पूरा विश्व ध्यान करने के लिए भारत आता है, राहुल ध्यान करने के लिए भारत से बाहर जाते हैं

राहुल गांधी

पिछले कुछ वर्षों में ट्रैवल ब्लॉगिंग का क्रेज भारत में कुछ ज्यादा ही रहा है। वैसे तो देश में तमाम चर्चित ट्रैवल ब्लॉगर भरे पड़े हैं जिसने ट्रैवलिंग को लोकप्रिय बनाया लेकिन इन सब में एक बड़ा ही चर्चित चेहरा है जिसने ट्रैवल को ऊंचाईयों तक पहुंचाया, नाम है राहुल गांधी। ये नाम इसलिए  लिया गया है क्योंकि देश के दो खास राज्यों का विधानसभा चुनाव खत्म हो चुका है, परिणाम भी आ चुके हैं, ऐसे में राहुल गांधी अपने अशांत मन को शांत करने के लिए फिर से विदेश निकल चुके हैं। और उनके पार्टी के प्रवक्ता डिफेंड करने की हर कोशिश कर रहे हैं।

दरअसल, रणदीप सुरजेवाला से जब पूछा गया कि राहुल गांधी इन दिनों नहीं दिख रहे हैं तो उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि राहुल गांधी पहले भी समय-समय पर ध्यान साधना के लिए विदेश जाते रहे हैं। पार्टी के विरोध प्रदर्शनों की रूपरेखा उन्हीं के निर्देशन में तैयार की गई है। बता दें कि राहुल गांधी अक्टूबर माह में दूसरी बार विदेश यात्रा पर हैं, इससे पहले वे कंबोडिया ध्यान साधना करने गए थे।

बता दें कि राहुल गांधी ऐसे समय में विदेश ध्यान लगाने गए हैं जब कांग्रेस अर्थव्यवस्था में मंदी, बेरोजगारी, बैंकों की खराब हालत और किसानों के संकट सहित कई मुद्दों पर नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने के लिए 5 से 15 नवंबर के बीच राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन करने जा रही है। इसके अलावा 1 से 8 नवंबर के बीच कांग्रेस देश की सुस्त अर्थव्यवस्था पर 35 प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाली है।

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला के बयान पर पलटवार करते हुए बीजेपी नेता और बीजेपी की सोशल मीडिया सेल के चीफ अमित मालवीय ने कांग्रेस पर हमला बोला है। अमित मालवीय ने कहा, ‘भारत मेडिटेशन का अग्रणी केंद्र है जिसकी विरासत भी समृद्ध है लेकिन राहुल गांधी मेडिटेशन के लिए विदेश जाते हैं। कांग्रेस पार्टी उनके (राहुल गांधी) कार्यक्रम को सार्वजनिक क्यों नहीं करती जबकि वे उच्च सुरक्षा प्राप्त नेता हैं।’

ऐसा पहली बार नहीं है जब राहुल ने नेहरू-गांधी की बनी बनाई राजनीतिक पूंजी को मटियामेट करने की कोशिश की हो, जब भी पार्टी अपने बुरे दौर से गुजरती है तो कांग्रेस के राजकुमार विदेश निकल जाते हैं।

– जून 2013 में, उत्तराखंड बाढ़ से पूरा तबाह हो गया था, देशभर में शोक की लहर थी, सभी बाढ़ पीड़ितों का मदद कर रहे थे। राज्य में लगभग 4,200 गाँवों के 6,000 लोगों की अनुमानित जाने गई थीं। कांग्रेस की अगुवाई में केंद्र और राज्य दोनों में यूपीए सत्ता में थी। ऐसे समय में, राहुल गांधी, कांग्रेस उपाध्यक्ष होने के बावजूद भी विदेश भाग निकले।

-साल 2012 में हद तब हो गई थी जब वे नए साल की छुट्टियां मनाने फ्रांस चले गए थे जिसमें एक फोटो में वो एक युवती के साथ दिखाई दिए थे।

– राहुल गांधी 2014 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले गुप्त स्थान पर छुट्टियां मनाने चले गए थे इसी बीच एक खुली जीप पर घूमते राहुल की फोटो सामने आई थी और बताया गया था कि यह रणथंभौर के नेशनल पार्क की है। कहने की जरूरत नहीं है कि पार्टी उन चुनावों के दौरान इतिहास में अपने सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई थी, जो लगभग 44 सीटें हासिल कर रही थी।

– राहुल की सबसे चर्चित छुट्टी फरवरी 2015 की थी, जब राहुल गांधी अचानक देश से बाहर चले गए थे और जब वे 57 दिन बाद दिल्ली लौटे तो पता चला कि वह बैंकाक, म्यामांर घूमने गए थे और उन्होंने ध्यान करना भी सीखा। उस वक्त विपक्ष ने मजाक भी बनाया था कि 2014 की शर्मनाक हार के बाद उनका झुकाव आध्यात्म की ओर हो गया है।

– जब कांग्रेस पार्टी नोटबंदी को लेकर विरोध कार्यक्रमों की धार तेज कर रही थी, राहुल ठीक उसी वक्त विदेश चले गए थे और उनकी गैरमौजूदगी ने इस कार्यक्रम को फीका कर दिया था। साल 2016 में जब देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का माहौल बना हुआ था ठीक उसी समय राहुल गांधी अपनी खाट सभाओं को छोड़कर नए साल की छुट्टियां मनाने लंदन चले गए थे। यहीं नहीं बिहार चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी फ्रांस चले गए थे।

– बात साल 2017 के जून की है, जब मध्यप्रदेश के मंदसौर में कांग्रेस का देशव्यापी किसान आंदोलन अपने चरम पर था। उस समय राहुल ने विदेश जाने की जानकारी ट्वीट कर दी थी। उन्होंने लिखा था- ”मैं अपनी नानी और परिवार से मिलने के लिए जा रहा हूं, कुछ दिन बाहर रहूंगा, उम्मीद है हम साथ में अच्छा समय बताएंगे।’

यह कांग्रेस के लिए एक दुष्चक्र बन गया है। जब भी राहुल गांधी रहस्यमयी यात्रा पर जाते हैं, पार्टी के नेता एक उचित जवाब खोजने में विफल रहते हैं और तब राहुल गांधी अपनी खराब समय पर छुट्टी पूरी करने के बाद मोदी सरकार के खिलाफ बयानबाजी करते हैं। कुछ मुख्यधारा की मीडिया आउटलेट और पोर्टल फिर राहुल गांधी की तरफदारी में उछल कूद मचाने लगेंगी, और ये मीडिया ये तर्क देगी कि राहुल विदेश दौरे बहुत कुछ सीख कर वापस आएं हैं। जोकि परिणाम ठीक उल्टा होता है वे अपना असली रंग दिखाने में ज्यादा वक्त नहीं लगाते। पूरा भारत जानता है कि राहुल गांधी अपने दायित्वों को किस तरह से निभाते हैं।

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