बीते मंगलवार यानि 29 अक्टूबर को अमेरिका ने अपने नेटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन) साथ तुर्की को एक बड़ा झटका देते हुए अर्मेनियन नरसंहार को आधिकारिक तौर पर मान्यता दे दी। अर्मेनियन नरसंहार ऑटोमन एम्पायर (उस्मानी साम्राज्य) के समय तुर्क मुसलमानों द्वारा अर्मेनियन लोगों के संहार को कहा जाता है। आज से 104 साल पहले वर्ष 1915 में ऑटोमन एम्पायर के समय अर्मेनियन यहूदियों और इसाइयों का बड़े पैमाने पर कत्ले-आम किया गया था और इस नरसंहार में करीब 15 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और इस नरसंहार को यहूदी नरसंहार के बाद सबसे बड़ा नरसंहार माना जाता है। इसी काले इतिहास की वजह से आज के तुर्की और अर्मेनिया की आपस में बिलकुल नहीं बनती है और दोनों देश एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। अभी कुछ महीनों पहले तुर्की के राष्ट्रपति ने अर्मेनियन नरसंहार को उस समय की ज़रूरत बताया था, जिसका अर्मेनिया ने जमकर विरोध किया था।
Turkish President Erdogan calls the extermination of Armenians from the Ottoman Empire “reasonable” at the time.
Most of Turkey’s archives relating to the #ArmenianGenocide were destroyed and what remains has been altered. pic.twitter.com/boLka2wFFW
— Armenian Genocide (@Genocideof1915) April 24, 2019
बता दें कि ऑटोमन एम्पायर के दौरान ज़्यादातर अर्मेनियन लोग एम्पायर के पूर्वी हिस्से में ही रहते थे। इन्हें तुर्क-बहुल मुस्लिम शासन में दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता था। इनके पास ना तो धर्म का अनुसरण करने की आज़ादी थी और ना ही इनको अपनी संपत्ति रखने का अधिकार था। 70 फीसदी अर्मेनियन लोग गरीब ही थे। हालांकि, समुदाय के बाकी लोग बहुत अमीर थे। यह वर्ष 1915 ही था जब ऑटोमन एम्पायर ने एक कानून पास किया जिसके तहत ऑटोमन एम्पायर को किसी भी व्यक्ति को ‘सुरक्षा खतरा’ घोषित कर उसे डिपोर्ट करने का अधिकार प्राप्त हो गया था। इसी कानून के तहत लाखों अर्मेनियन यहूदियों और इसाइयों को मौत के घाट उतारा गया था।
अर्मेनियन नरसंहार में केवल संहार ही शामिल नहीं है, बल्कि इस दौरान अर्मेनियन महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी घटनाएं भी आम थीं। अर्मेनियन लोगों के संहार के लिए ऑटोमन एम्पायर ने 25 से ज़्यादा concentration camps का एक नेटवर्क बनाया हुआ था जहां पर अर्मेनियन लोगों को बड़े अमानवीय तरीके से लाया जाता था। जो लोग इस दौरान बच जाते थे, उन्हें फिर concentration camps में मारा जाता था।
दुनिया के दो दर्जन से ज़्यादा देशों ने अभी अर्मेनियन नरसंहार को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की हुई है जिसमें अमेरिका सबसे नया देश है। अभी तुर्की और अमेरिका के रिश्तों का सबसे खराब दौर चल रहा है जहां सीरिया में तुर्की के एकतरफा हमले को लेकर अमेरिका में तुर्की की काफी आलोचना हो रही है। अमेरिका द्वारा अर्मेनियन नरसंहार को मान्यता देने के फैसले ने तुर्की को बड़ा झटका पहुंचाया है और तुर्की के विदेश मंत्री ने अमेरिकी कांग्रेस से पारित इस मोशन को खोखला करार दिया है और साथ ही इस मोशन की निंदा भी की है। अब तक अमेरिकी प्रशासन अर्मेनियन नरसंहार को मान्यता देने से इसलिए कतराता था क्योंकि उसे डर था कि कहीं नेटो साथी के साथ उसके रिश्ते खराब ना हो जायें। हालांकि, पिछले कुछ समय में जिस तरह तुर्की ने अमेरिका के हितों से ऊपर उठकर रूस से एस400 एंटि मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा है और सीरिया में अमेरिका के साथी रहे कुर्द लड़ाकों पर हमला बोला है, उसने अमेरिका में बैठे योजनाकारों को परेशान किया है, जिसका नतीजा हमें अब देखने को मिला है।
वहीं तुर्की के भारत के साथ भी रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। तुर्की सरकार के दिल में शुरू से ही भारत के दुश्मन पाकिस्तान के लिए एक नरम जगह रही है। अभी भारत ने जब कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था, तो तुर्की ने भारत के इस कदम की निंदा की थी और भारत और पाकिस्तान को बातचीत के लिए कहा था। इसके जवाब में भारत अब तक कई बड़े कदम उठा चुका है। जहां एक तरफ भारत ने तुर्की की नेवल कंपनी से 2.4 बिलियन डॉलर के एक सौदे को खारिज कर दिया, तो वहीं पीएम मोदी ने भी तुर्की की एक प्रस्तावित यात्रा को रद्द कर दिया। अब भारत चाहे तो अमेरिका के बाद वह भी अर्मेनियन नरसंहार को मान्यता प्रदान कर तुर्की को एक बड़ा झटका दे सकता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र द्वारा अर्मेनियन नरसंहार को मान्यता देने का एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय असर पड़ेगा और तुर्की के धुर-विरोधी अर्मेनिया के साथ भारत अपने रिश्ते और मजबूत कर पाएगा।