असुरराज रंभ का पुत्र महिषासुर महादुर्धर्ष राक्षस था। वो इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था। महिषासुर ने ब्रह्माजी की तपस्या करके कई वरदान प्राप्त किए और देवताओं को परास्त कर स्वर्ग का अधिपति बन बैठा। देवताओं ने अपनी सारी शक्तियों को एकीकृत कर माँ दुर्गा का निर्माण किया।
भगवान शंकर ने दैत्यों से युद्ध के लिए अपने शूल से त्रिशूल निकालकर मां दुर्गा को दिया, विष्णु ने अपना चक्र दिया, और देवी दुर्गा ने महिषासुर समेत उसकी सम्पूर्ण राक्षसी सेना का संहार कर दिया। यमराज ने देवी को तलवार और ढाल भेंट की। देवराज इंद्र ने अपने वज्र से दूसरा वज्र उत्पन्न कर माता को भेंट किया। इसी प्रकार अन्यान्य देवताओं ने माँ दुर्गा को अपने शस्त्रों से सुशोभित किया। इसलिए आज भी माँ दुर्गा की पूजा अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित एक देवी के रूप में की जाती है। अब अगर माँ दुर्गा के हाथों से खडग, चक्र गदा, चाप, परिघ, त्रिशूल सब हटा दिया जाये तो कैसा लगेगा? परंतु ऐसा वास्तविकता में हो रहा है। और ये हो रहा है माँ के सबसे बड़े गढ़ पश्चिम बंगाल में। कलकत्ता के एक पूजा पंडाल में अस्त्र-शस्त्र विहीन माता की पूजा हो रही है। इस पूजा का आयोजन करने वाले या तो लिबरल बुद्धिजीवियों द्वारा प्रायोजित किसी षड्यंत्र को निष्पादित कर रहे हैं अथवा पश्चिम बंगाल के अति धर्मनिरपेक्ष सरकार का अनुमोदन कर रहे हैं।
परंतु यह तो कथा का तो प्रारम्भ मात्र है। एक और पूजा पंडाल है जहां सामाजिक सौहार्द को शक्तिशाली बनाने के लिए पूजा पंडाल से अजान किए जा रहे हैं। एक और पूजा पंडाल है जहां की सजावट हतप्रभ करने वाली है। यहां ॐ और इस्लामिक चाँद सितारों से पंडाल की सजावट की गई है।
आपको धर्म और छद्म धर्मनिरपेक्षता का ऐसा भौंडा प्रदर्शन कहीं और देखने नहीं मिलेगा। ज्ञात हो कि छद्म धर्मनिरपेक्षता का सम्पूर्ण ठेका हिंदुओं के पास ही होता है। क्या अपने कभी सुना है कि कभी ईद में गायत्री पाठ किया गया ? या रमज़ान के रोज़ों के समय भजन संध्या? अगर ऐसा नहीं हुआ है तो पूजा पंडाल से निकलने वाली अजान की ध्वनि और पंडाल के इस्लामिक सजावट का क्या तात्पर्य है? वास्तव में अस्त्र-विहीन प्रतिमा मात्र प्रतिमा है वो देवी दुर्गा नहीं हो सकती। सामाजिक सौहार्द को सशक्त करने के और भी उपाय हैं पूजा के समय अजान करने से कुछ नहीं होगा।
ऐसे में मां दुर्गा को पूजने वाले श्रद्धालुओं को ऐसे आयोजनों का बहिष्कार करना चाहिए क्योंकि ये आपका या मेरा अपमान नहीं है, ये जगत जननी माँ जगदंबा का अपमान है।