से लिए नियुक्त किए जाएं। इससे अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों को ज्यादा मौका मिलेगा और इससे फायदा देश को ही होगा।

अपने इन सुधारों को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने सितंबर में विभिन्न मंत्रालयों में 9 विशेषज्ञों को संयुक्त सचिव के पद पर लैटरल एंट्री के तहत नियुक्त भी किया था। यूपीएससी ने विभिन्न सरकारी विभागों में शामिल होने वाले पेशेवरों की सूची जारी की थी। ये विभाग कृषि, सहयोग और किसान कल्याण, नागरिक उड्डयन, वाणिज्य, आर्थिक मामले, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, नई और नवीकरणीय ऊर्जा, सड़क परिवहन और राजमार्ग, और शिपिंग हैं।

अब इस बार नए प्रयोग में सरकार 55 अफसरों के एक नए बैच को UPSC के बजाय नीति आयोग के द्वारा चुनेगी। सूत्रों के अनुसार सरकार विभिन्न पदों के लिए NITI आयोग में लगभग 50 पदों के लिए विज्ञापन निकालने की योजना बना रही है जिसमें निदेशक, संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव आदि शामिल हैं।

मोदी सरकार लगातार भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल कस रही है, लगभग सौ से अधिक अधिकारियों को भ्रष्टाचार व गलत आचरण का हवाला देकर अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया है। सरकार ने यह फैसला केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के मुख्य नियम 56 (जे) के तहत लिया है।

यह नियम समय-समय सरकारी बाबुओं के प्रदर्शन पर समीक्षा का अधिकार देती है जिससे सुनिश्चित किया जाता है कि क्या उन्हें सेवा में बनाए रखा जाना चाहिए या सार्वजनिक हित में सेवानिवृत्त होना चाहिए। कई अफसरों को उनके भ्रष्टाचार में लिप्त होने की वजह से भी सेवानिवृत्त करा दिया गया। मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल का पदभार संभालने के तुरंत बाद, कमिश्नर-रैंक के अधिकारियों सहित कम से कम 64 कर्मचारियों को भ्रष्टाचार सहित कई आरोपों के आधार पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया है।

लेकिन अभी भी इन सुधारों में एक और बाधा है और वह बाधा है इन अफसरों की लॉबी या संगठन। अफसर इन संगठनो के माध्यम से अपना एजेंडा चलाते थे और किसी भ्रष्टाचार के मामले में पकड़े जाने पर सार्वजनिक रूप से सरकार पर आरोप लगाते थे कि उनका राजनीतिक शिकार किया जा रहा है। लेकिन अब आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और अन्य सेवाओं के संघ काफी हद तक निष्क्रिय हो गए हैं। अब यह संगठनों सीमित ऑनलाइन उपस्थिति तक सिमट कर रह गए हैं। IAS एसोसिएशन में 6 महीनों से कोई अध्यक्ष नियुक्त नहीं हुआ है वहीं IRS एसोसिएशन में तो 2 वर्षों से चुनाव भी नहीं हुआ है। मोदी सरकार ने नौकरशाही में बदलाव करके इन एजेंडावादी संघो को निष्प्रभावी बना दिया है।

पीएम नरेंद्र मोदी की भारतीय नौकरशाही को पुनर्जीवित करने की योजना निश्चित रूप से पुरानी व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए एक सकारात्मक कदम है। वर्तमान प्रशासन के प्रयासों से इन प्रतिष्ठित सेवाओं को और बेहतर बनाया जा सकेगा।

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