भारत की कूटनीतिक छवि को और बल देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूरोपीय यूनियन के एक डेलीगेशन को कश्मीर दौरे के लिए आमंत्रित किया था। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद मीडिया द्वारा फैलाई गयी नकारात्मक छवि को हटाने के लिए विश्व को कश्मीर की वास्तविक स्थिति से परिचित कराना काफी आवश्यक था, और इसीलिए EU के 23 सांसदों के एक दल का कश्मीर दौरा भारत सरकार ने कराया।
अब अगर इन सांसदों की माने, तो यह दौरा न केवल सफल रहा है, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के कश्मीर पक्ष को भी बल मिला है। कश्मीर की स्थिति से यूरोपियन संघ (यूरोपियन यूनियन) न केवल प्रसन्न है, अपितु उन्होंने यह भी कहा है कि अनुच्छेद 370 का हटाया जाना भारत का आंतरिक मामला है और आतंकवाद के विरुद्ध भारत की लड़ाई में EU भारत के साथ है। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में EU के इस संसदीय दल ने कहा, ‘हमारे दौरे को राजनीतिक नज़र से देखा गया, जो बिल्कुल ठीक नहीं है। हम केवल यहां पर हालात की जानकारी लेने आए थे। अनुच्छेद 370 भारत का आंतरिक मसला है और भारत-पाकिस्तान को आपस में बातचीत कर सभी मसले सुलझाने चाहिए’।
इसके अलावा EU के इस दल ने भारत का आतंकवाद के विरुद्ध उसकी लड़ाई पर समर्थन भी किया। सांसदों ने कि हम आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में साथ हैं, आतंकवाद का मसला यूरोप के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। अनुच्छेद 370 के बारे में EU के संसदीय दल ने कहा, “ये भारत का आंतरिक मसला है, अगर भारत पाकिस्तान को शांति स्थापित करनी है तो दोनों देशों को आपस में बात करनी होगी”।
यही नहीं, EU के इस संसदीय दल ने कश्मीर का दौरा करने के लिए एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को भी आड़े हाथों लिया था। दल ने अपने बयान में कहा, ‘हम लोग नाज़ी लवर्स नहीं हैं, अगर हम होते तो हमें कभी चुना नहीं जाता। हम इस शब्द के प्रयोग पर अपनी आपत्ति जताते हैं’। दरअसल, ओवैसी ने उक्त सांसदों की तुलना नाज़ी प्रेमियों से की थी और कश्मीर के मुद्दे पर भारत का समर्थन करने हेतु उनपर निशाना साधा था।
बता दें कि 5 अगस्त 2019 को गृह मंत्री अमित शाह के निर्देशानुसार अनुच्छेद 370 से संबन्धित विशेषाधिकार प्रावधान हटा दिये गए थे। ये विशेषाधिकार जम्मू कश्मीर के निवासियों को न केवल भारत की मुख्यधारा से अलग रखती थी अपितु राज्य में आतंकवाद के नाश हेतु भारत सरकार के प्रयासों में एक रोड़ा सिद्ध होती थी। अनुच्छेद 370 के हटाये जाने से कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष के एक धड़े ने जहां मीडिया के साथ मिलकर केंद्र सरकार और भारतीयों के विरुद्ध कश्मीर मुद्दे पर दुष्प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया, तो वहीं बसपा, आम आदमी पार्टी समेत कुछ विपक्षी पार्टियों ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए इस निर्णय का समर्थन किया।
इस मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के लिए हमारे पड़ोसी देश और कांग्रेस के नेतृत्व में हमारे देश के लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवियों और मीडियाकर्मियों ने भरसक प्रयास किए। पाकिस्तान ने तो हर अंतर्राष्ट्रीय मंच का उपयोग कश्मीर राग को अलापने के लिए किया। परंतु पाक को हर जगह निराशा ही हाथ लगी। विश्व के शक्तिशाली देश जैसे अमेरिका, यूके, फ्रांस, जर्मनी, यहां तक की चीन ने भी कश्मीर मुद्दे को भारत का आंतरिक मुद्दा बताया। यह तो कुछ भी नहीं है, खाड़ी देशों में तुर्की को छोड़ किसी भी इस्लामिक बहुल देश ने कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ नहीं दिया, और उलटे इसे भारत का आंतरिक मामला बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया।
ऐसे में EU के संसदीय दल का समर्थन भारत की कूटनीतिक छवि को न केवल बढ़ावा देता है, अपितु पीएम मोदी की सशक्त छवि को और भी मजबूत बनाता है।